तुम्हारी धुन पर नाचे आज मेरे गीत,
कहो तुम हो कहाँ ओ व्याकुल मन के मीत।
झंकृत है ये तन,मन और जीवन,
हो रहा है ह्रदय नर्तन,
थिरक कर कर रही कोशिश,
झूमने की आज दर्पण।
होंठों पर सुरमयी शब्द के,
अक्षरों की होगी जीत।
तुम्हारी धुन पर नाचे आज मेरे गीत।
बहकने लगे है सुधियों के नियंत्रक,
तन और मन दोनों गये है थक,
बस नैन एकटक निहारे जा रही है,
ह्रदय स्पंदन हो रही है धक,धक।
चलचित्र सा हो रहा है दृश्य वो पल,
जो सुहाने दिन गये कल बीत।
तुम्हारी धुन पर नाचे आज मेरे गीत।
एकाकीपन ने लाखों में कर दिया अकेला,
ना जाने छटेगी कब ये विरह वेला,
तुमने है जब से फेर ली अपनी निगाहें,
सूना है ये मन और जीवन का हर मेला।
थोड़ी हँसी फिर आंसुओं की बरसात,
शायद यही है मोहब्बत की रीत।
तुम्हारी धुन पर नाचे आज मेरे गीत।
स्वप्न वह रात की,सौगात की,
तुम बिन तुम्हारे साथ की,
बिन सेहरे और जोड़े के सजे,
दुल्हा,दुल्हन के बारात की।
दिल से ही हुयी सगाई दिल की,
कैसी है ये अपनी प्रीत।
तुम्हारी धुन पर नाचे आज मेरे गीत।
मिला ना तन से अपना तन,
बेचारा मन गया तेरा बन,
विह्वलता,व्याकुलता और अकुलाहट,
में सनी है रात,दिन हर क्षण।
विवश है ये कहानी प्यार की,
हर मौन है संगीत।
तुम्हारी धुन पर नाचे आज मेरे गीत।
5 comments:
बेहतरीन काव्य
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