Monday, May 16, 2011

सब कुछ सीख लिया हूँ अब

सब कुछ सीख लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
जान लिया हूँ सब कुछ अब,
जो जाना हूँ वही सही है।

ज्ञान ही ज्ञान भर गया है मेरे मस्तिष्क में,
अब मै विद्वता के उच्चतम शिखर पर विराजमान हूँ,
चाँद भी है आसमां में तारों के बीच में,
पर मै तो दुनिया से बिल्कुल अन्जान हूँ।

नादान है मेरा ये ज्ञान आज भी,
जो जीवन का सत्य ना जान पाया,
परेशान है मेरा अक्ल जो कि,
विज्ञान से परे रहस्य ना खोज पाया।

सब कुछ देख लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है।
पर आँखों को इंतजार है जिनकी झलक अब,
वैसा कोई साथी ही नहीं है।

हाथों से जाम पिलाने वाला अब,
कोई साकी ही नहीं है।

दौलत और शोहरत भर गया है मेरे दामन में,
अब मै दुनिया का सबसे बड़ा धनवान हूँ,
फूल भी है बाग में काँटों के बीच में,
पर मै तो दानवों में इंसान हूँ।

मजबूर है मेरा ये दौलत आज भी,
जो किसी की जान ना खरीद पाया,
कुर्बान है मेरी शोहरत जो कि,
आत्मा के रहस्य को ना सुलझा पाया।

सब कुछ पा लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर जिसकी खातिर मै रुका हूँ अब,
वो तो यहाँ भी नहीं है।

दिल को बहलाने वाला अब,
कोई झाँकी ही नहीं है।

कब्र पर खिला वो फूल भी खुशनसीब है,
जो मौत पर भी किसी के खुशबू तो लुटा सका,
पाँव में चूभा वो सूल भी खुशनसीब है,
जो दर्द देकर भी मँजिल का राह तो दिखा सका।
पर न जाने मेरा कैसा नसीब है,
अपने मुक्कदर पर दो आँसू ना बहा सका।

सब कुछ छू लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर जिनके स्पर्श को ठहरा हूँ अब,
वो तो जहाँ में ही नहीं है।

राह में साथ निभाने वाला अब,
कोई हमराही ही नहीं है।

काश जहाँ में खुदा को बुला सकता,
धरती से आसमां तक राह बना सकता,
जो चाहता वो मै कर पाता,
मन में आँख और आँखों में सपने बसा पाता।

पर वीरान है मेरा ये जहाँ आज भी,
जो पत्थर पर फूल ना खिला पाया,
गुमनाम है मेरा पता जो कि,
खुदा तक अपना खत ना पहुँचा पाया।

सब कुछ जी लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर कानों को याद है जिस संगीत की,
मुख वो गीत गाती ही नहीं है।

आँखों में नींद ही नींद था कभी,
अब मुझे नींद आती ही नहीं है।

मँजिल मुझे बुलाती है आज भी,
पर चाह के भी दो कदम ना चल पाया,
जीवन मुझे रंग दिखाती है आज भी,
पर उनमें से दो रंग ना चुन पाया।

सब कुछ लुटा दिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर करीब था जो मेरे कल तक,
अब वैसा कोई साथी ही नहीं है।

राहों में जो नजरे बिछाए रहता था,
अब वैसा कोई साथी ही नहीं है।

हिचकीयाँ जो आती थी पहले,
लगता था किसी ने याद किया है,
सिसकियाँ भर भर के जैसे,
रब से किसी ने फरियाद किया है।

वो नूर जिसपे गुरुड़ था,
वो भी किसी ने छिन लिया है,
सब कुछ भूला दिया हूँ अब,
कुछ याद ही नहीं है।

बीते हुए हर याद,
अब भी दिल में हँसी है,
आँखों में आसमां की ऊँचाई,
पाँव में अब भी जमी है।

26 comments:

Anita said...

सब कुछ पाकर भी जब लगता है कि कुछ नहीं मिला वही क्षण जीवन में अनमोल होता है क्योंकि तब उस की तलाश शुरू होती है जो सार्थक है.. शाश्वत है...

संजय भास्‍कर said...

ज्ञान ही ज्ञान भर गया है मेरे मस्तिष्क में,अब मै विद्वता के उच्चतम शिखर पर विराजमान हूँ,चाँद भी है आसमां में तारों के बीच में,पर मै तो दुनिया से बिल्कुल अन्जान हूँ।
...बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश छुपा है इन पाँक्तिओं मे। बधाई सुन्दर रचना के लिये।

Sadhana Vaid said...

बाहर दर्द भरी रचना ! सब कुछ पा लेने के बाद भी रिक्तता का अहसास भीड़ से घिरे होने पर भी अकेले होने का अहसास बहुत तकलीफदेह होता है ! सुन्दर रचना ! बधाई !

Udan Tashtari said...

यही रिक्तता और पाने की कशिश देती है..बढ़िया.

prerna argal said...

मजबूर है मेरा ये दौलत आज भी,जो किसी की जान ना खरीद पाया,कुर्बान है मेरी शोहरत जो कि,आत्मा के रहस्य को ना सुलझा पाया।
सब कुछ पा लिया हूँ अब,कुछ बाकी ही नहीं है,पर जिसकी खातिर मै रुका हूँ अब,वो तो यहाँ भी नहीं है।
bahut hi achchi rachanaa.badhaai aapko.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर .... जीवन में यही रिक्तता आगे बढ़ने की शक्ति देती है .......

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत अच्छी...

Unknown said...

मजबूर है मेरी ये दौलत,
खरीद न पाए जान कोई,
कुर्बान करू सारी शोहरत,
जो करे पूर्ण अरमान कोई,
रहस्य बताये आत्मा का,
बतला दो भगवान् कोई.

बेहद प्रभावपूर्ण शब्द चयन , आपकी कलम और भी शाश्क्त हो , शुभकामनायें

प्रवीण पाण्डेय said...

निर्वात बने पर रुके नहीं।

Vivek Jain said...

मजबूर है मेरी ये दौलत,
खरीद न पाए जान कोई,
कुर्बान करू सारी शोहरत,
जो करे पूर्ण अरमान कोई,
रहस्य बताये आत्मा का,
बतला दो भगवान् कोई.

सुन्दर रचना
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

भई सत्यम कमाल हे तुमहारी कलम मे बहुत खुब सुरत...

सु-मन (Suman Kapoor) said...

ati sundar....sab kuchh pakar bhi na mila kuchh.... waah

mridula pradhan said...

bahut achcha likhe.

***Punam*** said...

सब कुछ हो कर भी जीवन की रिक्तता कुछ ऐसा ही सोचने को मजबूर कर देती है...
!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बीते हुए हर याद,
अब भी दिल में हँसी है,
आँखों में आसमां की ऊँचाई,
पाँव में अब भी जमी है।

गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
हर पंक्ति में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
हार्दिक बधाई....

Unknown said...

बहुत अच्छी और सधी हुई रचना ।
कृपया मेरी भी कविता पढ़ें और अपनी राय दें ।
www.pradip13m.blogspot.com

ZEAL said...

एक stage आती है जीवन में जब ऐसा ही कुछ महसूस होता है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

ज्योति सिंह said...

सब कुछ लुटा दिया हूँ अब,कुछ बाकी ही नहीं है,पर करीब था जो मेरे कल तक,अब वैसा कोई साथी ही नहीं है।
राहों में जो नजरे बिछाए रहता था,अब वैसा कोई साथी ही नहीं है।
rachna bahut hi sundar hai sochne par majboor karti hai

बाबुषा said...

सत्य की खोज के लिए उठे पहले कदम की पहल ! चलते रहना .

Anupama Tripathi said...

रिक्त मन दर्शाती ...मन को छू गयी आपकी रचना ..

Asha Lata Saxena said...

रिक्त मन की भावना का बहुत सुंदर चित्रण किया है |बधाई
आशा

सदा said...

बहुत कुछ कह दिया आपने इस अभिव्‍यक्ति ...सार्थक चिंतन ।

Maheshwari kaneri said...

बीते हुए हर याद,
अब भी दिल में हँसी है,
आँखों में आसमां की ऊँचाई,
पाँव में अब भी जमी है।.... सुन्दर रचना ! बधाई !

Mani Singh said...

aapki bate dil ko chuu jati hai

RAMCHANDRA GUPTA said...
This comment has been removed by the author.
RAMCHANDRA GUPTA said...

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Ramchandra Gupta
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