गली,मोहल्ले,गाँव शहर में,
रात दिन,सुबह शाम,भरी दोपहर में।
चिंता से पीड़ीत,कुंठा से कुंठित,
बेटी की शादी की बात है सोचती,
एक माँ मन ही मन बड़ा कचोटती।
कोई भला सा कामकाजी लड़का मिले,
तो खिल जाएँ बेटी की सूनी बागवानी,
शुरु हो उसकी भी इक नई कहानी,
वो तो थी बस इंजीनियर की दीवानी।
लम्बा हो,नाटा हो,हो कोई कद काठी,
दामाद को लगा लूँ,प्यार से अपनी छाती।
राम हो,श्याम हो,या हो भोला,
बस ओढ़े वो इंजीनियर का चोला,
सब उसको इंजीनियर बाबू बुलाए,
काश ऐसा लड़का मेरी बेटी को मिल जाएँ।
पा लूँगी एक साथ मै,
गँगा,यमुना का पानी,
हो जाएगी जब मेरी बेटी बेगानी,
वो तो थी बस इंजीनियर की दीवानी।
कई रिश्ते आये बड़े बड़ों के,
डाक्टर,व्यापारी और अफसरों के।
सबको था नकारा ये कह कर,
बेटी तो ब्याहेगी बस इंजीनियर के घर।
किमती जेवर,हीरे जवाहरात पायेगी,
बेटी मेरी विदेश घूमने जायेगी।
लोगों ने सोचा ये है उसकी नादानी,
दुविधा से बड़ी पीड़ित है,
ये बुढ़िया रानी।
पर वो तो थी बस इंजीनियर की दीवानी।
ढ़ुँढ़ते ढ़ुँढ़ते ऐसा लड़का,
कई साल यूही गए बीत,
उदास हो गई वो माँ बेचारी,
बेटी को जो ना मिला कोई मीत।
देखकर बेटी की भरी जवानी,
कहती बेटी तो हो गई है सयानी,
जल्दी थी अब उसको,
बेटी के हाथों में मेहंदी रचानी।
वो तो थी बस इंजीनियर की दीवानी।
हर रात उसके सपने में,
दामाद इंजीनियर था आता,
कहता माँ जी चिंता ना करो,
मेरा तो है तुमसे बड़ा पुराना नाता।
कुछ महीने डिग्री के है बाकी,
फिर मै बारात लेकर आऊँगा,
तुम्हारी बेटी को ब्याह कर,
इक रोज मै ले जाऊँगा।
खत्म होगी तब जिंदगी की मनमानी,
जब होगी इक इंजीनियर की मेहरबानी,
तब शान से सारे जहान से कहना.......
मै तो हूँ बस इंजीनियर की दीवानी।