Thursday, April 28, 2011

प्रतीक्षा के पल तुम्हारे

प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
मधुरस साथ तुम्हारा है प्रिय,
हर क्षण, प्रतिपल ह्रदय में घुल कर,
संगीतबद्ध हुआ आत्मा का कण कण,
तेरी सुरीली प्रणय राग सुनकर।

गुँजित हुआ झंकरित सा ह्रदय स्वर,
गंगा सी पावन नदी सा बहा था।

प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।

मुख ने था छेडा़ उस रात फिर प्रिय,
वो गीत प्रणय का इक अलबेला,
नैनों से बरसा था जो भर जल,
यादों में आया था वो मिलन-वेला।

हर क्षण हो मानो सुन रहे थे,
मैने जो तुमसे कुछ कहा था।

प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।

संसर्ग मिलन का होता अनोखा,
प्रतीक्षा के पल बन जाते है सुहाने,
चाँदनी रात में हमदोनों जो छत पे,
ढ़ुँढ़ लेते है फिर मिलने के बहाने।

थम क्यों ना जाते है वो पल,
इक रात में ही तो अपना सारा जहा था।

प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।

अधरों पे तेरे रुकी कोई बात,
पूरी ना होगी वो आज की भी रात,
नैनों में सपने इठलाने लगेंगे,
हर क्षण मिलेगा जो इक नया सौगात।

अधूरी इच्छा अधखुले नैनों से झाँककर,
स्वपन टुटने का दर्द न जाने कैसे सहा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।

सदियों ने बुझाया वो प्रेम का दीप,
हर रात काली सी हो गयी,
मिलन निशा की हर क्षण ,हर पल,
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे बन गयी।

विरह वेदना की दर्द बनकर,
अश्रु नैनों में ही कही जमकर,
विचरण किया मै व्याकुल सा बन प्रिय,
हर रात छत पे तुमको ढ़ुँढ़ा था।

प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।

स्वरबद्ध और संगीतबद्ध रुप में इस कविता की विडियो देखे....

Tuesday, April 26, 2011

तुम आओ ना....

स्नेह के अश्रु भर दो नैनों में,
ऐसे तो ठुकराओ ना,
इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।
तुम आओगी जब लेकर बहारे,
यादों के किस्से होंगे प्यारे प्यारे,
ह्रदय का हर्ष और स्नेह मिलन की,
छा जायेंगे राहों में संग तुम्हारे।

कही नैन मेरे थक कर देखो,
सपनों के नगर में खो जाये ना।

इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

तुमको क्या पता दीवानापन,
बेचैन है कितना मेरा मन,
हँसना तो बस मजबूरी है,
रोना ही तो है सारा जीवन।

एकांत का गीत मै गाऊँ कब तक,
तुम भी आकर संग गाओ ना।

इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

आज फिर वैसी ही रात है,
मानों तुमसे मेरी मुलाकात है,
तुम दूर खड़ी रोती रहती,
कुछ दिल ही दिल की बात है।

राहों में अभी तक तन्हा हूँ,
तुम मेरा साथ निभाओ ना।

इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

छुपा लिया मैने तुमसे,
वो बातें जो तुमसे कहनी है,
दिल ने पूछा दिल से तेरे,
दिल में तेरे मुझे रहनी है।

देकर थोड़ा सा प्यार मुझे,
अपने कल को भूल जाओ ना।

इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।
है प्यार नहीं तो ये क्या है,
मेरे दर्द के किस्सों का मंजर,
हर जख्म होगा अब बेगाना,
इक बार जो तुम आओगी अगर।

मै राह तुम्हारी देखते ही,
अपनी राहें सब भूल गया,
मँजिल भी तो अब तुम ही हो,
तेरे इंतजार के सिवा अब और क्या?

अंतिम साँसों की धुन पर,
ये मन बेचारा बुला रहा,
अब तो बस दिल की थमती धड़कन,
को और ना तुम धड़काओ ना।

इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।

तुम आओ ना,तुम आओ ना......।

Sunday, April 24, 2011

तू साथ मेरे....

आज मेरी लम्बी अध्यात्मिक कविता "तू है कहाँ" की कुछ पंक्तियाँ.....

तू प्रीत है,तू मीत है,
जीवन का तू संगीत है!
मै गा रहा हूँ गीत जो,
वो भी तो तेरा ही कृत है!
सुर सार तू,मल्हार तू,
मन के जीत का आधार तू!

आ जा ना,आ जा ना,
एक बार इधर भी आ जाना!
जो तेरे दरस को तरसे है सदियों से,
उन नैनों की प्यास बुझा जाना!
मन की धरती पर आज प्रभु,
हरियाली बन कर छा जाना!

रुत बदल रही,मन धीर धरा,
तेरे प्रेम से मै भी भींग रहा!
क्या रुत है ये,तू साथ मेरे,
जीवन में अब तो रंग भरे!
तेरे अद्भुत पुंज में आज प्रभु,
मधुर संगीत की गूँज भरी!
अब लगता है,कि पा लेगा,
ये तुच्छ मानव भी रास्ता!
मँजिल नहीं ना लक्ष्य है,
अब तो ये मन तेरे समक्ष है!
है मिल गया,तू ऐसे आज,
जैसे मिला हो सर पे ताज!

जीवन मेरा अब है पृथक,
तेरे संग-संग ही है सरस!

Thursday, April 21, 2011

नहीं मै इस जमाने का

आया कहाँ से,जाना कहाँ है,
कितने पल का विश्राम यहाँ है!
खुद में ही उलझा,खुद से ही पूछूँ,
मुझको न पता अपने ठिकाने का,
नहीं मै इस जमाने का!

दबती है हर बार भलाई,
झुठलायी जाती है सच्चाई,
आता है हर रोज सवेरा,
दूर करता है रात का अँधेरा!

छीनने से कभी क्या हमदर्दी मिली,
तरीका है कैसा ये पाने का!

नहीं मै इस जमाने का!

दुनिया की रौनक से हूँ अपरिचित,
कोई नहीं है यहाँ मेरा मीत,
जिसको भी चाहा,मिल न पाया,
सबने मुझे कितना रुलाया!

जब तोड़ना ही प्यार था,
मेरे प्यार से इंकार था!
क्या थी जरुरत फिर ऐसे ही,
रिश्तों के बोझ को यूँ निभाने का!

नहीं मै इस जमाने का!

उद्वेलित उर की व्यथा का हल,
जाने कब मिले मुझे वो पल!
जहाँ बस हो खुशियों का तराना,
याद आएँ मुझे गुज़रा जमाना!

सुनने को तरसता रहा सदा,
वो तो हरपल था मुझसे जुदा!

विदा के क्षण जब थे निकट,
क्या था मतलब कुछ क्षण यूँहीं,
प्यार के दो गीत सुनाने का!
नहीं मै इस जमाने का!

अजूबा हूँ मै अलबेला,
पराया है मुझसे इस जमाने का मेला!
कब से बैठा तुझको ढूंढूं,
कब आएगी वो मधुर बेला!

तेरे प्रीत की वो बूँदें,
बरसेंगी धरा पर अनवरत,
खोया हूँ जिसको ढूँढता,
मिल जाएगा मेरा वो जगत!

मेरे प्रश्न का अनोखा हल,
आज आ ही गया वो पल!
चुपचाप किसी को ना हो खबर,
इस जहान से मेरे जाने का!

नहीं मै इस जमाने का!

Monday, April 18, 2011

बस मै था....

"आज आप सब के समक्ष अपनी एक लम्बी आध्यात्मिक कविता "आत्मा की प्यास" की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,ये पूरी कविता मैने जीवनोपरांत आत्मा के स्वरुप और जीवन के बाद आत्मा को मिलने वाले  राहों व अवरोधों पर लिखा है....."

ना भय था,ना संशय था,
ना ही अब कोई विस्मय था,
अब मै था,बस मै था।
ना कोई हम थे,ना कोई तुम थे,
चारों ओर मेरे,बस मै था।

एक प्रकाश था,वो भी मै था,
एक अंधकार था,वो भी मै था,
एक डर था,एक असर था,
एक बात थी,किसी की आस थी।

फिर भी जो भी था,  
वो मै था,बस मै था।

ना राहें थी,ना अवरोध था,
ना वन थे,ना पर्वत था,
ना सागर था,ना मरुभूमि थी,
ना ही कोई मृगमरीचिका थी।

सब मै था,बस मै था।

ना कोई प्यास थी,ना कोई भूख,
मै ही था हर सुख दुख,
मै तूझमें था,मै उसमें था,
मै खुद में था,मै सब में था।

बस मै था,मै ही तो था।
ना शरीर थी,ना रुह थी,
ना आँख था,ना नूर थी,
बस आत्मा,परमात्मा के संग थी,
वो परमात्मा ही तो मै था।

वो एक प्रकाश जो अनंत था,
अव्याप्त था,निराकार था,
अविचल था,अनुपम था,
अद्भूत था,वो मै ही तो था।

मै ही था,बस मै ही था। 

Sunday, April 17, 2011

मैने देखा है चमत्कार

मैने देखा है चमत्कार!
वही न जो लहलहाती हरियाली से गुजरता हुआ,
नदियों के बहते जल को छूता हुआ,
नभ में पंक्षियों के संग उड़ता हुआ,
मेरी जिंदगी में खुशियों के रंग भरता है!
अदृश्य परोपकारी इस अनुभव को,
हम सब करते है नमस्कार!
मैने देखा है चमत्कार!

माँ की दुआओं में होता है,
पिता की कमाई में होता है,
भाई के दुलार में होता है,
प्रेमिका के प्यार में होता है!

परिवार के हर सपनों को,
करता है वो साकार!
मैने देखा है चमत्कार!

बंजर,सुखाड़ भूमि पर कभी,
अमृत-रस बन बूँदो सा बरसता है!
जीव-जगत के हर इक जीव में,
जीवन का संचार करता है!
कभी-कभी बिन माँगे ही,
सब कुछ दे देता है!

भगवान की इस बंदिगी का,
सारे भक्त करते है सत्कार!
मैने देखा है चमत्कार!

मन में कही आत्मविश्वास सा भर जाता है,
सोई किस्मत को चुपके से जगाता है,
मुझे इक पल में रंक से राजा बनाकर,
अपना विस्तृत स्वरुप दिखाता है!

खुद से ही खुद का कराता है साक्षात्कार,
मैने देखा है चमत्कार!

सूरज की पहली किरण में होता है,
शाम की खामोशी में बयाँ होता है,
तकदीर का रुख मोड़ देता है पल में,
दिलों के हौसले में जवां होता है!
बच्चों में पालित होता है,
बनकर माँ-बाप का संस्कार!
मैने देखा है चमत्कार!

जग के अविष्कारों से परे,
सत्कर्म का इक मीठा सा फल!
भगवतकृपा का अमृत जल,
वो सदैव मेरी आस्था में,मेरी भावना में,
और दुखियारी गली में,दीनबंधु सा दिख जाता है!

वो सत्य को बल और इंसानियत को देता है आधार!
मैने देखा है चमत्कार!

Thursday, April 14, 2011

दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा

कई क्षण मेरे जीवन में आए,
जो थे बस सुख के ही साये!
मैने पाया ना कभी सुख,
है इसका मुझको बड़ा ही दुख!
जलाता रहा हर रात मैं दीपक,
पर आया ना जीवन में सवेरा!   

दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!

नभ की छाती पे जगमग तारे,
इक चाँद बिना है सूने सारे!
सूरज ने मुझको पथ दिखलाया 
तम की नगरी से पार लाया!  

चौंधिया गई रौशनी में आँखे,
फिर छाया है सामने अँधेरा!

दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!

इक ही मिट्टी,इक ही धूप,
इक पौधे में ही काँटा और पुष्प!
पुष्प होता देवों को अर्पण,
काँटा चीरता भ्रमरों का तन!

मेरे मार्ग में पुष्प और शूल 
पर क्यों गया आज ये भूल!

ना है कुछ मेरा,ना ही तेरा, 
फिर क्या है तेरा-मेरा!

दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!

तिनके चुन आशियां बनाता,
कश्ती में डूबता और बह जाता!
खुशहाल होता बस अपना चमन,
हरदम करता कुछ ऐसा जतन!
तूफान आता सब को ऊड़ाता,
बिखर जाता पल में डेरा!

दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!

संगीत की ध्वनि जो होती मुखर,
सुर में रम जाता मेरा स्वर!
जीवन का गान जो होता अधूरा,
गाकर करता मै उनको पूरा!

फरमाईश करती जो मुझसे प्रियतम,
स्वरविहीन हो जाता कंठ मेरा!

दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!

Tuesday, April 12, 2011

इक बार जो आ जाती तुम

बरस जाती बिन बादल बूँदे,
मोर पँखो को फैलाता,
इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!
दृश्य होता सब आँखे मूँदे,
नया ख्वाब कोई सजाता,
हसरतों की बुझती लौ को,
मिल जाती उजाले की आशा!

इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!

आओ फिर से वो गीत सुने,
गीतों का जमाना याद आता,
इक गीत मै गाता,इक गीत तुम,
गीतों में ही हर ख्वाब बुन जाता!

इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!

हम कब से बेगाने बने,
तुमको मै फिर से यूँ मनाता,
मै लोरी गाता,तुम सो जाती,
हर रात तुमको ऐसे सुलाता!

इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!

कुछ बात दिल में है दबी,
जो तुमसे कहनी है जरुरी,
ये बेवफाई नहीं है मेरी,
ये तो है मेरी मजबूरी!
तुमको मै समझाता,
तुमको मै बताता!

इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!

कैसे भूल गयीं वो सारी कसमें,
जो हमने कभी खायीं थी,
टूट गयी रिश्ते की डोर,
जो हमने कभी बाँधी थी,
मै तो ना तुमको भूल पाता,
दिल को कैसे समझाता?
इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!

उर के नभ पे बिजली सी कौंधे,
पहले ना क्यों मै जान सका,
बेवफाई ने ओढ़ी वफा की  चादर,
तुमको क्यों ना पहचान सका!
तुम ना थी कभी मेरे जैसी,
ना मै था तुम्हारे जैसा!

इक बार जो आ जाती तुम,
टूटे दिल को देने दिलासा!

Sunday, April 10, 2011

तुम पुकारती रहो

आया नहीं मै जानकर,
कि तुम पुकारती रहो,
नैनों में आँसू भर के,
यादों को सँवारती रहो!
समझा लिया मन को कि,
तुम ना हो खडी़ राहों में,
आशा नहीं मेरे इंतजार का,
आज ना हो तुम मेरी बाहों में!

आया ना ख्वाबों में भी इस बार,
कि तुम रात जग के गुजारती रहो!

आया नहीं मै जानकर,
कि तुम पुकारती रहो!

कब से जिन्हे ना सुन पाया,
जिस प्रेम से तुमने बुलाया,
चाहा कि अब जिद छोड़ दूँ,
राहों को अपने मोड़ लूँ!

पर क्या करुँ आ ना सका,
कि तुम बाट निहारती रहो!

आया नहीं मै जानकर,
कि तुम पुकारती रहो!

छलक आये उर के भाव,
यूँ नैनो में दो बूँद बन के,
तड़प के यूँ तेरा पुकारना,
घुल गया है इक गूँज बन के!

ठोकर पडा़ यूँ गिर गया,
कि तुम सम्भालती रहो!

आया नहीं मै जानकर,
कि तुम पुकारती रहो!

क्यों तुमको मैने रुला दिया,
ये सोच के मन घबराया है,
सीमाओं में क्यों प्यार बँधा,
मेरा प्यार तूने ठुकराया है!

यादे रह-रह कर बीते दिनों की,
किस्से क्यों दुहराती है,
अमर कहानी प्यार की हमारी,
कि तुम सुनाती रहो!
आया नहीं मै जानकर,
कि तुम पुकारती रहो!

मेरा छिपना,तुमको रुलाना,
कुछ देर में फिर बाहर आना,
करना वही फिर से बहाना,
तेरा रुठना और मेरा मनाना!

थम गया बस याद कर के,
कि तुम भी याद करती रहो!

आया नहीं मै जानकर,
कि तुम पुकारती रहो!

Thursday, April 7, 2011

तुम हो अब भी

मौन मेरा स्नेह अब भी,
जो दिया,तुमसे लिया मै।
प्यार मेरा चुप है अब भी,
क्यों किया,जो है किया मै।

भूल से हुई इक खता,
मैने रुलाया खूब तुमको,
खुद भी रोया,
कह ना पाया,
नैना मेरे ढूंढें उनको।

तुम कही हो,मै कही हूँ,
तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ।

पर है वैसा ही सुहाना,
प्यार का मौसम तो अब भी।

साथ तेरा छोड़ दामन,
प्यार का बंधन छुड़ाया,
रुठ चुकी है खुशियाँ अपनी,
प्यार हमारा लुट न पाया।

ख्वाबों में फिर हर रात ही,
न जाने क्यों आती हो तुम तो अब भी।

राहे मुझसे पुछती है,
है कहा तेरा वो अपना,
साथ जिसके रोज था तू,
खो गया क्यों बन के सपना।

तू गया है भूल या उसने ही दामन है चुराया,
पर मेरे जेहन में वैसी ही,
कुछ प्यारी यादें सिमटी है अब भी।

माना है मैने कि तुम हो दूर मेरे,
दूर हो के पास हो तुम साथ मेरे।

मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहाँ में।

सब में बस तेरी ही तस्वीर दिखती,
हर तस्वीर तुम्हारी है ये पूछती।

मै नहीं तेरी प्रिया कर ना भरोसा,
दूर रह वरना तू खायेगा फिर धोखा,
मै उन्हें बस ये ही कह के टालता हूँ,
साये से तेरा अपना वजूद निकालता हूँ।

कोई ना जाने किसी को क्या पता है?
मेरे दिल के घर में तो तुम हो अब भी।
बीती हुई हर बात में,
अपनी सभी मुलाकात में,
थे चंद सपने जो थे जोड़े तेरे मेरे साथ ने।

उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,

दबा-दबा सा जिक्र तुम्हारा,
एहसास दिलाता कि तुम हो अब भी।

Tuesday, April 5, 2011

कवि का प्यार

 कवि को हो गया लेखनी से प्यार,
इसी उधेड़बुन में वो है लाचार,
अपनी पीड़ा लेखनी को क्या बताऊँ,
साथी को अपना साथ कैसे समझाऊँ।
मेरी पहचान है तेरे बगैर,
उस दीप का जो बाती के बिन क्या अँधेरा दूर करे,
मेरा संगीत है तेरे बगैर,
उस गीत सा जो ताल के बिन क्या मधुर रस शोर करे।

तू राग है,और मै तेरा हमराज हूँ,
कैसे कहूँ मेरी कविता का बस तू ही साज है।

कुछ कहना चाहता हूँ मै,
अपनी प्रेम गाथा,
पर लेखनी से कैसे कहूँ दिल की व्यथा।

वो तो बस शर्मा के हँस देती है,
मेरी हर कविता को नया रँग वो देती है।

चाहता हूँ कर दूँ प्यार का  इज़हार,
बस डरता हूँ क्या होगा इसका प्रतिकार।

यदि लेखनी मुझसे रुठ कर मुँह फेर ले,
कैसे सजाऊँगा फिर विचारों को शेर में।

शब्दों को गढ़ कैसे मुझे लुभाती है,
कविता से कवि को कैसे कैसे सपने दिखाती है।

क्षण-क्षण थिरक नर्तकी सी,
वो नृत्यांगना मेरे दिल पे,
कामदेव के बाण चलाती है।

मै लिखना चाहता हूँ कुछ और,
वो लिख देती है कुछ और ही,

मै कहना चाहता हूँ कुछ और,
वो सुन लेती है कुछ और ही।

कँचन कामिनी की तलाश थी,
जो तुमपे ही आ के खत्म है,
मेरी कविता की तो तू ही साँस थी,
फिर क्यों दिल में ये जख्म है।

मेरी लेखनी तू ही तो मेरा अभिमान है,
आ बस जा शब्दों में,
तू ही तो मेरी कविता की जान है।

बस एक तमन्ना दिल में रह गयी अधूरी,
कर दे मेरे जीवन को भी तू पूरी-पूरी।
मेरी संगिनी बन लेखनी तू ब्याह आ,
तुझसे कवि की हर एक आश है जुड़ी।

मै जानता हूँ कि मेरा प्यार है थोड़ा अटपटा,
पर क्या करुँ तुम बिन ना,
कोई दिल में बसा।

तू ही मुझे दुल्हन सी लगती है,
तेरे बगैर कोई कविता ना सुझती है।

जुबां रख कर भी मै बेजुबान हूँ,
लेखनी के बिना,
तो मै कविता से अनजान हूँ।

मीलों की दूरी,
कविता से कवि की हो जाती है,
जब लेखनी सही वक्त पर,
साथ नहीं निभाती है।

Monday, April 4, 2011

पापा मेरे.......

अपने पापा के लिए दुनिया की सारी खुशियाँ माँगता हूँ और दुआ करता हूँ उस परमशक्ति से कि मेरे पापा निरंतर अध्यात्म की गुढ़ उँचाईयों को छुते रहे....हम पर आपका स्नेह और आशीर्वाद यूँही बना रहे...
"आप जिये हजारों साल,साल के दिन हो पचास हजार"
श्री राज शिवम
ज्योतिष और तंत्र,मंत्र की उत्कृष्ट जानकारी के साथ ही मेरे पापा आज समाज के एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है,मुझे गर्व है कि मै उनका बेटा हूँ...वो अपनी पूजा पद्धती के द्वारा जनमानस के कल्याण हेतु सदैव उद्धत है...भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मेरे पापा से जुड़े लोग है,पर ब्लागिंग में थोड़े नये है,मेरे ही कहने पर अभी कुछ दिनों से ब्लाग पर लिख रहे है और अब इंटरनेट के माध्यम से जनकल्याण हेतु कई सारी मंत्रों को उपलब्ध भी करा रहे है....

पापा का ब्लाग है "*ॐ शिव माँ*" जिसे आप यहाँ देख सकते है.....

पापा मेरे सबसे अच्छे है,
दिल के वो कितने सच्चे है।

पापा के लिए है क्या कहना,
वो तो है परिवार का गहना।

कंटिली झाड़ियों में गुलशन से है,
अँधेरी रात में चिलमन से है।

पापा मेरे सबसे अच्छे है,
दिल के वो कितने सच्चे है।
 पापा तो मेरे पापा है,
पर दिल तो बिल्कुल माँ सा है,
छोटा सा दर्द मुझे जो होता है,
दिल में उनके कोई शूल सा चुभता है।

बस खुशियाँ देना जानते है,
मुझको वो कितना मानते है।

पापा मेरे सबसे अच्छे है,
दिल के वो कितने सच्चे है।

मेरे सामने वो जताते नहीं,
पर बाद में अश्कों को रोक पाते नहीं,
मुझे प्यार तो दिखाते नहीं,
पर दिल से मुझे भूल पाते नहीं।

मै भी तो उनके बिन कुछ नहीं,
उनका हाथ है सर पे तो सब कुछ सही।

उनका आशीर्वाद जो मिलेगा मुझको यूँही,
जन्नत को भी लाऊँगा मै घर में यही।

हर खुशियाँ आँगन में खेलेगी,
हमारे घर में सुख-शांति झूमेंगी

पापा मेरे सबसे अच्छे है,
दिल के वो कितने सच्चे है।

अपने अस्तित्व की कल्पना,
उनके बिना कोई क्या करे,
बस पापा का हाथ सर पे ना हो,
तो बच्चा इस जालिम जग में कैसे रहे?

हर बुराईयों से हमे दूर रख के,
हर दुख,दर्द के स्वाद को चख के,
बागबां की तरह वो घर सजाते रहे,
हम फूल उनकी बगिया के,
हर दम यही गाते रहे।

पापा मेरे सबसे अच्छे है,
दिल के वो कितने सच्चे है।

शायद तुमसे मै ना कह सका,
पर इक पल भी तेरे बिन ना रह सका,
कितना भी छुपा लूँ अब प्यार मै,
लेकिन दूरी तुमसे मै ना सह सका।
   मै भी तो तेरे ही दम पे,
जग में बड़े शान से कहता हूँ,
मेरे पापा तो भगवान है,
मै भगवान की शरण में रहता हूँ।

मेरे घर के मंदिर में वो हर रोज दरश दिखाते है,
मुझ जैसे अभागे को भी अपने गले लगाते है।

पापा मेरे सबसे अच्छे है,
दिल के वो कितने सच्चे है।

HAPPY BIRTHDAY PAPA...............