Tuesday, May 31, 2011

फिर तुमको हम ढ़ुँढ़ रहे है....

फिर तुमको हम ढ़ुँढ़ रहे है,
आँगन और गलियारों में।
साथ तुम्हारा चाहते फिर है,
जीवन के उजालों में।

संग है कितना प्रिय तुम्हारा,
कैसे ह्रदय बतला पाये,
दूर तुमसे होकर अब तो,
दिल की जान ना निकल जाये।

चाँद में ढ़ुँढ़ू,आसमां में,
या कि ढ़ुँढ़ू सितारों में।

फिर तुमको हम ढ़ुँढ़ रहे है,
आँगन और गलियारों में।

वक्त था वो भी बड़ा निराला,
जब तुम पास में रहते थे,
प्यार के गीत सुनाता था मै,
और तुम अच्छा कहते थे।

महक उठे उन गीतों से यादें,
आई हो तुम फिर बहारों में।

फिर तुमको हम ढ़ुँढ़ रहे है,
आँगन और गलियारों में।

तूमने सीखाया प्यार निभाना,
और मै प्रेमी बन बैठा,
भूल के अपनी सारी रंगत,
तेरे ही रंगों में रंग बैठा।

अब तो जीवन टुकड़ों में है,
या टुकड़े ही टुकड़े है हजारों में।

फिर तुमको हम ढ़ुँढ़ रहे है,
आँगन और गलियारों में।

Saturday, May 28, 2011

तू कौन है

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से,
पृथ्वी,जल और नभ से,
मै पूँछता था सब से,
तू कौन है,तू कौन है?

तुम्ही तो थे बस साथ जब,
कोई न था मेरे पास जब,
भूला नहीं मै तुझको अब,
भूला है क्यों तू मुझको अब,
प्रिय है तुही तो मुझको सब से!

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

निंद बन कर मेरे नैनों में,
तू ही मुझे सुलाता है,
अस्क बन कर मेरे नैनों से,
बहता है और रुलाता है!

कई रुप-रंग जीवन का अनूठा,
हर पल मुझे दिखाता है,
मुझको कही बुलाता है,
तू पास से या दूर से!

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

बँधन में बाँधे है मुझको,
तेरी ही माया का बँधन,
अपरिचित तेरी शक्ति को,
करता हूँ हर दम मै नमन!

हर रात नैनों में स्वप्न तेरा,
स्वप्न में होता था मै अकेला,
आता था और कहता था तू,
मै तो हुँ तेरा कब से!

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!
अनंत सागर में वो चाँद,
मेरे पथ को करता था आलोकित,
मै तो हुँ इक स्वार्थी,
तू तो था मुझको ही समर्पित!

ना जान सका,पहचान सका,
तू तो था मेरे साथ तब से!
मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

मेरे जन्म के समय,
मेरी मुस्कुराहटों में तू था,
मरणासन सेज पर था मै,
तू चुपचाप धीर,निर्भय था!
जीवन में मेरे बन कर उजाला,
आत्मदीप तू अमर था,

मेरे साथ था तू अंत तक,
मेरे मरण तक,मेरे जन्म से!

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

परछाई मेरी थी,पर था तू,
मै तो था मै,मै था तू!

तू ही था जीवन का लगाव,
हृदय से छलकता पावन भाव,
तू ही था मेरा मनमीत,
सदियों से खोया हुआ मेरा इकलौता,अनोखा प्रीत!

विरह व्यथीत मै हो जाऊँगा,
बिसराना ना तू मुझे अब से!

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

अनंत गगन में उड़ते दो परिंदे,
इक मै था,इक तू था!
क्षीर सागर में तैरते दो मीन,
इक मै था,इक तू था!

प्रभु के चरण में बैठा कभी मै,
इक मै था,प्रभु तू था!
मनवंतर के कई सर्गो में जन्मे,
इक मै था,इक तू था!
नर मै था,नारायण तू था,
कई युगों से,कई सदियों से!
मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

तुने मुझपे सब वार दिया,
हर पल दिया,ना कुछ लिया,
मैने तेरा तिरस्कार किया,
अस्तित्व तेरा बिगाड़ दिया!

फिर भी तुने ना कुछ कहा,
तू था वही,मै था जहाँ,
न जाने किस प्रेम के वश से!

मेरे साथ था तू कब से,
मै था या ना था जब से!

जिस प्रेम के कारण,
तुने मुझे कभी ना भूलाया,
जिस रिश्ते के वास्ते,
हर जन्म में तुने साथ निभाया!

मै सौगंध अपनी देता हूँ,
और आज तुझसे कहता हूँ!
बता दे तू मुझे,वरना मुझे कुछ ना सुझे,
तू कौन है,तू कौन है!

हर जन्म में,हर राह में,
मेरे साथ है,मेरे पास है,
फिर भी ये कैसी नियती है,
तुझको मै ना पहचान सका!
न जाने तू कौन है,तू कौन है,
तू कौन है?

Thursday, May 26, 2011

नई दुनिया

कही सुनसान,महफिल विरान,
कही हो रहा बडा़ शोर!
बस भाग-दौड़,बढ़ने की होड़,
स्पर्धा की ईंट से बना,
नई दुनिया का हर मकान!
ये दुनिया इक अजब से,
मुकाम से कराती है सामना,
चाहत है सभी को तो,
बस कामयाबी के ही हाथों को थामना!
बीती घडी़,बीते लोग,
छुट जाती है पुरानी दुनिया,
से बिछुरने का वियोग!

नई दुनिया दिखाती है नये सपने,
छुट जाते है सभी पराये और अपने!
भावनाए बह जाती है मोम सी,
बस वो दीप-लौ उर में समा जाता है!
नई दुनिया देती है इतनी प्रलोभन,
हर भाव और बात भूला जाता है!

सुविधाएँ उपलब्ध होती है,
वो सारी जिसकी इच्छा थी,
चिंता और अशांति करती है पीडी़त,
नई दुनिया लगती है मृगतृष्णा सी!

बढ़ते ही जाते है राही,
मँजिल से भी दूर हो आते है,
इक बार जो मुड़ के देखते है,
खुद को आबादी से दूर पाते है!

चाह के भी लौट ना पाते,
नई दुनिया की रँगरलीयों से,
मिल जाती है नागरिकता नई दुनिया की,
जकड़ जाते है बेड़ियों से!
हर जज्बात,बचपन की बात,
माँ-बाप का साथ,
चैन से गुजरती थी कभी घर में रात,
दिखती थी कभी कोई खिड़की से,
मिल जाती थी बिन माँगे ही हर सौगात,
होती थी घंटो बैठ दोस्तों से बात।

नई दुनिया होती है कितनी जुदा,
भूल जाता है इक भक्त,
अपना भगवान,अपना खुदा!

पैसो की चादर ओढ़ता है,
पैसो की भाषा बोलता है,
बस पैसा-पैसा करता सारी उम्र,
इक कफन भी नसीब ना होता है,
चार कँधे भी ना मिलते है,
जब इक और नई दुनिया से बुलावा आता है!

Tuesday, May 24, 2011

मुझे देख कर....

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा,
अपना प्यार मुझपे,
अब जताना नहीं पड़ेगा।
दूर चला जाऊँगा मै,
सारे रिश्ते तोड़ के,
लाख जतन तुम करती रहना,
टुटे गाँठों को जोड़ के।

अब ना नजर आऊँगा मै,
इन आँखों के पोर से।

मुझसे अब तूमको,
नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

सो जाऊँगा कभी मै मौत की गहरी नींद में,
रुह बना मै रोज मिलूँगा,
तूमसे सपनों के हिलोड़ में।

लाख जतन तुम करती रहना,
अपने हाथ पाँव जोड़ के,
कभी भी लौट के ना आऊँगा मै,
इन आँखों को खोल के।

लोरी गा के रात में,
मुझे सुलाना नहीं पड़ेगा,
अब तूमको मुझे जगाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

जब कभी याद आऊँगा मै,
बदली बन कर फलक पड़ छा जाऊँगा मै।

यादों का सरताज बना मै,
अपना वो गीत फिर गुनगुनाऊँगा,
फिर से अब यूँही तूमको,
मेरा वो गीत गुनगुनाना पड़ेगा।

वीणा के हर तार पे पाँव रख कर,
फिर से अब तूमको,
मेरे लिए आना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

बादल बन के नभ में मै,
बारिश के साथ धरा पर बरसता रहूँगा,
टीप टीप बूँदों सा बना मै,
नदियों सा सागर को तरसता रहूँगा।

लाख जतन तुम करती रहना,
बूँद बूँद को जोड़ के,
बूँद बूँद से सागर बना मै,
अब तो सूख ना पाऊँगा।

मेरे भीगे तन को अब तूमको,
सूखाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।
नये फूल सा हर मौसम में मै,
खिलता और मुरझाता रहूँगा,
तेरे प्यार में गीतकार बना मै,
रोज नये गीत बनाता रहूँगा।

लाख जतन तुम करती रहना,
बाग के फूल को तोड़ के,
अब ना गाऊँगा मै,
इन होंठों के शोर से।

मेरे जुदाई पे अब तूमको,
आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

इंद्रधनुष के सात रंगों में मै,
रंगीला हो जाऊँगा,
रग रग में अब रंग रंग से,
रंगोली बन जाऊँगा।

लाख जतन तुम करती रहना,
मेरे रग से रंग निचोड़ के,
नहीं मिल पाऊँगा मै,
रंगों के झनझोर से।

मेरे तन पे अब तूमको,
रंग लगाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

नये देश और नये वेश में,
परदेशी हो जाऊँगा,
आज यहाँ कल जाने कहाँ,
अपना डेरा बसाऊँगा।

लाख जतन तुम करती रहना,
तिनकों से घर जोड़ के,
अब ना रह पाऊँगा मै,
अपनी दुनिया छोड़ के।

मेरे साथ अब तूमको,
घर बसाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

आँखों का आँसू बन के मै,
तेरी आँखों में ठहर जाऊँगा,
नेत्र जलद में नीर बना मै,
रोज गोते लगाऊँगा।

लाख जतन तुम करती रहना,
रो रो के शाम तक भोर से,
आँखों से बह पाऊँगा न मै,
उस सुरीली दुनिया को छोड़ के।

मेरे लिए अब तूमको,
आँसू बहाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

रात में मद्धम प्रकाश बना मै,
तेरे काले बालों में समा जाऊँगा,
निशा काल में चाँद बना मै,
रोज तेरे छत पे आऊँगा।
लाख जतन तुम करती रहना,
लौट आऊँ मै इस घनघोर से,
तारों को छोड़ आ पाऊँगा न मै,
उस जादुई नगरी को छोड़ के।

मेरे लिए अब तूमको,
सपने संजोना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

दुनिया में प्यार का दूत बना मै,
हर पल प्यार लुटाऊँगा,
दुष्ट तन में प्यारा सा दिल मै,
प्यार का पाठ पढ़ाऊँगा।

लाख जतन तुम करती रहना,
कि मै गुजरुँगा तेरी ओर से,
तेरी ओर अपना रुख मोड़ पाऊँगा न मै,
टुटे हुए हर बंधन को जोड़ के।

ऐसा नाम कर जाऊँगा मै,
सबके दिलों में नजर आऊँगा मै।

मुझे देख कर अब तूमको,
नजरे चुराना नहीं पड़ेगा,
मेरे लिए अब तूमको,
कही सर झुकाना नहीं पड़ेगा।

मुझे देख कर अब तूमको,
मुस्कुराना नहीं पड़ेगा।

Saturday, May 21, 2011

इस बार नहीं मै पास तुम्हारे

इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!

बहती है फिर भी मंद पवन,
उन्मुक्त है फिर भी आज गगन,
सरिता की कल-कल की मधुर-ध्वनि,
सुनते होंगे प्रिय कर्ण तुम्हारे!
इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!
खुशियाँ तो अब भी आती होगी,
हर शाम कोई गीत सुनाती होगी,
मदमास की सुहानी भोर में,
कोयल इक गीत तो गाती होगी!
फिर व्याकुल नैन अधीर होकर,
बस राह तके दिन-रैन निहारे!
इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!

मुझको कोई ऐसे पुकारे,
गाने लगे अनगिनत तारे,
है इक उदासी छायी तु जा,
इस बार ना अपनों को बिसरा!
पर जीवन के उस दूर सफर से,
चाह कर भी ना लौटे पाँव हमारे!
इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!

वो पल जो कल है बीत गये,
न जाने कितने मीत गये,
अब साथ है कई चेहरे नये,
पर यादे हर क्षण टीस रहे!
जीवन में सबकुछ जीत के हम,
बस आज इक पल में हारे!
इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!

विवशता बनी मेरी लाचारी,
इच्छा,आकांक्षाए भी है हारी,
मग में कोई मुझको रोक गया,
उर में पैदा इक शोक नया!
घुटती है रह-रह प्राण-श्वास,
जम से गए है नसों में लहु सारे!
इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!
तुम्हे भेज रहा हूँ इक स्पर्श,
मेरे साथ होने का अनूठा हर्ष,
इक दर्पण दिल के तसवीरों का,
यादों के मोती-हीरों का!
इक गीत भी मै अब गाता हूँ,
सुन कर तारीफ में कुछ कहना,
तुमसे फिर दूर कही जाता हूँ,
फिर से अकेली ही तुम रहना!

मै तेरे पास ना आ सका तो क्या,
तेरे पास जायेंगे मेरे गीत प्यारे!
इस बार नहीं मै पास तुम्हारे!

Monday, May 16, 2011

सब कुछ सीख लिया हूँ अब

सब कुछ सीख लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
जान लिया हूँ सब कुछ अब,
जो जाना हूँ वही सही है।

ज्ञान ही ज्ञान भर गया है मेरे मस्तिष्क में,
अब मै विद्वता के उच्चतम शिखर पर विराजमान हूँ,
चाँद भी है आसमां में तारों के बीच में,
पर मै तो दुनिया से बिल्कुल अन्जान हूँ।

नादान है मेरा ये ज्ञान आज भी,
जो जीवन का सत्य ना जान पाया,
परेशान है मेरा अक्ल जो कि,
विज्ञान से परे रहस्य ना खोज पाया।

सब कुछ देख लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है।
पर आँखों को इंतजार है जिनकी झलक अब,
वैसा कोई साथी ही नहीं है।

हाथों से जाम पिलाने वाला अब,
कोई साकी ही नहीं है।

दौलत और शोहरत भर गया है मेरे दामन में,
अब मै दुनिया का सबसे बड़ा धनवान हूँ,
फूल भी है बाग में काँटों के बीच में,
पर मै तो दानवों में इंसान हूँ।

मजबूर है मेरा ये दौलत आज भी,
जो किसी की जान ना खरीद पाया,
कुर्बान है मेरी शोहरत जो कि,
आत्मा के रहस्य को ना सुलझा पाया।

सब कुछ पा लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर जिसकी खातिर मै रुका हूँ अब,
वो तो यहाँ भी नहीं है।

दिल को बहलाने वाला अब,
कोई झाँकी ही नहीं है।

कब्र पर खिला वो फूल भी खुशनसीब है,
जो मौत पर भी किसी के खुशबू तो लुटा सका,
पाँव में चूभा वो सूल भी खुशनसीब है,
जो दर्द देकर भी मँजिल का राह तो दिखा सका।
पर न जाने मेरा कैसा नसीब है,
अपने मुक्कदर पर दो आँसू ना बहा सका।

सब कुछ छू लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर जिनके स्पर्श को ठहरा हूँ अब,
वो तो जहाँ में ही नहीं है।

राह में साथ निभाने वाला अब,
कोई हमराही ही नहीं है।

काश जहाँ में खुदा को बुला सकता,
धरती से आसमां तक राह बना सकता,
जो चाहता वो मै कर पाता,
मन में आँख और आँखों में सपने बसा पाता।

पर वीरान है मेरा ये जहाँ आज भी,
जो पत्थर पर फूल ना खिला पाया,
गुमनाम है मेरा पता जो कि,
खुदा तक अपना खत ना पहुँचा पाया।

सब कुछ जी लिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर कानों को याद है जिस संगीत की,
मुख वो गीत गाती ही नहीं है।

आँखों में नींद ही नींद था कभी,
अब मुझे नींद आती ही नहीं है।

मँजिल मुझे बुलाती है आज भी,
पर चाह के भी दो कदम ना चल पाया,
जीवन मुझे रंग दिखाती है आज भी,
पर उनमें से दो रंग ना चुन पाया।

सब कुछ लुटा दिया हूँ अब,
कुछ बाकी ही नहीं है,
पर करीब था जो मेरे कल तक,
अब वैसा कोई साथी ही नहीं है।

राहों में जो नजरे बिछाए रहता था,
अब वैसा कोई साथी ही नहीं है।

हिचकीयाँ जो आती थी पहले,
लगता था किसी ने याद किया है,
सिसकियाँ भर भर के जैसे,
रब से किसी ने फरियाद किया है।

वो नूर जिसपे गुरुड़ था,
वो भी किसी ने छिन लिया है,
सब कुछ भूला दिया हूँ अब,
कुछ याद ही नहीं है।

बीते हुए हर याद,
अब भी दिल में हँसी है,
आँखों में आसमां की ऊँचाई,
पाँव में अब भी जमी है।

Wednesday, May 11, 2011

सेमेस्टर का प्यार


"इंजीनियरींग लाईफ का लास्ट सेमेस्टर भी खत्म हो गया है...अब बस चंद दिनों में ये मस्ती के किस्से भी गुजरे जमाने हो जायेंगे...आज आप सब के सामने एक ऐसी रचना जो प्रेम के रंगों के संग ही हर सेमेस्टर की मेरी यादों को समेटे है...."

आँखे मिली,मन घबराया,
दिल धड़का फिर उसको पाया।
वो नयी नयी सी लगे मुझे,
न जाने क्यों हर बार?

मेरी तमन्ना,मेरी ख्वाहिश,
मेरे सेमेस्टर का प्यार।

नया मौसम है बड़ा सुहाना,
रोज होता अब आना जाना,
राहों में उसके पीछे,
खड़ा रहता घर के निचे।

भाई से उसके लगी मुझे है,
आज बड़ी ही मार।

दर्द में भी इक मजा है,
मेरे सेमेस्टर का प्यार।

मोबाईल मेरा रहता था गुमशुम,
अब बजता है हर दम टुन टुन,
मैसेज पैक भरवाना है,
रीचार्ज भी करवाना है।

बातें होगी लम्बी लम्बी,
सूरज,चाँद,सितारों की,
टाईम पास की ये गठबंधी,
सूने आँगन में बहारों की।

बात करते करते जागा मै,
आज भोर के चार।
रात रँगीला,दिन सुहाना,
मेरे सेमेस्टर का प्यार।

कोर्स के बुक मै ना पढ़ता अब,
मै पढ़ता हूँ लव स्टोरी,
प्रैक्टिकल में ना समय गँवाता,
रटता लव की अटरेक्सन थ्योरी,

C++ के प्रोग्राम को,
कम्पाईल बिना ही रन करता,
देख के उसकी कातिल अदाएँ,
प्वाईजन बिना ही मै मरता।

तन के गर्म हुए बिन ही,
चढ़ा मुझपे लव का बुखार।

एक दवा है या मर्ज है,
मेरे सेमेस्टर का प्यार।

ख्याल उसका आँखों में हर दम,
बिन बादल ही बारिश झम झम,
फोन लगाता जब उसको मै,
वो करती है बाते अब कम।
लगता है मै हो गया लाईन में पिछे,
कोई और है अब उसका बलम।

खाना भूला,पीना भूला,
जीवन से गया मै हार,
बेदर्दी और बेवफाई ही तो है,

मेरे सेमेस्टर का प्यार।

इक्जाम की टेनसन,
और मेरा गुमशुम मन,
बिन प्यार के हुआ दिल,
बिल्कुल खाली उजड़ा चमन।

बहारों का मौसम न जाने कब आयेगा,
कोई जो मुझको फिर आवाज लगायेगा।

ढ़ुँढ़ुगा उसे फिर यहाँ वहाँ,
वो प्यार नया फिर होगा जवाँ,
पता नहीं ये कौन सी बारी,
पर होगा मेरा पहला प्यार।

बीति बातों सी हुई कल की,
मेरे सेमेस्टर का प्यार।

नई कहानी,मेरी जुबानी,
मेरे प्यार की मुझसे मनमानी।

कल होगी फिर इक अकेली,
नेक्सट सेमेस्टर की नई नवेली।
इजहारे मुहब्बत करेंगे हम,
बिन प्वाईजन के फिर मरेंगे हम।

फिर होंगे सेमेस्टर के क्लास,
नया चेहरा फिर मुझको रास,
फिर मै उसपर फिदा होऊँगा,
इस बार तो पूरा जुदा होऊँगा।

खत्म होंगे क्लास,खत्म होगा सेमेस्टर,
बस जुड़े रहेंगे दिल के तार।

याद आयेगा फिर गिन गिन कर मुझको,
मेरे सेमेस्टर का प्यार........।

Thursday, May 5, 2011

माँ तू अगर ना होती....

"माँ जिसकी ममता और स्नेह के छावँ में पलता हुआ आज मै इतनी बड़ी दुनिया में अपने छोटे से वजूद को चिन्हित करने में सक्षम हूँ।बस एकमात्र माँ का ही प्यार ऐसा है जो किसी भी प्रकार के स्वार्थ से रहित गंगा सा पावन होता है।

आज अपनी माँ के जन्मदिवस के मौके पर मै बस भगवान से यही दुआ करता हूँ,कि जिन्दगी के हर मोड़ पर बस ऐसे ही माँ के आँचल के साये तले साँस लेता रहूँ....माँ यूँही हमेशा,हरदम परिवार में खुशियाँ लुटाती रहे.....माँ मै आपको बहुत प्यार करता हूँ,पता है ना आपको।पर थोड़ा नादान हूँ अभी क्या करुँ जैसा भी हूँ आपका ही तो लाडला हूँ......
"माँ जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं"
श्रीमति नीरा शिवम

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती,
मै कुछ भी तो ना होता,
जो तू ना होती।

तू हाथ देके मुझको ना चलना सिखाती,
जीवन के हर सुख दुख को जो ना बताती।

अस्तित्व मेरा न होता,
ना ये साँस होती,
जीवन में ना अब मेरे दिन रात होती।
मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

कैसे बताऊँ माँ कितना प्यार है तुमसे,
चाहता हूँ बस हमेशा यूँही दूलार तुमसे।

तुम जो यूँ रुठ जाती हो माँ,
बच्चे के बात को दिल से लगाती हो माँ,
सच कहता हूँ दिल बहुत रोता है,
अपने व्यवहार पे क्रुध होता है।

मेरे लिए ना तू हरदम यूँ रोती,
काश तू कभी खफा ना होती।

मेरी जिन्दगी ना होती,
मँ तू अगर ना होती।

दिल में ना कोई बात होती,
जीवन में जब बस रात होती,
जंगली से मै ना आदमी बनता,
जो तेरी ये सौगात न होती।

पैदा लेके अकेला इस जग में क्या कर पाता मै,
जो माँ तू मेरे साथ न होती।

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

है याद मुझको वो पल माँ,
जब राह में ठोकर खाया था,
तू दौड़ के आ के मुझे,
झट से गले लगाया था।

तुझे चोट तो आया है ना,
जल्दी से मेरी कसम खा,
सच सच तू मुझसे अब बता।

मेरी जिन्दगी में ना ये हँसी कारवाँ होता,
ना कोई ऐसी बात होती।

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

बचपन में चाँद को देख के मै,
डर के जो तेरी गोद में सो जाता था माँ,
चाँद को चँदा मामा बताती,
गोद में ले लोरी सुनाती,
तेरा कोमल हाथ कितना थक जाता था माँ।

ये जिन्दगी तो है मेला माँ,
तू है तो कैसा अकेला माँ?

मेरी जिन्दगी जन्नत सी ना होती,
जो तू मेरी मन्नत ना होती।

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

हर बार जो मै जन्म लूँ,
तेरी गोद में ही मै खेलूँ,
हर बार तू मेरी माँ बने,
दिल है लगा अब ये कहने।

हर दम तेरा आशीर्वाद मिले,
खुशियों का हर एक फूल खिले,
गम का काफिला पल में टले।

हर खुशी मेरी अधूरी होती,
तेरी ममता का जो साया न होता।

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

ईश्वर की अनुपम रचना है माँ,
नारी रुप की उत्कृष्ट दर्पण है माँ।
भगवान भी दैवत्व त्यागते,
जिसकी गोद में खेलने को,
वनिता की वैसी अलौकिक छवि है माँ।

देव भी धरा पे पधारते,
जिसकी ममता में पलने को,
राम की कौशल्या और कृष्ण की यशोदा है माँ।

भगवान का जन्म भी ना होता,
करण और अर्जुन भी ना होता,
कुछ भी तो ना होता,
बस माँ अगर ना होती।

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

मै नराधम हूँ,तू है जगजननी,
बस तुझसे है मेरी विनती यही,
मुझको कभी ना भूलाना माँ,
बस दिल में ही बस जाना माँ।

साँसों से होकर धड़कन तक,
आँखों से ये नजर जाये जहाँ तक,
बस मुझे तू ही नजर आना माँ।

आँखों में नूर भी तो ना होता,
जो तू नजर में ना होती।

मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती।

*HAPPY BIRTHDAY MA*

Tuesday, May 3, 2011

पहली रात की वो आखिरी बात

पहली रात की वो आखिरी बात,
प्रेमिका ने दी प्रेमी को सौगात!
प्रियतम मै तुम्हे प्यार करती हूँ,
जमाने से अब ना डरती हूँ,
मेरी मोहब्बत को तुम कुबूल करो,
अगर प्यार है तुम्हे भी तो हुजूर कहो!
चिलमन जो अँधेरा दूर करे,
इस रात की गलियारी में नूर भरे!
तुम भी मेरे अब साथ चलो,
प्रियतम मै तो कब से तुम्हारे साथ चलती हूँ,
राहों में ना फासलों से डरती हूँ!

आदिम रात्रि की वो महक,
खुशबु बन जेहन में भरने लगी,
मोहब्बत के किस्से सारे बाकी थे,
फिर दोनों को मदहोशी क्यों जकड़ने लगी!

प्रेमी बोला, तुम सो जाओ,
अब रात बहुत सा हो गया,
मुझे निंद कहा अब आयेगी,
जो दिल तुझमे ही खो गया!

यादों में ना ये रात खो जाए,
कोशिश करता हूँ रोक लूँ,
सारे लम्हें दिलों में ही कैद ना हो जाए!

तुम भी इस रात को जी लो ना,
प्रिया मै तो हमेशा से जगा हूँ,
तेरे नैनों की चँचलता से ठगा हूँ!
समय तो कभी ठहर ना पाया है,
जो ये मौसम भी बित गया,
सच कहता हूँ, दिलासा नहीं,
हमारा प्यार जो हमसे रुठ गया!

बाद में बडा़ पछताओगी,
इस रात की हर बात दुहराओगी,
बस अकेली तन्हा राहों में,
बार-बार मुझे आवाज लगाओगी!

मै ना आऊँ तो समझ लेना,
ये तो मेरी मजबूरी है,
अपना दिल तो है बिल्कुल भला,
ये दुनिया थोडी़ बुरी है!
तुम भी कभी याद कर लेना,
प्रिया मै तो हर साँस में तेरा नाम लिखुँगा,
तेरी मोहब्बत की ही माला जपूँगा!

मुझको भी तो जरा समझ लो ना,
प्रियतम मै तुम्हे कैसे भूल पाऊँगी,
तेरे हर गीत को गुनगुनाऊँगी!
इक रात की औकात ही क्या,
सारी जिंदगी तुमपे लुटाऊँगी!

तुम साथ होगे तो हर इक पल,
खुद ही खुबसूरत लम्हा बन जायेगा,
तेरे साथ बिताए हर इक कल,
यादों में कही खो जाएगा!

रुठुँगी मै तुम मना लेना,
गिर जाऊँ तो उठा लेना,
हर रात यूहीं जगते-जगते,
भोर हो जाए तो बता देना!

मै भी तो रात भर जागी हूँ,
प्रियतम मै तुम्हे कैसे सुला पाऊँगी,
जो निंद मुझे आ जायेगी!

कर लो जो बाते बाकी है,
चुपके से सुनो कदमों की आहट,
जो मुझे तेरे पास लाती है!
मुड़ के देखो मै हूँ ना,
बोलो अब क्या है डरना!

मै भी तो जरा सी भीगी हूँ,
प्रियतम तेरी आँसुओं की जो बरसात हुई है,
वो मेरी आँखों से भी आज हुई है!
थाम लो मुझे भर लो बाहों में,
ये रात गुजर ना जाए,
कही प्यार की इन्ही राहों में!
चलो कही दूर चले,
प्रिया मै तुम्हारे साथ रहूँगा,
तुम भी मेरा साथ दोगी ना!
इस जमाने से दूर जहाँ बस चाहत ही है,
वहाँ अपना बसेरा बना लेंगे,
तुम रहोगी और मै रहूँगा,
वहाँ दुसरे कोई भी ना रहेंगे!

वादियों में मोहब्बत जवाँ होगा,
हर रात पैदा नया अरमाँ होगा,
कारवाँ मोहब्बत का गुजरेगा जिधर,
सब देखेंगे दिल में प्यार होगा!

हम-तुम इक रात की बदौलत,
प्रेम के दो पंक्षी बनेंगे,
उड़-उड़ के सारी दुनिया में,
मोहब्बत के जगमगाते नूर सजेंगे!

पहली रात की वो आखिरी बात,
जिंदगी की हर बात बन जायेगी,
मोहब्बत के दीप जलेंगे तो,
अँधियारी भी उजाले की रोशनी लायेगी!

Sunday, May 1, 2011

आ गयी थी चिड़िया जो

झट से जाकर पँखे बुझाता,
सिटी बजाकर उसको भगाता!
डरता था जाए ना प्राण कही,
इस नन्ही प्यारी चिड़िया का!
उमरता था भावों से जिया,
उफनता था कही मन का समंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

कितनी तरकीबे मैने की,
सारी हुई अब बस व्यर्थ!
पर ना कटे कही चिड़िया का,
घर में ना हो कोई अनर्थ!

छज्जे पे जाके बैठी थी,
छिप गई थी प्लास्टिक के अंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

नन्ही सी नाजुक जान थी,
हैवानियत से अंजान थी!
ना था पता उड़ जाएँगे,
इक ही झटके में बस प्राण!

जो टकरा जाती पँखे से,
सुन ना पाता मै उसकी गान!

बडी़ भोर में खिड़की पे आ,
गाती वो गीत बडी़ सुंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
भाषा से मेरे अंजान थी,
नन्ही थी अभी नादान थी!
मै कहता था जाओ बाहर,
खिड़की को कर दूँ बंद!

ना खोलूँगा पूरी दिन,
तो फुदकती थी मंद-मंद!

कवि से प्यार जो कर बैठी थी,
भूली थी सारी हरियाली,
नीला-नीला वो अम्बर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

कितने युगों से था अकेला,
वो लगती थी कोई पूर्व-परिचित!
बस कुछ दिनों की दोस्ती में,
दिल को मेरे गई थी जीत!

घंटो बाते करता उससे,
तन्हा था मै जाने कब से!
नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,
बस गई थी अब दिल के अंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!