प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
मधुरस साथ तुम्हारा है प्रिय,
हर क्षण, प्रतिपल ह्रदय में घुल कर,
संगीतबद्ध हुआ आत्मा का कण कण,
तेरी सुरीली प्रणय राग सुनकर।
गुँजित हुआ झंकरित सा ह्रदय स्वर,
गंगा सी पावन नदी सा बहा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
मुख ने था छेडा़ उस रात फिर प्रिय,
वो गीत प्रणय का इक अलबेला,
नैनों से बरसा था जो भर जल,
यादों में आया था वो मिलन-वेला।
हर क्षण हो मानो सुन रहे थे,
मैने जो तुमसे कुछ कहा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
संसर्ग मिलन का होता अनोखा,
प्रतीक्षा के पल बन जाते है सुहाने,
चाँदनी रात में हमदोनों जो छत पे,
ढ़ुँढ़ लेते है फिर मिलने के बहाने।
थम क्यों ना जाते है वो पल,
इक रात में ही तो अपना सारा जहा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
अधरों पे तेरे रुकी कोई बात,
पूरी ना होगी वो आज की भी रात,
नैनों में सपने इठलाने लगेंगे,
हर क्षण मिलेगा जो इक नया सौगात।
अधूरी इच्छा अधखुले नैनों से झाँककर,
स्वपन टुटने का दर्द न जाने कैसे सहा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
सदियों ने बुझाया वो प्रेम का दीप,
हर रात काली सी हो गयी,
मिलन निशा की हर क्षण ,हर पल,
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे बन गयी।
विरह वेदना की दर्द बनकर,
अश्रु नैनों में ही कही जमकर,
विचरण किया मै व्याकुल सा बन प्रिय,
हर रात छत पे तुमको ढ़ुँढ़ा था।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।
स्वरबद्ध और संगीतबद्ध रुप में इस कविता की विडियो देखे....