आज मुझसे पूँछ बैठा,
दर्पण ने ही मेरा परिचय,
कहने लगा मै जानता हूँ,
उम्र का जो फासला किया तुने तय।
मेरे नयन में तेरी छवि,
है बसी बड़ी पुरानी,
दर्पण को परिचय देना,
तो है तेरी नादानी।
तेरे नन्हे हाथ, नन्ही आँखों के,
हर ख्वाब को देखा मैने करीब,
बनते सँवरते और बिगड़ते,
वक्त के थपेड़ों पे तेरा नसीब।
तेरे वजूद का निर्माण देखा,
तेरे अरमानों का अवसान देखा,
देखा है मैने उम्र दर उम्र,
तेरी हथेली की बदलती रेखा।
तसवीर तुम्हारे बचपन के,
मस्ती का और जवानी का,
हर वो मंजर था जो आया,
जिंदगी की अल्हड़ मनमानी का।
पढ़ता रहा तेरे चेहरे को,
और तु बिन बताए सब बोल गया,
दर्पण से तु दूर रहा पर,
खुद असलियत अपनी खोल गया।
गमों के वक्त में तेरा हमराज मै,
दुनिया से दूर छुपा तेरा राज मै।
कहा तुने मुझसे दर्द दिल का,
और दिखाया जख्म अपने,
मैने किया उपचार जो,
मरहम बन गए तेरे अधूरे सपने।
आँखों में देखा जो तु इक बार,
विश्वास बढ़ा तेरा हर बार।
आज खुद को पहचान कर ही,
कैसे किया तुने,
दर्पण के परिचय से इंकार।
दुनिया को होगी जरुरत,
तेरे पहचान की,
दर्पण से परिचय तो है,
ठेस मेरे सम्मान की।
तेरा और मेरा तो,
साया और तन सा साथ है,
दोनों में हो कोई पहचान,
परिचय को,
बताओ ये कैसी बात है.......।