मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।
कौन सी पहचान मेरी कौन हूँ मै?
तुम हो मेरे या मै तेरा हो गया हूँ।
ना रही अब सुध मुझे अपने डगर की,
राह,मँजिल,लक्ष्य को मैने भूलाया,
बूँद बन कर बह गया जब आँख से दिल,
तब कही जाकर है मैने तुमको पाया।
मै हूँ तुझमे या कि तेरे ही ह्रदय का,
मेरे ह्रदय में बन बसेरा हो गया हूँ।
मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।
मौन की मालाओं में जो शब्द तुमने,
प्रेम से अपने था स्नेहीत कर पिरोया,
राग से संगीत की वो गूँज जिसको,
मेरे मन की बाँसुरी से तुमने गाया।
ढ़ुँढ़ते है साज अब तो बस तुम्ही को,
साँस बन कर आज तेरी धड़कनों में,
प्राण की पहचान बनकर मै तुम्हारे,
रग में रक्त रक्त सा बन खो गया हूँ।
मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।
है प्रवेश मेरे ह्रदय का तेरे ह्रदय में,
आत्मा से है परमात्मा का मिलन,
मेरा,तेरा हो जाना है स्वप्न मिथ्या,
ये तो है "मै" का "तुम" को नमन।
भूल कर अब लौ सी अपनी जलन को,
मोम सा बन हर पल तुझमें गल गया हूँ।
मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।
16 comments:
बहुत ही गहरी पंक्तियाँ।
गहन अर्थ लिए अभिव्यक्ति.....
ढ़ुँढ़ते है साज अब तो बस तुम्ही को,
साँस बन कर आज तेरी धड़कनों में,
प्राण की पहचान बनकर मै तुम्हारे,
रग में रक्त रक्त सा बन खो गया हूँ।
bahut gahan bhavon se bhari aanand se sarabor karti abhivyakti.badhai satyam ji.
है प्रवेश मेरे ह्रदय का तेरे ह्रदय में,
आत्मा से है परमात्मा का मिलन,
मेरा,तेरा हो जाना है स्वप्न मिथ्या,
ये तो है "मै" का "तुम" को नमन।
भूल कर अब लौ सी अपनी जलन को,
मोम सा बन हर पल तुझमें गल गया हूँ।
बहुत सुन्दर और भावमयी रचना ..यह पंक्तियाँ विशेष पसंद आयीं ..
बहुत सुंदर, रंगने में बुराई भी क्या है भाई। एक न एक दिन तो हर कोई रंगता ही है।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
भूल कर अब लौ सी अपनी जलन को,मोम सा बन हर पल तुझमें गल गया हूँ। ...waah
ढ़ुँढ़ते है साज अब तो बस तुम्ही को,
साँस बन कर आज तेरी धड़कनों में,
bahut sundar...
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
बहुत सुन्दर और भावमयी रचना
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
प्रेम और समर्पण के भावों से सजी सुंदर कविता !
ढ़ुँढ़ते है साज अब तो बस तुम्ही को,
साँस बन कर आज तेरी धड़कनों में,
प्राण की पहचान बनकर मै तुम्हारे,
रग में रक्त रक्त सा बन खो गया हूँ।
bahut sunder
rachana
संवेदन शील अभियक्ति ,मनोभावों को श्वर मुखरता को पर देती हुयी ,प्रभावशाली बन चली है ..शुक्रिया जी /
गंभीर भावाभिव्यक्ति !!
है प्रवेश मेरे ह्रदय का तेरे ह्रदय में,आत्मा से है परमात्मा का मिलन,मेरा,तेरा हो जाना है स्वप्न मिथ्या,ये तो है "मै" का "तुम" को नमन।
भूल कर अब लौ सी अपनी जलन को,मोम सा बन हर पल तुझमें गल गया हूँ।
मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।bahut hi sunder bhav liye sunder shabdon ka chayan,abbhoot rachanaa.badhaai sweekaren.
बेहद खूबसूरत रचना है अभी अभी बागी फ़िल्म रिलीज हुई है उस का एक गाना लगता है आपकी ही रचना का हिस्सा है
में तो तेरे रंग में रंग चूका हु
बस तेरा हो चूका हु
मेरा मुझेमें कुछ नहीं सब तेरा
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