Monday, September 19, 2011

अरसों के बाद घोंसलों में......

बड़े दिनों बाद घर जाना हो रहा है...तो कुछ पंक्तियाँ इस बार के जाने पर आ रही है "बड़े वक्त के बाद फिर शहर में,हुआ है आना मेरा"...कहते है ना कवि किसी भी विषयवस्तु को कुछ अलग तरीके से सोच लेता है...तो देखिये मेरी इस सोच का नतीजा........ये पंक्तियाँ बयाँ हुई कुछ इस अंदाज में....

अरसों के बाद घोंसलों में,
पंछी ने डाला है बसेरा।
कैसे बताऊँ था कितना सूना,
तुझ बिन ये जीवन मेरा।

कुछ नहीं बदला यहाँ पर,
रेत भी है,चट्टान भी है,
और दीवारों के कान भी है।

वही कंकड़ है,सड़क है,
रास्ते है अभी भी सूने सूने,
उन रास्तों पे चलते हम तुम,
कई ख्वाबों को थे कभी बुने।

दो कदम बस और मुझको चलना है,
लगता है अब दूर नहीं घर मेरा।

अरसों के बाद घोंसलों में,
पंक्षी ने डाला है बसेरा।

वो नीड़ अब भी है उसी का,
वो जानता है।

मौसम की बेरुख अदाओं को,
पहचानता है।

है याद उसके कल के कही इन घोंसलों में,
बेफिक्र रात के बाद जहाँ होता सवेरा।

अरसों के बाद घोंसलों में,
पंछी ने डाला है बसेरा।

गुम हो गयी अतीत की सारी कहानी,
मिट गयी है इस पेड़ से मेरी निशानी।
कई बार उल्टा रुख हवा का,
उड़ गये परिंदे,
बारिश की बूँदों में समाये से दरिंदे।

तन भीग जाता,भीग जाता है मेरा मन,
आँखों से बरसे बूँद बन प्रवास मेरा।

अरसों के बाद घोंसलों में,
पंछी ने डाला है बसेरा।

Thursday, September 15, 2011

इंजीनियर्स की परेशानी (प्रेम डगर)


आज से एक वर्ष पहले मैने "इंजीनियर्स डे" के मौके पर ही लिखा था अपना एक लोकप्रिय काव्य "इंजीनियर्स की परेशानी"....जिसमें बताया गया था इंजीनियर्स की लाइफ में आने वाली परेशानीयों के बारे में...जो इक इंजीनियर कवि बखूबी समझ सकता है....और आज आप सब के समक्ष मै लेकर आया हूँ "इंजीनियर्स की परेशानी (प्रेम डगर)"..जो बताता है कि प्रेम मार्ग में चलते हुये एक इंजीनियर के साथ क्या क्या परेशानीयां आती है और कैसी भावनाओं से रुबरु होता है वो.....

पहला भाग यहाँ पढ़े....

इंजीनियर्स की परेशानी (प्रेम डगर)
होती थी बरखा,बहार कभी,
पतझड़ की सी सुखार कभी,
मन ही मन की वो बेचैनी,
कहलाती थी जब प्यार कभी।
तब आँखों में आँसू की जगह,
सैलाब उमड़ता था,
मै डूबता था कभी कही,
और कभी उभरता था.............।

नये प्यार सा नया सेमेस्टर,
लूज़ करता रहा मेरा कैरेक्टर,

बी.ई. फिल्म की चार रील की मूवी में,
बन गया मै अब सपोर्टिंग एक्टर।

तब मैने जाना कि,
ये प्यार तो है बस मेरी नादानी।

कहता हूँ मै एक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
एक इंजीनियर की जुबानी।

कई बार हुआ था प्यार मुझे,
कुछ बार किया इकरार मगर,
दो कदम चला तब ये जाना,
मुश्किल है बड़ी ये प्रेम डगर।
कभी सोचा बंद लिफाफों में दिल की बातें कह डालूँगा,
मन ही मन में फिर आज तुम्हें कैसे भी मै तो पा लूँगा।

पर याद नहीं वो सावन मुझको,
जो अंदर तक कही भिगो गया,
दिल की बातें दिल में रह गयी,
कर ना पाया मै उसे बयां।

कुछ रात यूँही नींद बिन गुजरी,
कुछ रात अजब हलचल सी थी,
कुछ रात तुम्हारी यादों में,
सौ बरस के जैसी दो पल भी थी।

मै जाग गया जो भोर हुआ,
रात का सपना पल में टूटा,
इक रात प्यार का खेल,खेल,
समझा ये प्यार है बड़ा झूठा।
यूँ व्यर्थ नहीं अब करनी है,
मस्ती से भरी अपनी जवानी,
ये प्यार,मोहब्बत बेमतलब,
बस है इससे हमको तो हानि।

कहता हूँ मै एक ऐसी कहानी,
इंजीनियर्स की परेशानी,
एक इंजीनियर की जुबानी।

"HAPPY ENGINEER'S DAY TO ALL OF U"

Monday, September 12, 2011

साहसी है कौन?

साहसी है कौन वह जो,
लक्ष्य पर बढ़ता ही जाये।
जीत का इक गीत बुनकर,
कदमों में दुनिया झुकाये।

जिसकी धमनियों में बहता हो,
अटल का रक्त घुलकर,
श्वास भी  चलती हो ऐसे,
जैसे चल रहा हो नभ दल।

तेज से जगमग जलाता,
रौशनी सा वह सफर में,
धैर्य से कर मित्रता,
निभाता हर पल नव डगर में।

हौसला इतना बड़ा कि,
आसमां के पार हो ले,
हाथ पे लकीर खींचे,
खुद किस्मत का ताला खोले।

झुकते जिसके सामने,
पर्वत और अम्बर के सितारे,
देख कर प्रकाश जिसका,
सूर्य का भी तेज हारे।
पर नहीं अभिमान थोड़ा,
बढ़ गया जो लक्ष्य तेरा,
मँजिल तक पहुँचे बिना,
अब तो ना इक पल थकान आये।

साहसी है कौन वह जो,
लक्ष्य पर बढ़ता ही जाये।

Monday, September 5, 2011

अब तक ना भूला....

"समय दर समय बदलते जिंदगी के रुप अनेक,
और भावनाओं मे बहती जीवन की कस्ती....."

अब तक का हर जज्बात,
बचपन का हर इक साथ,
माँ की प्यारी सी डाँट,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!
नये दोस्तों से रोज मुलाकात,
क्लास में ही करना खूब सारी बात,
टीचर की हमलोगों को डाँट,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

भोर की पहली किरण का आगमन,
अल्साई धुन पर मंदिर का भजन,
खेल के लिए दोस्तों का निमंत्रण,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

पेट में पैदा हुयी वो जोरो की भूख,
माँ के हाथ से इक कौर का सुख,
कल सुबह फिर से स्कूल जाने का दुख,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!
शाम को भाई के साथ बैठ पढ़ना,
लैम्प की रौशनी में पहाड़े रटना,
बड़ों की महफिल से दूर हटना,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

पापा के कँधे पर बैठ दुनिया देखना,
माँ की आँचल में सो नन्हें ख्वाब समेटना,
भाई के साथ अपने-अपने खिलौने सहेजना,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

पहले प्यार का वो सुहाना असर,
नए ख्वाबों में हर रोज का सफर,
कैसे मिल जाती है पल में नजर से नजर,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!
मोहब्बत में जमाने को भूल जाना,
दिन-रात ना कुछ पीना ना खाना,
एक यही रट तुझको है पाना,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

पापा की मुझको कड़ी फटकार,
माँ का फिर भी वो ही दुलार,
बदल रहा था मेरा घर-संसार,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

जिंदगी की हरदम भाग-दौड़,
ट्रैफिक का गूंजता कानों में शोर,
आपाधापी में आगे बढ़ने की होड़,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

बन गया खुद का ही मेरा परिवार,
बसा लिया इक नया घर संसार,
पर माँ-बाप का वो प्यार,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

बाल-बच्चों का मुझपर झपटना,
पत्नी का हरपल डपटना,
जिंदगी से चुपके से मेरा कटना,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

माँ-बाप की अंतिम विदाई,
भाई से हो गई मेरी जुदाई,
जिंदगी ने कैसी यह दशा दिखाई,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!
शरीर में उपजा वो लाइलाज रोग,
दुनिया से जगा इक रोज जोग,
पैदा हुआ अद्भूत संजोग,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

धड़कन से निकलती आखिरी साँस,
परिवार वालों के मेरे प्रति जज्बात,
जिंदगी से मेरी आखिरी बात,
मौत से चुपके से मुलाकात,
सिमटती और रुकती मेरी हर साँस,
बस इक यही बात,
अब तक ना भूला!

Saturday, September 3, 2011

भरे है नीर से लोचन

भरे है नीर से लोचन,
कोई तो हो इन्हें पोंछे।
बिना भावों के बोझिल मन,
करे अब क्या,किसे सोचे?

वही है दूर से आना,
कही फिर दूर तक जाना,
जुड़े जो डोर तुमसे ना,
उसे फिर कोई क्यों खींचे?

भरे है नीर से लोचन,
कोई तो हो इन्हें पोंछे।

कोई सागर समाया है,
मेरे मन में उठा तूफान,
विरह के रेत के बिना,
सूना है ह्रदय का रेगिस्तान।

उड़ा कर ले गयी हवा,
जिन गुजरे लम्हों के निशा,
दौड़ा-दौड़ा अब थक गया मै,
चलते-चलते उनके पीछे।

भरे है नीर से लोचन,
कोई तो हो इन्हें पोंछे।

ख्यालों में सजाता हूँ,
परस्पर नेह की इमारत,
मिले बिछुड़ा हुआ कोई,
यही करता हूँ इबादत।

मगर जब टूट कर सारे,
बिखर जाते है मेरे ख्वाब,
जाग जाता हूँ तब ही मै,
चुपचाप आँखों को मींचे।

भरे है नीर से लोचन,
कोई तो हो इन्हें पोंछे।