कुछ ऐसी लिखने की इच्छा,
दिल में अब भी दब जाती है।
मेरी कलम अब भी न जाने क्यों?
तुम पर लिखने से कतराती है।
मेरी भावनाएँ क्यों सोच तुम्हे?
कुछ कहते कहते रुक जाती है।
संवेदनाएँ बहते बहते ही,
खुद में ही जम सी जाती है।
जब कभी चाहा मैने तो आज,
इक गीत तुम पर लिख ही दूँ,
कुछ सुनु और कुछ गाऊँ भी,
जीवन से विमुख,तेरा रुख लूँ।
तब तब मेरी ये इच्छाएँ,
रह जाती है क्यों यूँ अधूरी,
तुम पर लिखने की आशाएँ,
किन बाधाओं से है जुड़ी।
तेरे पर कलम चलाना,
क्या इतना दुर्लभ सा है,
तु संगमरमर का कोई पत्थर,
मेरी कलम को क्या पता है।
तु बहती धारा गँगा की,
तु चाँदनी है रातों की,
तुम पर कहना,लिखना तो,
पहचान है मेरी मूर्खता की।
तु शब्द में कैद हो जाये,
ऐसा कैसे सम्भव है,
तु गीतों में बस जाये मेरे,
ये तो तेरा ही मन है।
पर कवि की इच्छा अब भी,
क्यों देख दिल में दब जाती है,
जब गीत बनाने की बारी,
तुम पर ही आ रुक जाती है।
मैने लिखा है भावों पर,
संवेदनओं पर,कुंठाओं पर,
हर्ष पर,विषाद पर,
और मँजिल पर राहों पर।
पर पता नहीं तु इनमे कौन?
जिस पर लिखने से ये लेखनी मौन।
क्या करुँ,क्यूँ मै अब पछताऊँ?
कैसे तुझको ये समझाऊँ।
जीवन है अधूरा मेरा,
जो तुम पर लिख न पाऊँगा,
उस रोज मिलेगी संतुष्टि,
जब गीत तुम पर ही बनाऊँगा।
वरना इच्छा ये कवि की,
अंतिम इच्छा बन जायेगी,
जीवन की सारी काव्य कृतिया,
मुझे असहाय नजर आयेगी।
कवि के आँसू पन्नों से,
तेरे मर्म को छू लेगा तब,
कवि की इच्छा जो अधूरी ही,
तोड़ लेगा तेरी बाहों में दम जब।
मेरी कविताएँ ही तो मेरा,
मान है,अभिमान है,
तुम पर लिखने की इच्छा,
मेरी विवशता की पहचान है।
लिखने दो अब अंतिम घड़ी,
अंतिम गीत ये जीवन का,
तुम पर लिखी ये पंक्तियाँ,
मेरी इच्छाओं और जतन का।
मै तो अब तक बस लिखता था,
इधर उधर की ही बाते,
तुम पर जो लिखा तो जाना हूँ,
क्या होती है खामोशी और सन्नाटे।
इक गीत मौन का तुम हो,
जो कलम ने मेरी लिख डाला,
सुनना चाहों तो सुन लो सभी,
मेरी इच्छाओं की स्वरमाला।
24 comments:
इक गीत मौन का तुम हो ..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
अति उत्तम अभिव्यक्ति॥……हर कवि की भावनाओ को शब्द दिये हैं बस जब उस पर लिखने लगता है कवि तभी उसकी साधना पूरी होती है।
मन में दबी इच्छा कभी न कभी निष्कर्ष पायेगी।
सत्यम जी , बहुत ही गहरा भाव लिये बेहतरीन कविता.......... . सुंदर प्रस्तुति.
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सैनिक शिक्षा सबके लिये
Nice Poem.
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
सुन्दर प्रस्तुति
मौन, खामोशी और सन्नाटे को अभिव्यक्त कर रही आपकी आजकी ये कविता बडा गूढ दर्शन दर्शा रही हैं । वाकई बेहतरीन...
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने ......... आपकी लेखनी को नमन.
बहुत सुंदर ओर गहरे भाव लिये हे अप की यह रचना धन्यवाद
बहुत सुंदर खामोश भावो की उम्दा अभिव्यक्ति.....
बहुत ही परिश्रम से रची गई सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आपका धन्यवाद!
सर्वप्रथम आप सबों को धन्यवाद...मै इस कविता के माध्यम से ये बताना चाहता हूँ,कि आखिर क्या है इक इच्छा कवि की जो हमेशा दबी दबी सी रहती है।वो जान नहीं पाता कि क्यों उसकी सभी कृतियाँ असहाय है,किसपर लिखना चाहता है वो...........
बेहद ही खुबसुरत रचना है आपकी। जितनी खुबसुरती से आपने इसे तराशा है उतनी ही खुबसुरत इसके भाव है। शुभकामनाए।
बहुत खूबसूरती से लिखी मन की व्यथा -
बहुत सुंदर .
बहुत दिनों के बाद अपने में इतने कोमल भाव लिये एक संपूर्ण लगती सी रचना पढने को मिली .बेहद खूबसूरत भाव .शुभकामनायें .....
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
मेरी कविता को चर्चा मंच पर लेने के लिए ह्रदय से आभार .
अच्छी और भावपूर्ण कविता। पूरे मनोयोग से लिखी गई ऐसा प्रतीत हुआ। बधाई हो आपको।
सुन्दर अभिव्यक्ति.
एक कवि की व्यथा का बहुत अच्छा चित्रण किया है। बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बेहद खूबसूरती से मन की व्यथा को उकेरा है
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
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