Wednesday, December 8, 2010

पिता का दुख

कई दिन बीता, कई रात हुई,
बादल उमरे, बरसात हुई।

कितने मौसम यूँ आये गये,
पर बेटे से ना बात हुई।

माँ को भूला था, घर को भूला था,
बेटा शहर में रहता, बिल्कुल अकेला था।
आँगन में खाट पे बाप तुम्हारा,
है बाट जोहता कब से,

आज आओगे, कल आओगे,
जाने आओगे कब घर पे।

सूना है वो डेहरी, तेरे बिन बेटा,
दिन भर जहा तु खेला करता था।

पूछता है मुझसे वो पनघट अब भी,
बेटा जहा से तु रोज गुजरता था।

वो गाँव का मंदिर भी अब तो,
इक शांत, सन्नाटे में गम्भीर है,
कभी जहा पर तेरे भजन की,
गीत सुनाईया देती थी।

वो खेत खलिहान अब ना फलता है,
जहा तेरे नन्हे हाथों ने कभी फसल बोयी थी।

आँगन सुना, पनघट सुना,
सुना है सारा गाँव।

इक तेरे ना होने से,
जीवन में है बड़ा अभाव।

बेमन से माँ काम निपटाती,
रोज तुझको है फोन लगाती।

तुझसे जब ना बात होती,
उदास माँ बहुत है रोती।

कितने वर्ष जो बीत गएँ,
तेरी सूरत देखने को उतावले हम,
कई वसंत बीते, पतझड़ गए,
तेरी राह तकते हुए बावले हम।

हम सब की तो कोई बात नहीं,
पर उसको कैसे भूल गया?

तेरी प्यारी सी नन्ही बहना के,
सारे अरमानों को तोड़ गया।

अकेली, चुपचाप घर के कोणे में,
भईया का राह जोहती है,
ना खाती है ठीक से अब,
ना ही अब वो खेलती है।

छोटी बहन की प्यारी निंदीया,
आ जा तु गाया करता था,
अपनी बहन की खुशियों के लिए,
तु हमसे भी तो लड़ता था।

हर चीज, हर समान,
तेरी याद दिला देते है।

आँखो को रोकता हूँ,
समझाता हूँ,
पर रोज आँसू बहा लेते  है।

चीढ़ होती है, उब गया हूँ मै,
सबको ये समझाता,

क्या करुँ,
अकले में तो मै भी,
मन को ढ़ाँढ़स बँधाता।

तेरे बिन, क्या रात, क्या दिन,
ना बारात, ना त्योहारों के दिन,

सूनसान सन्नाटे से,
पूर्णिमा के रात भी लगते है,
घर का तु दीपक दूर कही,
हम खुद से ही अब कहते है।

लगता है अब तु आयेगा,
मेरे शव को कँधा देने ही,
तेरा बाप जब मर जायेगा,
तुझको तो देख ना पायेगा।

बेटे मेरे, दिल के टुकड़े कह,
माँ छाती से लगा लेती है,
माँ की ममता और प्यार को,
जग को दिखा देती है।

पर इक बाप है कितना मजबूर,
बेटे को गले ना लगा पाता,

मतलब इसका ये तो नहीं,
बाप को नहीं है बेटे से ममता।


विडियो देखे मेरी आवाज में ”पिता का दुख”
 on YOUTUBE


67 comments:

Sunil Kumar said...

bhavpoorn rachna , bete ka man bap se sambandh atut hai

निर्मला कपिला said...

बहुत मार्मिक रचना है। आजकल बच्चे अपनी जीविका के चलते जैसे माँ बाप से दूर जा रहे हैं तो म्हर उन माँ बाप का ये दुख इस रचना से महसूस किया जा सकता है। आँखें नम हो गयी। शुभकामनायें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बच्चे का दूर जाना माता - पिता को कितनी तकलीफ देता है उसका सजीव चित्रण कर दिया है ....अच्छी प्रस्तुति ....

मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

Shah Nawaz said...

बहुत ही भावपूर्ण और बेहतरीन रचना है...



प्रेमरस.कॉम

डॉ. मोनिका शर्मा said...

BAhut bhavpoorn.....

Anita said...

कविता अच्छी है पर बात को थोड़ा संक्षेप में कहेंगे तो ज्यादा गहरा असर करेगी, छोटी सी पंक्ति में भी बड़ी बड़ी बातें कही जा सकती है!

jayadrathsingh said...

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Shekhar Suman said...

समय की कमी के बावजूद आपकी पूरी कविता पढ़ी...
कविता से पहले आपके ब्लॉग के बारे में....
१. आप तो जानते ही हैं लाल रंग की वेवलेंथ कितनी ज्यादा होती है, इसलिए लाल रंग का उपयोग कम करें...आँखों में लगता है....
२. ब्लॉग से कुछ टेक्नीकल चीजें भी हटायें जैसे हर पेज पर स्वागत सन्देश जो आता है, इरिटेट कर देता है |
३. आपका ब्लॉग हिंदी कविताओं का है तो जितना सरल रहे पढने वाले को उतना ही अच्छा लगेगा.अगर इन सब चीजों का उपयोग करना है तो कोई इंग्लिश टेक्नीकल ब्लॉग बनाएं...
४. और हाँ यह कर्सर की पूँछ को भी हटा दें अभी टाइप कर रहा हूँ तो बार बार परेशान कर रही है.....
फोल्लो कर लिया है बार बार आता रहूँगा....उम्मीद है अगली बार बहुत ही प्यारा सा और आँखों के लिए अच्छा टेम्पलेट लगा होगा...
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद....

Er. सत्यम शिवम said...

@sunil ji,nirmala ji,sangeeta ji,shah nwaz ji,monika ji...bhut bhut dhanywad..meri kaavya kalpna ko padhne ke liye.aur itni achi tipaniyo ke liye..humesa yuhi mera margdarshan karte rahe...thnks

Er. सत्यम शिवम said...

@anita ji..dhanywad aap yuhi humesa mera margdarshan karte rahe....

Er. सत्यम शिवम said...

@sekhar ji...thnks aapne apna bahumuly samay nikal kar meri puri kavita padhi..aapke sujhao ke liye dhanywad..jald hi mera blog new template ke sath dikhega..humesa yuhi margdarshan karte rahe..thnks

Mithilesh dubey said...

bahut khub likha hai bhai ji aapne

Er. सत्यम शिवम said...

@mithilesh ji......bhut bhut dhanyawad bhai

राहुल said...

bahut shaandaar.. bemishaal
aapko badhai...

POOJA... said...

बहुत अच्छे कविता...
सच है क्या पिता को ममता नहीं होती बच्चों से???
वैसे सच कहूँ तो, हमारे यहाँ पापा ही ज्यादा maternal and soft hearted हैं...

Er. सत्यम शिवम said...

@rahul ji,pooja ji...धन्यवाद...सही बात है इक पिता जो अपनी ममता दिखा नहीं पाता,इसका मतलब ये तो नहीं की उसे अपने औलाद से प्यार नहीं। मैने कुछ यही सोचकर ये रचना लिखा ।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

bahut pyari kavita... dhanyawaad.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बहुत मार्मिक कविता है.

स्वप्न मञ्जूषा said...

bhavpoorn kavita hai..lekin kuch spelling mistakes hain
theek kar lijiyega..

mere blog par aane ke liye aabhaari hun..

Er. सत्यम शिवम said...

@ada.....yu hi humesa margdarshan karti rahe....dhanyawad

अनुपमा पाठक said...

sajeev chitran!

कडुवासच said...

... bahut sundar ... behatreen rachanaa ... badhaai !!!

मनोज कुमार said...

बहुत कमाल का ब्लॉग है।
अच्छी तरह से सजाया है।
कविता भी काफ़ी अच्छी लगी।

Er. सत्यम शिवम said...

@anupama ji,uday ji,manoj ji....aap sabo ko mera aabhar...aap yuhi mera utsaah badhate rahe...thnks

girish pankaj said...

तुम्हारी कविता पढ़ कर एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, कि तुम भविष्य के सार्थक कवि साबित हो सकते हो. इस उम्र मे इतनी प्यारी, दिल को छू लेने वाली कविता पढ़ कर प्रसन्नता हुई. शुभकामनाएं. लेकिन अभी तो ये शुरुआत है. अभी बहुत-सी कविताओं का अध्ययन-मनन भी ज़रूरी है. मात्राओं के कुछ दोष नज़र आये. ये धीरे-धीरे दूर हो जायेंगे. प्रयास जारी रखना

Er. सत्यम शिवम said...

@गिरिश जी,धन्यवाद.....आपके तारीफ के लिए...यूँ ही आकर मेरा मार्गदर्शन करते रहे।

रंजू भाटिया said...

bahut badhiya behtreen likhte hain aap .shukriya

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाई सत्यम शिवम - ये सुंदर है| अति सुंदर भावों से सजी, मार्मिक, एहसासों को कुरेदती, सोचने को विवश करती और आधुनिक तरक्की की भट्टी में लगभग तल की ओर अग्रसर कस्बाई सरोकारों को विवेचित करती उत्तम कविता है ये|

निस्संदेह कइयों को प्रभावित करने की कुव्वत है आप में और आपकी रचनाधर्मिता में| बधाई स्वीकार करें|

अब साथ में एक छोटी से सीख और:- सोना सोना ही होता है, पर बाजार में मोल पाता है तपने के बाद| आपसे सविनय आग्रह है "भाषा और व्याकरण पर ध्यान दें"| इस के बाद आप बुलंदियों को आसानी से फ़तेह कर पाओगे मित्र| आशा है आप मेरी इस विनती को सकारात्मक रूप में लेंगे|

Er. सत्यम शिवम said...

@ranjana ji..bhut bhut aabhar..yuhi nirantar meri kavitawo ko sarahte rahe.

Er. सत्यम शिवम said...

@navin ji..srawpartham ..ye meri khuskismati hai ki aap mere blog pe aaye aur itni tarif ke sath mera margdarshan kiya...abhi mai engineering kar raha hu..bhavisw me mai jarur apni sari trutiyo ko dur karunga..aapki sikh ke liye bhut bhut dhanyawad.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर भावनात्मक और दिल को छुं लेने वाली कविता ! बधाई !

Er. सत्यम शिवम said...

@manoj ji ...aaj ki ravivasariy charcha manch me meri kavita shamil karne ke liye dhanywaad.

शारदा अरोरा said...

पिता की नजर से लिखी गयी कविता बहुत अच्छी लगी ..व्याकरण के सुधार की आवश्यकता है .

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut maarmik chitran kar diya bete se bhichhadne ke dard ka.

Er. सत्यम शिवम said...

@sharda ji..sabse pehle bhut bhut dhanywaad...mai engineering ka student hu..kavita aur sangeet mujhe godgifted hai....dhire dhire vyakaran ki trutiyo ko dur kar lunga..aap yuhi humesa aakar mera maargdarshan karti rahe.

annie. said...

very nice bhai.... :)

Anonymous said...

आपकी रचना सोचने को मजबूर करती है!
--
माता-पिता तरसते रहते, अपनापन पाने को,
चार दिनों में बेटों के, घर-द्वार बदल जाते हैं।

भइया बने पड़ोसी, वैरी बने जिन्दगी भर को,
भाई-भाई के रिश्ते औऱ, प्यार बदल जाते हैं।

कुमार राधारमण said...

प्रवास की पीड़ा से उपजी कविता। वर्षों पहले,बीबीसी पर सुना एक नाटक ध्यान आ गया।
(निवेदनःयदि तुकबंदी का मोह छोड़ सकें,तो कविताएँ अधिक संप्रेषणीय बन सकेंगी। कृपया वर्तनी की शुद्धता का भी ध्यान रखा जाए।)

shikha varshney said...

बहुत भावपूर्ण रचना ..मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत शुक्रिया आपका.

Er. सत्यम शिवम said...

@शास्त्री जी आप बस मेरे कविता पर दो पंक्तिया कहे,मेरी कविता अब जमी की ना हो, आसमा का राह अपना लिया.........बहुत बहुत आभार...यूँ ही आये औ मुझे मार्गदर्शन दे।

Er. सत्यम शिवम said...

सीखा जी,राधारमण जी....बहुत बहुत शुक्रिया आप आये और अपनी राय से अवगत कराये......राधारमण जी एक बात कहना चाहता हूँ.....वर्तनी शुद्धता तो जरुरी है,जो मै कर लूँगा.....पर यदि काव्य का सागर है तो वो हर मेरी त्रुटीयों को जल्द ही गंगा सा पावन कर देगी....बस आप यूँही आशीर्वाद बनाए रखे......धन्यवाद

Kunwar Kusumesh said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... said...

dil ko chhuti rachna aur sai ka aashish ... shubhkamnayen

Er. सत्यम शिवम said...

@rashmi ji........sab bas sai kripa hai..."sai ki lila hai nirali,karta hai wo kaam,sansaar leta hai mera naam"........

Rajani said...

ब्लागजगत में आपका स्वागत है. शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद...

आप मेरे ब्लाग पर भी पधारें व अपने अमूल्य सुझावों से मेरा मार्गदर्शऩ व उत्साहवर्द्धऩ करें, ऐसी कामना है ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

मां की ममता पर तो कवियों ने खूब कलम चलाई है किंतु पिता के प्यार पर कम रचनाएं पढ़ने को मिलती हैं।...
आपकी यह कविता पुत्र के प्रति पिता के असीम मोह को मार्मिकता से अभिव्यक्त कर रही है।

वीरेंद्र सिंह said...

इस सुंदर और सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

कविता दिल को छू गई।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

भाउक मन की भाउक बातें।

एक बेहद साधारण पाठक said...

बेहद...बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना .. सीधी ह्रदय तक पहुँची है

Er. सत्यम शिवम said...

@rajni ji,mahendra ji,virendra ji,devendra ji,gaurav ji.......thnks..मै आपको बताता हूँ ,मैने ये कविता अपने पापा के लिए लिखा है।कुछ यही सोच कर कि क्यों माँ का प्यार जगजाहिर होता है,और पिता का प्यार कोई समझ नहीं पाता...मेरे पापा मुझे बहुत ही प्यार करते है......शायद मै सोच भी नहीं सकता उससे कुछ ज्यादा ही..........ये कविता ही नहीं...मेरी सारी उपलब्धि और तरक्की बस और बस मेरे परिवार का हाथ है.....बस आज कहने को जी में आया तो कह दिया जो था दिल में दबा दबा सा............

Swarajya karun said...

दिल को छू गयी आपकी यह कविता . बहुत-बहुत शुभकामनाएं .

Shekhar Suman said...

घूमता फीता आया...सोचा पुरानी कविता पढूंगा...
टेम्पलेट देखकर वापस जा रहा हूँ..:(

सदा said...

ब्‍लाग जगत में आपका स्‍वागत है ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ..सुन्‍दर शब्‍द रचना के लिये बधाई ।

रचना दीक्षित said...

बेहद मार्मिक प्रस्तुति

amit kumar srivastava said...

अत्यन्त मार्मिक रचना ।बधाई एवं शुभकामनाएं ।

उपेन्द्र नाथ said...

सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता. ....अच्छी प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही मार्मिक ... भावुक कर गयी आपकी रचना .... माँ की खुसबू है इस रचना में ... लाजवाब ...

Kailash Sharma said...

पिता अपने प्यार को दिल में ही छुपाये रखता है...बहुत ही भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति..

Er. सत्यम शिवम said...

dhanyawaad aap sabo ko.....kal yani guruwaar ko mere blogg par meri nayi rachna prakasit hogi.....aap sab yuhi aaye aur mera maargdarshan kare...........

Patali-The-Village said...

बहुत ही भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति|

Mukesh K. Agrawal said...

सत्यम जी, आपकी रचनाये बहुत ही ममस्पर्शी है... मैं समय निकला कर सभी रचनाओं को अवश्य पढुगा... पिता के दिल में अपने पुत्र के लिए छिपी हुई ममता को बहुत ही आलौकिक ढंग से एवं बखूबी आपने इन भावप्रवण शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया है...

आपकी लेखनी को शत शत प्रणाम करता हूँ...

Er. सत्यम शिवम said...

@mukesh ji.....thnks....yu hi humesha mera utsaah badhate rahe.

vijai Rajbali Mathur said...

भावुक रचना है.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

एक पिता के भावनाओं का इतना सुन्दर व मार्मिक चित्रण पहली बार देखने को मिला. बधाई!

Er. सत्यम शिवम said...

@vijay ji,vandana ji.........aaplogo ko mera dhanyawaad.........

Parmanand Soni said...

Such a wonderful poem..........touching my heart...
it's not only a talent but also an art which is god gifted........very nice wipro, Go Ahead..

संजय भास्‍कर said...

अति सुंदर भावों से सजी, मार्मिक, एहसासों को कुरेदती, सोचने को विवश करती ...........भावुक रचना है.