कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
दुनिया दो मुखौटो का खेल है,
जीवन ताउम्र एक जेल है।
हर सजा यहीं सब पाते है,
सुख दुख तो आते जाते है।
कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
इंद्रधनुष में सात रंग क्यों होते है,
नैनों को अपने हम क्यों भिगोते है?
क्यों बादल नभ में छाते है,
बिन बरसे ही चिल्लाते है।
बगिया क्यों आँसू बहाती है,
हर सुबह क्यों भींग जाती है?
हर सुबह क्यों भींग जाती है?
कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
खुशियों में दिल क्यों झूमता है,
किस्मत की हथेली हर कोई क्यों चूमता है?
गुस्से में आँखें लाल क्यों होती है,
उदासी में मन क्यों बोलती है?
आसमां भी कभी कभी क्यों रोता है,
बरस कर वो किसको खोता है?
कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
हर इंसान भगवान क्यों नहीं होता है,
आत्मा के बिना शरीर बेजान क्यों होता है?
पापी अपने पापो को गंगा में कैसे धोता है,
जानवरों में घोड़ा खड़ा खड़ा कैसे सोता है?
इक बाप अपने बच्चों में संस्कार कैसे बोता है,
इक डाल में ही एक काँटा और एक फूल कैसे होता है?
कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
मन में विचार क्यों आते है,
प्यार में सबलोग दर्द क्यों पाते है?
देश के लिए सैनिक खून क्यों बहाते है,
इक धागे के वास्ते भाई बहन रिश्ता क्यों निभाते है?
जो होते है सबसे प्यारे,
वो हमें छोड़ इक रोज कहाँ चले जाते है?
आती है जब याद उनकी,
तो नैन अश्क क्यों बहाते है?
कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
जो होता है वो क्यों होता है?
जो नहीं होता है वो क्यों नहीं होता है?
15 comments:
भावपूर्ण प्रस्तुति.... सुंदर रचना
सुंदर रचना
मेघ मौसम,
गम नहीं कम,
पुनः फिर,
बीतेगा सावन।
भावपूर्ण रचना....
सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति ||
गंभीर विचारों की सहज सुन्दर कविता...
मन को उद्वेलित करने वाली भावपूर्ण रचना....
जो इस धोखे को समझ गया उसका तो बेड़ा पर हो गया....बहुत सुंदर प्रस्तुति !
बहुत सुंदर रचना है आपकी
गुस्से में आँखें लाल क्यों होती है,उदासी में मन क्यों बोलती है?
gussa aankhon ke madhyam se nikalta hai,man bol kar hi apne sukh dhoondhta hai.
bahut bhavpoorn likh rahe hain satyam ji.badhai.
aapki prastuti sarahniy hai .aap post ke sath bahut sundar v sateek chitr lagate hain .kya aap swayam sarjana karte hain ?
'जो है वो सब एक धोखा है'
इसी को वेदान्त में एक शब्द ‘माया’ द्वारा अभिहित किया गया हे, मा अर्थात् नही या अर्थात् जो यानी जो है वह वास्तव में नहीं है भ्रम है...बहुत सुन्दर
हर इंसान भगवान क्यों नहीं होता है,
आत्मा के बिना शरीर बेजान क्यों होता है?
हाँ हमने भी ये सब सोचा है....
गंभीर विचार, गहन चिंतनयुक्त सुन्दर रचना...
बड़ा प्रश्न आप का --जो है वो सब एक धोखा है सत्यम जी सुन्दर रचना -जीवन ही क्या है एक धोखा है -लेकिन हम क्यों निराशा जनक पहलू ही देखें आओ आइये सिक्के के उस और देखते बढ़ें -साकार को ...
शुक्ल भ्रमर ५
सार्थक प्रश्न अत्यंत मनमोहक अंदाज में पूछा गया है....
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना...
आभार...
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