इक इंजीनियर की जिंदगी में क्या क्या परेशानीयाँ आती है,उसे इस कविता के माध्यम से बताना चाहता हूँ...क्योंकि मै भी हूँ इक इंजीनियर...इसलिए मेरे ही जुबान से सुनिए आप...... "इंजीनियर्स की परेशानी" |
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कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
कहने को तो कुछ दिन में अब,
मै भी इंजीनियर कहलाऊँगा,
टेक्नोलाजी और साफटवेयरस के ही,
गीत सबको सुनाऊँगा,
पर दर्द का ये किस्सा पुराना,
डिग्री के वास्ते खत्म हुई है मेरी जवानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियरस की जुबानी।
इन चार सालों का इंजीनियरिंग लाईफ,
मेरी जवानी को कुतर दिया ये टेक्निकल नाईफ।
इंजीनियरिंग का हर सेमेस्टर,
होता था मानो फिल्म थियेटर,
सब्जेक्ट होते थे फिल्म के कैरेक्टर,
विलेन होते थे फैक्लटी और टीचर।
हिरोइन फिल्म की सेसनल,प्रैक्टिकल.
सोचता था मिलेगी कभी मुझे,
पर ना मिली मुझे वो कल।
लेक्चर होती थी फिल्म की कास्टीन्ग,
मिड सेम मार्कस हर सेमेस्टर में किंग,
बस इन पर होता था अपना कुछ हक,
100 में 90 मिल जाए तो अपना गुड लक।
मुश्किल से फिल्म का हैपी इंडिंग होता था,
हिरोईन विलेनस के पास ही रहती,
और इक्जाम की रात मै बड़ी चैन से सोता था।
थियोरी पेपर के 500 नम्बरों से ही,
मुझे तो अब डिग्री बनानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
आता था एक ऐसा सेमेस्टर,
चेन्ज होता था वेदर,पहनता था मै स्वेटर।
कम्बल में दुबका सीसकिया भरता,
कालेज जाने से तो अब मै डरता,
सोचता खुद ही पढ़ लूँगा,
इस सेमेस्टर में 80 क्रास कर लूँगा।
सपने टुटते थे तब,
जब नेट पर रिजल्ट आती थी,
सुनता था कईयों का बैक लगा,
पास करने की लानत हो जाती थी।
चलो ये सेमेस्टर तो निकला,
अगले सेम में मै दिखाऊँगा,
इस बार नहीं जो कर सका,
नेक्सट सेमेस्टर पक्का फोड़ आऊँगा।
हर बार प्यासी ही दम तोड़ती थी,
मेरे हसरतों की कहानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
नई तरकीबे मै रोज बनाता,
पर क्लास करने कभी ना जाता,
अटेंडेन्स चार्ट जब होती एनाउन्स,
पास मार्कस से भी कम ही पाता।
दोस्तों से कहता यार कितना अच्छा होता,
सपनों में ही हम जाते क्लास,
जगते तो छुट्टी हो जाती,
कभी ऐसा जो होता काश,
अपनी ड्यूटी भी पूरी हो जाती।
इक तीर में दो शिकार होता,
नींद भी होती पूरी,
और कालेज न जाने का भी जुगाड़ होता।
ऐसी ही सपनों की झुठी सच्ची होती है,
इंजीनियर्स के हर रात की कहानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
कुछ ना पढ़ना पहले से,
इक्जाम की रात होते बिल्कुल सहमें से,
इक रात में पाँच यूनीट होती थी खत्म,
तीन घंटों का होता था इक्जाम का वक्त।
35 नम्बरस की चाहत दिल में पलती थी,
इक रात में ही तो अपनी डिग्री सम्भलती थी।
इक्जाम की वो हर नाईट,
क्योंसचन से होती थी जब फाईट,
सोल्युसन के लिए "Q.B" से हेल्प,
शिवानी थी नैया हम सब की सेल्फ।
डुबते हम राहियों को वो किनारा यूँ देती थी,
रिजल्ट का टेन्सन पल भर में हर लेती थी।
सारा सेमेसटर होता रहा क्लियर,
दूर हुआ अब इक्जाम का फीयर।
कुछ कर दिखाने की अब मैने ठानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
बीतता गया कई सेमेस्टर,
बन गया मै तो अब वेटर,
वेट थी नई कहानी की,
इंजीनियरींग के बाद की जिंदगानी की।
इन द इन्ड आफ सीक्स सेमेस्टर,
मिल गया हमें अब ट्रैनिंग लेटर,
कम्पनी से बुलावा आ गया,
शुरु हुआ इक लाइफ नया।
मेरा भी हो गया प्लेसमेन्ट,
क्योंकि था मुझमें भी टैलेंट,
मेरा भी टाईटल अब इंजीनीयर,
डिग्री ने लगाया मेरे लाइफ को गीयर।
मस्ती की लाइफ हो गई खत्म,
देखा मैने कम्पीटीटीभ लाइफ की रुमानी।
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
19 comments:
Good One...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
kya baat hai..............kabhi hum par bhi kavita likhiye...........
hiiiiiii kabhi hum par bhi kavita likhiye............
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
सुन्दर अभिव्यक्ति-खूबसुरत ब्लाग.
ब्लागजगत में आपका स्वागत है. शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद...
आप मेरे ब्लाग पर भी पधारें व अपने अमूल्य सुझावों से मेरा मार्गदर्शऩ व उत्साहवर्द्धऩ करें, ऐसी कामना है । मेरे ब्लाग जो अभी आपके देखने में न आ पाये होंगे अतः उनका URL मैं नीचे दे रहा हूँ । जब भी आपको समय मिल सके आप यहाँ अवश्य विजीट करें-
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और एक निवेदन भी ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आवे तो कृपया उसे अपना समर्थन भी अवश्य प्रदान करें. पुनः धन्यवाद सहित...
लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
waah bahut khub
mai bhi ek b.tech student hu
or yahi hai engg ki life
gud
...
bhai vah kya bat hai...
बहुत बढ़िया....
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चैतन्य का कोना पर सुंदर सफेद चमकते पेड़........
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
MAST engineer...........badhai..:)
सच है , यही होता है रोज|
AGAR SABHI ENGINEERS ME AAP JAISI KALA KE BHAV AA JAYEN TO YE VISHAV KALAJAGAT BAN JAYEGA AUR HARF TARAF PREM VA SAUNDARYA HI HOGA.
अच्छा है आप एक समस्या को कविता के रूप में देख रहे हैं यानि किसी खास विषय से संबंधित रोबोट नहीं बने। खैर ये डिग्री बड़ी काम आयेगी और आपकी रोजी रोटी और भावी इच्छाओं की पूर्ति का साधन भी बनेगी, तब आप इन 3;4 वर्षों की सारी समस्याएं भूल जायेंगे, और इस कवितानुमा लाइनों को लिखने की वजह भी शायद ही आपको याद रहे।
इंजीनियर बन रहे हैं , बधाई स्वीकारें ! शुभकामनाएँ
अपने अनुभवों को रोचक रूप में प्रस्तुत करने के लिये.... आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
आप सबों को बहुत बहुत धन्यवाद........
hats off you bro
on this one
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