मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
नमाजों में,दुआओं में,
मुसलमानों के पाक इरादों में,
दिख जाता मुझे आज भी वो खुदा है!
खुदा ना जुदा है बंदो से,
बंदगी उसकी अब भी वही है,
मजहब वही है,खुदा वही है,
इंसानियत ही आज सूना-सूना है!
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
खिदमत में खुदा की पेश करुँ,
मै आज कहाँ से गुजरा जमाना,
वो प्यार,मोहब्बत,
वो इबादत का दस्तूर,
भुला दिया है अब तो आना-जाना!
जमाने उल्फत को अब ताक पर रख,
उस पाक दिल को तो आज छुना है!
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
भाईचारा,बद्सलूकी का हमराही हुआ,
अलविदा कहा उस कौम को,
खुदा भी ताकता रहा बंदो को,
इशारा दिया जुबा को मौन से!
वो ईद की तैयारी,
वो प्यार से गले मिलना,
इक अलग ही खुमार होता था,
रोजा रखना,नमाज पढ़ना,
हर घर में कभी मैने सुना है!
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
पर आज कहाँ वो रमजान है,
बकरीद की कुर्बानी,
से भी सब अंजान है,
तभी तो मै तुमसे ये कह ही दूँ,
मैने बस उस रब को चुना है!
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
जन्नत मेरा मक्का-मदीना में,
उस ईद के चाँद पर अटका है,
मैने जिसे देखा तो मन में,
कई ख्वाब मेरे खुद ही बुना है!
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
भरी दोपहरिया में,बड़ी भोर में,
गोधुली में हर शाम को,
“अल्लाह हो अकबर...“की वो धुन,
बंदे कभी तो दिल से सुन!
ना कौम की चर्चा कही,
ना ही मजहब का वास्ता,
बस है खुदा उन बंदो का,
अपनाते है जो मोहब्बत का रास्ता!
मैने तो जाना मोहब्बत होता बडा़,
आज भी धर्म और मजहब से कई गुना है!
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
आप सभी को ईद मुबारक.....
आप सभी को ईद मुबारक.....