Sunday, February 27, 2011

मैने तुमसे प्यार किया था

मैने तुमसे प्यार किया था,
तुमने क्यों प्रतिकार किया था?
प्रकृति के रस-रंग मनोहर,
लाया था चुन-चुन कर प्रतिपल,
प्यार की सीमा,भाव का सागर,
हमदोनों ने पार किया था।

मैने तुमसे प्यार किया था।

सदियों से तेरी खातिर आया,
पर प्यार तुम्हारा क्यों ना पाया?

निर्झर सा बहता मै कल-कल,
इक प्यार तुम्हारा मिले जो इक पल,
ना सोया था,ना जाग सका,
बस तेरा इंतजार किया था।

मैने तुमसे प्यार किया था।

वो पर्वत ऊँचा,बहती नदी,
सारी धरती थी सजी सजी,
हमदोनों बागों में घूमे,
पनघट पे तू मुझको चूमे।

कब से था जग में एकांत,अकेला,
तुमने प्रिय बाहों का हार दिया था।

मैने तुमसे प्यार किया था।

मतवाला बेताब सा दिल मै,
तेरी चाहत की चौखट पर,
दिल हल्का होता था बस,
काँधे पे तेरे सर रख कर।

बंजारा था इस जग में जब,
तुमने ही संसार दिया था।

मैने तुमसे प्यार किया था।

लगन लगी जब से तेरी मन को,
ना भूख,ना प्यास लगे मेरे तन को,
प्यासी है नैना तेरी दरश जो पाये,
मेरा प्रियतम कभी नजर तो आये।

अधरों से रस पी प्यास बुझाता,
तुमने तो सब कुछ वार दिया था।

मैने तुमसे प्यार किया था।
तुम थी राधा,मै था कान्हा,
है पता मुझे,सबने जाना,
मै राम था,तुम सीता थी प्रिय,
कब से है अपना आना-जाना।

बंशी मै ही बजाता था,
प्यार के मधु-धुन सुनाता था,
हमदोनों ने ही कभी,कही प्रिय,
प्यार के श्रृँगार को आधार दिया था।

मैने तुमसे प्यार किया था।

Thursday, February 24, 2011

तन का अवसान

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े,
जब झुलस गयी सुंदर काया,
दर्पण को लुभाने चल पड़े।
अब बीत गया जो कल मेरा,
उसे याद दिलाने से क्या फायदा,
अब छा गया जीवन में अँधेरा,
तो दीप जलाने से क्या फायदा।

जानता हूँ अभी है कुछ पल बाकी,
तो क्यूँ ना ये पल भी जी लूँ,
होने वाली है जीवन की शाम,
तो क्यूँ ना आज मौत से भी हँस के मिलूँ।

घुट घुट कर अब हर घड़ियाँ,
यूँ ही बिताते चल पड़े।

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।

मै मग्न हूँ जीवन के दो पल में,
भूल गया हूँ आज,
जी रहा हूँ कल में।

क्या होगा अब कल मेरा,
ये बात सोचने से क्या फायदा,
एक रात ही शेष है जीवन का,
सो कर ही गुजारुँ,
तो क्या है बुरा।

जानता हूँ मेरे सपने तो अभी,
छोटे छोटे बच्चों से है,
क्यूँ उनसे उनका बचपन छीन लूँ,
नींद के अपने इन साथियों से,
क्यों अपना नाता तोड़ लूँ?

जाग जाग कर अब यूँ ही,
रात बिताते रह गये।

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।

मिट्टी से बना अपना काया,
मिट्टी में मिलाने चल पड़े,
कोई मीत बुलाया उस पार वहाँ,
हम मीत निभाने चल पड़े।

छोड़ कर जहाँ में सब को,
उस जहाँ से जोड़ना है वास्ता,
कल तक जो पता गुमनाम था,
मिल गया है मुझे अब वो रास्ता।

राहों में मुझे बस याद रही,
बीते जीवन की हर एक दास्ता।

अब आपबीति अपनी जग को बताने से क्या फायदा,
जो कुछ गुजरा है दिल पर,
वो तो बस जानता है ये दिल मेरा।

राहों में अब हम हर पल,
मस्ती लुटाते चल पड़े।

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।

जीवन में तो हर पल पाया हूँ,
सुख दुख से रोज नहाया हूँ,
अब चख लूँ जरा नए स्वाद को,
क्यूँ मन में उन्माद जगाया हूँ।

नई खुशी,नई दुनिया में,
यादों की बारातों से क्या वास्ता,
सब छोड़ दिया हूँ तो फिर,
रातों में नीर बहाने से क्या फायदा।

अब ना मिलेगा फिर मुझे,
दोस्तों यारों के कहकहे,
जब भूल गया हूँ अपनों को,
तो फिर क्यूँ सब इंतजार में है खड़े।
मन की बगिया में फिर भी,
यादों के है फूल हरे भरे।

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।

सारा जीवन यूँ ही बिताता रहा,
चार पल के खेल में हर पल गँवाता रहा।

समय ने जो करवट ली है आज,
तो मोहल्लत की गुहार से क्या फायदा,
रह गया है जब बस रात का सफर,
तो हमसफर से कैसा शिकवा गिला।

क्यूँ ना इस पल को ऐसे जिये,
कि पल भी ये पल याद करे,
मेरे बाद भी ये दुनिया मुझे,
अपने दिलों में याद रखे।

टुटे हुएँ ख्वाबों को भी,
सच करने की जिद ले चल पड़े।

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।

जीवन तो सब जी लेते है,
हर जाम को पी लेते है,
पर जी रहा है कोई यूँ,
जो मौत अपना जानता,
उसको पता है कि उसे,
बस मौत ही पहचानता।

कल की सुबह तो दूर है,
वो रात में ही मर जायेगा,
है कफन पास रख सो रहा,
बस वो ही साथ निभायेगा,
जब वो फना हो जायेगा।

फिर भी वो जश्न में मग्न है,
और इस तरह है हँस रहा,
जैसे कोई दुल्हा,
दुल्हन बिहाने चल पड़े।

अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।

Tuesday, February 22, 2011

इंजीनियर्स की परेशानी

इक इंजीनियर की जिंदगी में क्या क्या परेशानीयाँ आती है,उसे इस कविता के माध्यम से बताना चाहता हूँ...क्योंकि मै भी हूँ इक इंजीनियर...इसलिए मेरे ही जुबान से सुनिए आप...... 
                                      "इंजीनियर्स की परेशानी"
कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
कहने को तो कुछ दिन में अब,
मै भी इंजीनियर कहलाऊँगा,
टेक्नोलाजी और साफटवेयरस के ही,
गीत सबको सुनाऊँगा,

पर दर्द का ये किस्सा पुराना,
डिग्री के वास्ते खत्म हुई है मेरी जवानी।

कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियरस की जुबानी।

इन चार सालों का इंजीनियरिंग लाईफ,
मेरी जवानी को कुतर दिया ये टेक्निकल नाईफ।

इंजीनियरिंग का हर सेमेस्टर,
होता था मानो फिल्म थियेटर,
सब्जेक्ट होते थे फिल्म के कैरेक्टर,
विलेन होते थे फैक्लटी और टीचर।

हिरोइन फिल्म की सेसनल‍,प्रैक्टिकल.
सोचता था मिलेगी कभी मुझे,
पर ना मिली मुझे वो कल।

लेक्चर होती थी फिल्म की कास्टीन्ग,
मिड सेम मार्कस हर सेमेस्टर में किंग,
बस इन पर होता था अपना कुछ हक,
100 में 90 मिल जाए तो अपना गुड लक।
मुश्किल से फिल्म का हैपी इंडिंग होता था,
हिरोईन विलेनस के पास ही रहती,
और  इक्जाम की रात मै बड़ी चैन से सोता था।

थियोरी पेपर के 500 नम्बरों से ही,
मुझे तो अब डिग्री बनानी।

कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी.
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।

आता था एक ऐसा सेमेस्टर,
चेन्ज होता था वेदर,पहनता था मै स्वेटर।

कम्बल में दुबका सीसकिया भरता,
कालेज जाने से तो अब मै डरता,
सोचता खुद ही पढ़ लूँगा,
इस सेमेस्टर में 80 क्रास कर लूँगा।

सपने टुटते थे तब,
जब नेट पर रिजल्ट आती थी,
सुनता था कईयों का बैक लगा,
पास करने की लानत हो जाती थी।
चलो ये सेमेस्टर तो निकला,
अगले सेम में मै दिखाऊँगा,
इस बार नहीं जो कर सका,
नेक्सट सेमेस्टर पक्का फोड़ आऊँगा।

हर बार प्यासी ही दम तोड़ती थी,
मेरे हसरतों की कहानी।

कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।

नई तरकीबे मै रोज बनाता,
पर क्लास करने कभी ना जाता,
अटेंडेन्स चार्ट जब होती एनाउन्स,
पास मार्कस से भी कम ही पाता।

दोस्तों से कहता यार कितना अच्छा होता,
सपनों में ही हम जाते क्लास,
जगते तो छुट्टी हो जाती,
कभी ऐसा जो होता काश,
अपनी ड्यूटी भी पूरी हो जाती।

इक तीर में दो शिकार होता,
नींद भी होती पूरी,
और कालेज न जाने का भी जुगाड़ होता।

ऐसी ही सपनों की झुठी सच्ची होती है,
इंजीनियर्स के हर रात की कहानी।

कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।
कुछ ना पढ़ना पहले से,
इक्जाम की रात होते बिल्कुल सहमें से,
इक रात में पाँच यूनीट होती थी खत्म,
तीन घंटों का होता था इक्जाम का वक्त।

35 नम्बरस की चाहत दिल में पलती थी,
इक रात में ही तो अपनी डिग्री सम्भलती थी।

इक्जाम की वो हर नाईट,
क्योंसचन से होती थी जब फाईट,
सोल्युसन के लिए "Q.B" से हेल्प,
शिवानी थी नैया हम सब की सेल्फ।

डुबते हम राहियों को वो किनारा यूँ देती थी,
रिजल्ट का टेन्सन पल भर में हर लेती थी।
सारा सेमेसटर होता रहा क्लियर,
दूर हुआ अब इक्जाम का फीयर।

कुछ कर दिखाने की अब मैने ठानी।

कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।

बीतता गया कई सेमेस्टर,
बन गया मै तो अब वेटर,
वेट थी नई कहानी की,
इंजीनियरींग के बाद की जिंदगानी की।

इन द इन्ड आफ सीक्स सेमेस्टर,
मिल गया हमें अब ट्रैनिंग लेटर,
कम्पनी से बुलावा आ गया,
शुरु हुआ इक लाइफ नया।
मेरा भी हो गया प्लेसमेन्ट,
क्योंकि था मुझमें भी टैलेंट,
मेरा भी टाईटल अब इंजीनीयर,
डिग्री ने लगाया मेरे लाइफ को गीयर।

मस्ती की लाइफ हो गई खत्म,
देखा मैने कम्पीटीटीभ लाइफ की रुमानी।

कहता हूँ मै इक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
इक इंजीनियर की जुबानी।                                                      

Sunday, February 20, 2011

कसम

आज है तुझको कसम,
कि जग को तू सँवार दे।
हाथ में भविष्य तेरे,
मानवों के हित का।
मुख पे है जो दिव्य आभा,
जगती से तेरे जीत का,
बढ़ता ही चल उन राहों में,
जो राह स्वर्ग तक जाती है,
रोक ना तू अब पग इक पल यहाँ,
जो बंधन तुझे मिटना सिखाती है।

खो जा उसमें तब मिलेगी मँजिल,
अपने सुख दुख तू वार दे।

आज है तुझको कसम,
कि जग को तू सँवार दे।

जो झुक गया,जो रुक गया,
इंसान वो सच्चा नहीं।
जिस राह में बस फूल बिछा,
वो राह कभी अच्छा नहीं।

काँटों पे चल,अग्नि में जल,
होता है तो हो जाने दे अब,
अपने जीवन के अवसान का पल।

हार गया तन जीवन में तो क्या,
आत्मा को विजय का हार दे।

आज है तुझको कसम,
कि जग को तू सँवार दे।

प्रलोभन राहों में है मगर,
तेरी इच्छा तो अनंत की है।
थक कर ना सोना है तुझे,
तेरे तन ने आज ये कसम ली है।

भयमुक्त निडर सा चलना है,
तुझे आसमान की राहों पे,
अब ना किसी से डरना है,
दर्द से या अपनों के आहों से।

भूल जा बीती सारी असफलता,
अपनों को भी तू विसार दे।

आज है तुझको कसम,
कि जग को तू सँवार दे।

माँ की ममता की दुहाई,
पत्नी के सिंदूर का कसम।
बहना के निंदिया का वास्ता,
कभी ना ले तू दम में दम।

आक्रोश अपना संचित कर उर में,
क्रोध ज्वार को कर ले तू शांत,
प्रबल वेग चतुराई से अपने,
सब को दे दे तू क्षण में मात।

उपेक्षाओं,आलोचनाओं से ना घबराना,
पी जा जहर अपमान का,
जो तुझे संसार दे।

आज है तुझको कसम,
कि जग को तू सँवार दे।

दीप्त दीप्त जीत से संलीप्त,
मग्न मग्न कर्मों में संलग्न,
अवसर ना कोई गवाना,
हर पल तू बस चलते जाना।

सुदूर हो या पास हो,
मन में तेरे विश्वास हो,
इक लगन हो बस जीत की,
वैराग्य जगत से प्रीत की।

टल जाएँगे बाधाएँ पल में,
हर विघ्न बाधा को संहार दे।

आज है तुझको कसम,
कि जग को तू सँवार दे।

Thursday, February 17, 2011

अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा

भागा भागा,दौड़ा दौड़ा,
सब छोड़ जिसे पाने आया,
स्नेहीत हो कर,संताप भूला,
इक गीत जो कंठों ने गाया,
पता चला अब ना रहा वो गीत,
ना रहा वो गीत गाने वाला,
अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा।
तन्मयता से एकाग्र हुआ,
जिस लक्ष्य जीवन का पाने को,
एकाकी हो नैन आद्र हुए,
अश्रु के दो बूँद बहाने को,
पता चला अब ना रहा वो मीत,
ना रहा वो अश्रु बहाने वाला,
अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा।

वे जो मुझको अपना कहते,
हर वक्त है मेरे पास रहते,
जीवन की धारा के वेग में भी,
बिन सोचे जो मेरे साथ है बहते,
पता चला अब ना रहे वे अपने,
ना रहे वे अपने कहने वाले,
अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा।

जिसने मुझपे सब वार दिया,
जो थी मेरी संगीनी प्रिया,
जिसके प्यार के छावँ में,
इक पल में मैने सौ जन्म जिया,
पता चला अब ना रहा वो प्रीत,
ना रहा वो प्रीत निभाने वाला,
अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा।

मेरे मित्र,मेरे हमराज साथी,
जीवन में रहे जो संग संगाती,
मुस्कुराहट दे गये मुझे वो,
अश्रु नैनों में अब याद कर उन्हें आती,
पता चला अब ना रहे वे साथी,
ना रहे वे साथ निभाने वाले,
अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा।

जिसकी खातिर सब छोड़ गया मै,
अपनों से भी मुख मोड़ गया मै,
समझा जिसको ताउम्र खुदा,
वो भी हो गया है आज जुदा।

प्राण नहीं था अब मेरे तन में,
मै तो था अकेला अनंत गगन में,
पता चला तब जाकर मुझे,
अब ना रहा वो जीवन,
ना रहा वो जीवन जीने वाला,
अफसोस हुआ मुझे कुछ ज्यादा।

Sunday, February 13, 2011

प्रथम छन्द

दो क्रौंच सरवर तीर प्रेम मग्न,
प्रेममय वासना का जाग्रत अग्न।
चुम्बन स्नेहजनित माधुरय,
आलिंग्न तन प्रेम सुधामय।

सदियों की पीपासा,
मिलन की आशा,
प्रेमियों के क्षणिक लगाव की गाथा।

उद्भाषित महाकाव्य प्रथम छन्द,
बन महाकवि का अंतरद्वंद।

ब्याधे का बाण किया उरछेदीत,
प्रेममग्न प्रेमियों का स्नेहविच्छेदीत।

स्थिर तन अधीर व्याकुल,
प्रेम सुधा रक्त कण में घुल।

मिलन वेला बनी विरह घड़ी,
नर क्रौंचे के जब प्राण उड़ी।

ह्रदय कुंठित,स्नेहजनित,
अश्रु नैनों का विरह मीत।

जलकण अश्रु के संग रक्त कण,
मिलन क्षण गया विरह क्षण बन।

मार्मिक दृश्य सरवर तीर,
महाकवि के नैनों में नीर।

संसार भंगुरता से व्याकुल,
दृश्य हुआ जो अन्यायतुल्य।

मुख स्फुटन प्रथम काव्य छन्द,
व्याधे को शापित,शाप संलग्न।

सहज नहीं यह विरह दृश्य,
दुष्ट व्याधे तेरा घृणित कृत्य।

ज्यों क्रौंच युगल प्रफुल्लित,
प्रेममग्न,स्नेहीत,हर्षित,
सरवर तीर प्रेम मग्न,
अपराधित तु जघन्य।

अब तु शापित,
सह वेदना,विरह स्व मीत।

प्रथम छन्द महाकाव्य कवि का,
वेदनामय शशि और रवि का।

जगत लभ्य महाकाव्य अब,
शब्द भावों का संवेदनात्मक नभ।

विरह वेदना से छन्द निर्मित,
काव्याकाश मंद मंद हर्षित।

काल चक्र क्रीड़ा का निर्माण लीला,
जग को बहुमूल्य प्रथम छन्द मिला।

महाकवि का महाकाव्य आरम्भ,
क्रौंच युगल का विरह दम्भ।

Thursday, February 10, 2011

कवि की इच्छा

कुछ ऐसी लिखने की इच्छा,
दिल में अब भी दब जाती है।
मेरी कलम अब भी न जाने क्यों?
तुम पर लिखने से कतराती है।

मेरी भावनाएँ क्यों सोच तुम्हे?
कुछ कहते कहते रुक जाती है।

संवेदनाएँ बहते बहते ही,
खुद में ही जम सी जाती है।

जब कभी चाहा मैने तो आज,
इक गीत तुम पर लिख ही दूँ,
कुछ सुनु और कुछ गाऊँ भी,
जीवन से विमुख,तेरा रुख लूँ।

तब तब मेरी ये इच्छाएँ,
रह जाती है क्यों यूँ अधूरी,
तुम पर लिखने की आशाएँ,
किन बाधाओं से है जुड़ी।

तेरे पर कलम चलाना,
क्या इतना दुर्लभ सा है,
तु संगमरमर का कोई पत्थर,
मेरी कलम को क्या पता है।

तु बहती धारा गँगा की,
तु चाँदनी है रातों की,
तुम पर कहना,लिखना तो,
पहचान है मेरी मूर्खता की।

तु शब्द में कैद हो जाये,
ऐसा कैसे सम्भव है,
तु गीतों में बस जाये मेरे,
ये तो तेरा ही मन है।

पर कवि की इच्छा अब भी,
क्यों देख दिल में दब जाती है,
जब गीत बनाने की बारी,
तुम पर ही आ रुक जाती है।

मैने लिखा है भावों पर,
संवेदनओं पर,कुंठाओं पर,
हर्ष पर,विषाद पर,
और मँजिल पर राहों पर।

पर पता नहीं तु इनमे कौन?
जिस पर लिखने से ये लेखनी मौन।

क्या करुँ,क्यूँ मै अब पछताऊँ?
कैसे तुझको ये समझाऊँ।

जीवन है अधूरा मेरा,
जो तुम पर लिख न पाऊँगा,
उस रोज मिलेगी संतुष्टि,
जब गीत तुम पर ही बनाऊँगा।

वरना इच्छा ये कवि की,
अंतिम इच्छा बन जायेगी,
जीवन की सारी काव्य कृतिया,
मुझे असहाय नजर आयेगी।

कवि के आँसू पन्नों से,
तेरे मर्म को छू लेगा तब,
कवि की इच्छा जो अधूरी ही,
तोड़ लेगा तेरी बाहों में दम जब।

मेरी कविताएँ ही तो मेरा,
मान है,अभिमान है,
तुम पर लिखने की इच्छा,
मेरी विवशता की पहचान है।
लिखने दो अब अंतिम घड़ी,
अंतिम गीत ये जीवन का,
तुम पर लिखी ये पंक्तियाँ,
मेरी इच्छाओं और जतन का।

मै तो अब तक बस लिखता था,
इधर उधर की ही बाते,
तुम पर जो लिखा तो जाना हूँ,
क्या होती है खामोशी और सन्नाटे।

इक गीत मौन का तुम हो,
जो कलम ने मेरी लिख डाला,
सुनना चाहों तो सुन लो सभी,
मेरी इच्छाओं की स्वरमाला।

Sunday, February 6, 2011

इक बात कहो

हे प्रियतमा! इक बात कहो,
तुम ये पावन प्यार भूल जाओगी,
अश्रु नैन से जिन्हें सिंचते थे,
उन नैनों को क्या समझाओगी।
दो नयन जो कब से प्रतिक्षा में खड़े थे,
उन नैनों को कैसे बहलाओगी,
सावन का बादल बरसेगा,
प्यार उस प्यास को तरसेगा,
ह्रदय व्याकुल हो जायेगा,
गीत वही फिर गायेगा,
कैसे उन लम्हों को भूल पाओगी?

हे प्रियतमा! इक बात कहो,
तुम ये पावन प्यार भूल जाओगी।

पता है यह प्रश्न थोड़ा,
उर को रुलाने वाला है,
नैनों में बसी तेरी छवि को,
कभी ना भूलाने वाला है।

पर याद आयेगी जब मेरी,
क्या खुद को रोक पाओगी,
अपने दिल को कैसे दिलासा दिलाओगी?

हे प्रियतमा! इक बात कहो,
तुम ये पावन प्यार भूल जाओगी।

मुझसे जो तुमने कह दिया,
मेरे दिल को झुठा दिलासा दिया,
मेरे साथ जीवन गुजारोगी,
पर आज तुमने ये क्या किया।

माना मुझे भूल जाओगी,
यादों को कैसे बिसराओगी,
दूर जा के भी मेरी जिंदगी से,
मेरे ख्वाबों में रोज आओगी।

हे प्रियतमा! इक बात कहो,
तुम ये पावन प्यार भूल जाओगी।

मेरी तो कुछ ऐसी उलझन है,
जो तुमसे मै ना कह सका,
पर कैसे कहूँ तेरे बिन तो मै,
इक पल भी ना रह सका।

तुम तो हमारे प्यार की बगिया,
में फूलों के संग हो,
लेकिन मै अपनी क्या कहूँ,
जो अपनी बेवजह बरसती,
आँसूओं से ही दंग है।

तेरे लिए तो पतवार था मै,
अब खुद किनारा ढ़ुँढ़ पाओगी।

हे प्रियतमा! इक बात कहो,
तुम ये पावन प्यार भूल जाओगी।
इंतजार मैने तेरा बहुत किया,
पर जब तु मुझको मिल गयी,
मेरी नियती ही शायद ऐसी है,
तु मेरी परायी सी बन गयी।

बस दो दिन का प्यार जवाँ,
दिल में बसाएँ जी लूँगा,
तुम ना आओगी अब कभी,
ये बात खुद से कह लूँगा।

पर ये बताओ क्या तुम भी,
मेरे लिए इंतजार कर पाओगी,
दो नयन जो कब से प्रतिक्षा में खड़े थे,
इन नैनों को कैसे बहलाओगी?

हे प्रियतमा! इक बात कहो,
तुम ये पावन प्यार भूल जाओगी।

Thursday, February 3, 2011

सौंदर्यता की देवी

हर्षित,उन्माद,चंचल है मन,
खुशबु लेपों से सनी है तन,
महक रही है आत्मा भींगी-भींगी,
प्रफुल्लित,आनंदित है सम्पूर्ण यौवन।
नई झलक पाया है ह्रदय आतुर,
चेहरे ने दिखाया है अपना नूर,
कर रसपान यौवन का भ्रमरों ने,
तिलिस्म ने दिखाया है जादुई असर।

हर्षित,उन्माद,चंचल है मन,
खुशबु लेपों से सनी है तन।

कामदेव ने रुप निखारा है,
विश्वकर्मा ने रंग सँवारा है,
मोहिनी की छवि उर में समाई है,
सौंदर्यता की देवी उपासना हेतु आई है।
बँध गया है पाँव में पायल छम-छम।

हर्षित,उन्माद,चंचल है मन,
खुशबु लेपों से सनी है तन।

उपमा,विभूति से परे है,
हर नैन उस कामिनी पे गड़े है,
स्वर्ग की अप्सराएँ भी शर्माने लगी है,
रमणी का रुप देव-दानव सब को भाने लगी है।
फैल गयी है रमणीयता वातावरण में कण-कण।

हर्षित,उन्माद,चंचल है मन,
खुशबु लेपों से सनी है तन।

दिवाकर का दिवाकाश हुआ,
चौमुख में मंगल का वास हुआ,
ॠतुएँ ॠतुरानी के स्वागत को तत्पर,
वाणि प्रवाह को प्रयासरत है अधर।
सौंदर्यता चुपके से भिक्षाटन को दर-दर।

हर्षित,उन्माद,चंचल है मन,
खुशबु लेपों से सनी है तन।

हुआ कौमार्यता का लोप दमन,
जरात्व का कोप भाजन,
माधुरय का सम्पूर्ण प्रतिस्थाप्य,
प्रेम का दुनिया से पूर्ण विलाप्य।

सब से मिल बनी वो अप्सरा,
जिसका यौवन बिल्कुला था भरा,
हर श्राप से वो मुक्त थी,
मुख पे मुस्कान गुप्त थी।

कर रही थी वो खुद को प्रणाम,
बन गई सौंदर्यता के बनाम।

हर्षित,उन्माद,चंचल है मन,
खुशबु लेपों से सनी है तन।