Thursday, March 3, 2011

साई कृपा

सौहार्द्र,प्रेम,स्नेह से,
उत्पन्न हुआ एक दिव्य पुंज,
क्या तेज थी,मुख ओज सी,
चारों दिशाओं में हुआ वो रम।
वो राम था या रहीम था,
जाने वो कैसा पीर था,
वो साई था,वो ही माई था,
दीन दुखियों का वो तकदीर था।

मुख ओज से यूँ दिव्य था,
हर जगह उसका ही गूँज था,
वो देव था,अवतार था,
सारे धर्मों का वो सार था।

भगवान की दैविकता दिखती थी,
अल्लाह की मुस्कुराहट थी छिपी,
इसा के जैसा सौम्य था,
खुदा हो के भी खुद से था जुदा।

उसका ना कोई जन्म था,
दिल माँ के जैसा मर्म था,
मदहोश थे सब सो गए,
उसमे न जाने क्यों खो गएँ?

शिरडी की पावन धरती पे,
एक सितारा टुट के आ गिरा,
रहता था वो,कहता था वो,
सब एक है,सब एक है,
सबका मालिक एक है।

परोपकार का,सद्भाव का,
हर एक के मन भाव का,
टुटे हुए हर छन्द का,
धर्मार्थ उत्पन्न जंग का।

वो युग्म था,वो जोड़ था,
संधि सेतु जैसा वो था खड़ा।

हम दीन हीन रुग्न थे,
वो सत्यजीत सत्संग था,
हम श्राप से यूँ तृण थे,
वरदान बन के था खड़ा।

हमें देखता,कुछ बोलता,
ऊपर की ओर था घुरता,
हँसता था वो,कहता था वो,
सब एक है,सब एक है,
सबका मालिक एक है।

हमने कहाँ ऐ देवता!
हमसे तेरा क्या वास्ता,
क्यों रोता है,खुश होता है,
दुख सुख से तु क्यूँ दो चार होता है?

नीलकंठ है,तु संत है,
हम सब का तु ही मंत्र है।

तेरे ध्यान में,तेरे प्यार में,
ये कैसा है चमत्कार प्रभु,
दुख मिटता है,मुख रटता है,
बस साई,श्रद्धा और सबूर।

कलियुग के इस घनघोर में,
पापिजगत की होड़ में,
तु है खड़ा बन भोर है,
तु ही सदा,तु ही श्रद्धा,
तु ही दुखों का चोर है।

जब भी कभी दुख में प्रभु,
कोई तुमको दिल में ढ़ुँढ़ता,
सत्,चित,आनंद के रुप तुम,
उसके दिल से ही पूछता,
क्या कष्ट है,क्यूँ त्रस्त है,
मेरे बच्चे तु क्यों आज रुस्ट है?

मै साथ हूँ,तेरे पास हूँ,
फिर जाने क्यों तु भयभीत है।

जब मन वियोग में तप कर,
कंचन सा हो जाता है,
तब साई कृपा की बारिश में,
वो भींग के अतिसुख पाता है।

साई मेरा,साई तेरा,साई सब का प्यारा,
बस मन मेरे रट ले इसको,
साई दुख हरेगा सारा।

20 comments:

OM KASHYAP said...

OM SAI RAM
SAI SAB KE PYARE

vandana gupta said...

ओम साईं राम्…॥…।बहुत सुन्दर रचना।

प्रवीण पाण्डेय said...

महान आत्मा, इस धरा पर।

kshama said...

Kaisa sant faqeer hua wo!Sach!

Dr Varsha Singh said...

अद्भुत! अलौकिक!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर स्तुति, धन्यवाद

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बेहद सुंदर .....

Kailash Sharma said...

बहुत भक्तिपूर्ण प्रस्तुति..

Sadhana Vaid said...

भक्तिभाव से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

VIVEK VK JAIN said...

bada achha likha h.....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सुन्दर आध्यात्मिक रचना के लिए साधुवाद...

Sushil Bakliwal said...

श्रद्धा और सबूरी...

ओम् सांई राम.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

महान आत्मा को समर्पित निर्मल शब्दांजली पढ़कर आनंद आ गया।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रिय बंधुवर जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

जय सांईनाथ !
शिरडी की पावन धरती पर ,
एक सितारा टूट के आ गिरा ,
रहता था वो, कहता था वो ,
सब एक है,सब एक है ,
सबका मालिक एक है !

परोपकार का , सद्भाव का ,
हर एक के मन भाव का ,
टूटे हुए हर छंद का ,
धर्मार्थ उत्पन्न जंग का !

वो युग्म था , वो जोड़ था ,
संधि सेतु जैसा वो था खड़ा।

बहुत सुंदर रचना हैं … आभार !
आपका ब्लॉग भी बहुत सुंदर है … बधाई !

हार्दिक शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों से रची यह रचना बेजोड़ ...आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Om sai, jai jai sai............:)

adhbhut rachna...bhai..:)

Anonymous said...

...बहुत सुन्दर एवं शुभ

पूनम श्रीवास्तव said...

om ji
bahut badhiya bahut hi sunadar aur man ko ,antratma ko jagati sai baba par likhi aapki post hridyagam ho gai.
sach main to khud sai naam ki diwaani hun.

sai se hi subah hoti ,sai se hi shaam
jo man se ratta sai-sai,purn hote sab kaam
bhaj le pyare .jap le pyare,sai-sai naam
malik sabka ek hai ,kahte baba sai ram.
bahut hi ojpurn prastuti---
poonam

vibha said...

साईं.....जैसा पावन नाम. मन को आराम...देता है .
कोई दुःख...हो कोई संकट ..साईं का साथ हमने हर जगह पाया है ...मेरे उनपर प्रगाढ़ आस्था है ....आपने बहुत अच्छा लिखा है
.....

संध्या शर्मा said...

भक्तिभाव से परिपूर्ण, बहुत सुन्दर प्रस्तुति... शुभकामनाये...