मै कवि कहलाने का अधिकारी हूँ या नहीं,
मुझे नहीं पता।
पर कविता खुद ही छलक जाती है,
तो क्या करुँ?
नहीं पता दयालु मै हूँ या नहीं,
पर आँखों से अस्क बरस जाते है,
तो क्या करुँ?
शब्दों का आकाश मेरे जेहन में बसा,
विचारों के बादल उनपे उमर जाते है,कैसे?
मुझे नहीं पता।
दोनों के टकराने से कविता की बारिश हो जाती है,
तो क्या करुँ?
जज्बातों का रेत मेरी सूनी मरुभूमि की जान है,
ख्वाबों को पन्नों में सजाना ही मेरा काम है।
कवि की दृष्टि कही भी पहुँच जाती है,कैसे?
मुझे नहीं पता।
थोड़ी मोड़ी मेरी भावनाएँ भी रँगीन हो जाती है,
तो क्या करुँ?
डगर में खड़ा चुपचाप सोचने लगता हूँ,
भीड़ में भी खुद को अकेला कहता हूँ।
विचारों की आँधी में बह जाता हूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।
राहों में चलते हुएँ ही कविता बना लेता हूँ,
तो क्या करुँ?
आदमी सा मस्तिष्क आम है,
ये लेखनी मेरी जान है।
भाव की स्याही उमर पड़ते है इनमें,कैसे?
मुझे नहीं पता।
लेखनी कुछ भी लिखवा देती है,
तो क्या करुँ?
आमोद,हर्ष और विषाद का तांडव,
बिन भावों के ये जीवन है बस शव।
जीवन में इक सच्चा इंसान बनूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।
कविता मुझे भगवान बना देती है,
तो क्या करुँ?
इंद्रधनुष से रँगों को चुरा लेता हूँ,
चाँद की चाँदनी को छुपा देता हूँ।
जो चाहता हूँ करता रहता हूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।
लोग इन चंचलताओं को कविता नाम देते है,
तो क्या करुँ?
शब्दों की नदी पल में बहा देता हूँ,
भावों को अँजूरी में भरता हूँ।
शब्दों का कल्पनाकाश बनाता हूँ,
विचारों का महल सजाता हूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।
कविता खुद ही मेरी लेखनी से बरसने लगती है,
तो क्या करुँ?
25 comments:
शिवम भाई, चिंता क्यों करते हो, आप लिखते रहो, एक न एक दिन ये दुनिया आपको कवि मानने के लिए मजबूर हो ही जाएगी।
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बोलने वाले पत्थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
शिवम भाई
नमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
किस बात का गुनाहगार हूँ मैं....संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद
सरल ह्रदय और सच्चे व्यक्ति ही कवि ह्रदय के होते हैं और उस लिहाज से भी आप कवि ही हैं ।
सभी लक्षण तो संवेदनशीलता के है ...आप सही है
आप अपना काम बखूबी से कर रहे है हम तो आपको कवि मान गए , शुभकामनायें
मानव मन है, क्या करें?
bahut sunderrrrrrrr
kavita pata nahi kyu ban jaati hai...........shayad bhaw abhivyakt hue bina khud ko nahi rok paate.........
बहुत ही उम्दा रचना!
लोहड़ी तथा मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें..
बस आप लिखते रहिये ,
हम तो मानते हे आप को कवि जी, बस लिखते रहे ,धन्यवाद
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें ....
बहुत सुन्दर..आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं है, बस ऐसे ही लिखते रहिये..
achcha to likhe hain.
आप पूरी तरह से कवि कहलाने के अधिकारी हैं,बधाई अच्छे लेखन के लिये ।
बहुत सुंदर ....मनोभावों की प्रस्तुति...... अंतर्मन के सच्चे भाव...
कवि हैं इसीलिए तो कविता लिख पा रहे हैं।
‘कविता मुझे भगवान बना देते हैं‘ की जगह ‘कविता मुझे भगवान बना देती हैं‘ कर लीजिए।
धन्यवाद....आपसबों को यूँ ही मेरा उत्साह बढ़ाते रहे....
भईया ये कविता खुद छलकाने का फार्मूला मुझे भी बता दो बड़ी मेहरबानी होगी.और ऊपर से कमेन्ट भी खुद ब खुद पड़ जाए तो सोने पे सुहागा हा हा हा.....सराहनीय प्रस्तुति
जय साईं राम .
अक्सर एक सवाल मेरे मन मे सताए
कोई आये और इसका उत्तर सुझाये
क्या कागज कलम की दुनिया मे
मैं खो गया हूँ सो द question इस डेट
की क्या मे कवि हो गया हु?
अतीव सुन्दर रचना बधाई हो.
- अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"
amanagarwalmarwari.blogspot.com
marwarikavya.blogspot.com
भावों का होना ही कवि मान है ... शिल्प आते आते आ ही जाता है ... तो भावों को आने दो ...
आमोद,हर्ष और विषाद का तांडव,
बिन भावों के ये जीवन है बस शव।
बहुत सुन्दर रचना
सराहनीय पोस्ट
आभार
शुभ कामनाएं
बहुत अच्छी कविता
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
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