Thursday, June 30, 2011

आज नींद भर सो लो....

तुम्हारे होंठ पर रख दी थी,
मैने हथेली अपनी,
और अपनी नज़रों से कहा,
कि कुछ और ना बोलो।
ये मेरा प्यार है नाजुक बड़ा,
दिल टूट जायेगा,
है तुमसे प्यार कितना जान लो,
पर और ना तोलो।

मेरी इन आँखों में देखो,
दिखेगी तस्वीर एक ऐसी,
जो तुमसे मिलती होगी पूरी,
या होगी तुम्हारे जैसी।

छुपे है राज गहरे दिल में,
इन्हें अब राज रहने दो,
कि है जो बंद दरवाजे,
इन्हें तुम और ना खोलो।

यकीन होगा तब तुम्हें,
जब मै ना होऊँगा,
अश्क बन कर आँख से तेरे,
मै जब खूब रोऊँगा।

बना लेना मुझे तब अपना,
पराया मुझे ना यूँ करना,
और अपनी गोद में रख सिर मेरा,
कहना कि आज नींद भर सो लो।

आज नींद भर सो लो.......।

पता नहीं क्या जमाना आ गया है...आज मेरी इस रचना को एक सज्जन ने बड़े शान से अपने आरकुट प्रोफाईल पर डाल दिया और मुझे बताया भी नहीं..पर मेरे कुछ शुभचिंतको ने मुझे बताया...और जब उन्हें तरह तरह के कामेन्ट प्राप्त हुये तो खुद उन्होनें फोन कर के मुझसे माफी माँगा...भाई ठीक है चोरी किजीये.....पर बता कर...."मेरे लिए तो यह गर्व की बात है,कि इतनी कम उम्र में मेरी कविता प्रोफेसरों द्वारा चोरी की जार रही है।"...मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता..."मेरा कवि ह्रदय तो हमेशा मेरे पास है....आप कविता चुरा सकते हो,पर मेरे कवि ह्रदय को कभी भी नहीं पा सकते।".....

Tuesday, June 28, 2011

आज अपने अंत की दहलीज पर....

आज अपने अंत की दहलीज पर,
मै आ खड़ा हूँ।
जी रहा सब जानते है,
मै हूँ जिन्दा मानते है।

पर मै तो इस जिन्दगी में,
जीकर भी कई बार मरा हूँ।

आज अपने अंत की दहलीज पर,
मै आ खड़ा हूँ।

अब नहीं मुझको लुभायेगा तुम्हारा स्नेह निश्छल,
अब नहीं मुझको बुलायेंगे कभी वो भूत के पल।

अब तो मेरे साथ होगा,
एक ऐसा निडर मन,
जो देगा स्वरुप को मेरे,
एक अद्भूत,अदृश्य तन।

मर कर भी मौत से मै,
जाने कितनी बार लड़ा हूँ।

आज अपने अंत की दहलीज पर,
मै आ खड़ा हूँ।

है यहाँ वियोगीयों की फौज सारी,
युद्ध एक घमासान है यहाँ भी जारी।

लोग अब भी जलते है एक दूसरे से,
मौत की ये दुनिया है बड़ी ही न्यारी।

दुष्ट दाँतों में अकेला जीभ सा मै,
असहाय होकर बिल्कुल अकेला सा पड़ा हूँ।

आज अपने अंत की दहलीज पर,
मै आ खड़ा हूँ।

Saturday, June 25, 2011

ऐ जिंदगी मेरी

मेरी आवाज में बैकग्राउंड ध्वनि के साथ यह कविता


कब से तुझे बचाता रहा ऐ जिंदगी मेरी,
क्या था पता इक दिन मुझे ही छोड़ देगी तू कही!
बरसात से,धूप-छाँव से,
नफरत के घिनौने भाव से!
हरदम तुम्हे दूर रखता था,
सुख के सिवा तू कुछ ना चखता था!

मुझको कहाँ था ये पता,
तू भी परायी बन जायेगी!
इक दिन मुझे छोड़ के जहाँ में,
जग से मुझे बिसरायेगी!

हर चोट तुझपे जो आती थी,
दिल दर्द से भर कर रोता था!
ये आँख बरस कर बूँदों में,
दिल के जज्बातों को खोता था!

क्या था पता इक दिन,
ये नूर,ये अंबक भी मेरा ना होगा!
कितने ख्वाब सजाये थे जिन पलकों पे,
वो इक पल में जुदा होगा!

होश में जब से मेरी आहटे थी,
तेरे लिये क्या-क्या ना किया!
ठंडक में जमने,
गर्मी में झुलसने से तुझे बचाता रहा!

बरसात में जो भींगता,
झट से तुझे सुखाता रहा!
हर वक्त तेरे साथ ही कटती थी मेरी जिंदगी,
क्या था पता इक रोज तू बन जायेगी मेरी बंदगी!

बडा़ स्वार्थी है तू क्या कहूँ,
मेरी इक पल ना याद आयी!
भूल गया बस इक झगड़े में,
अपने प्यार की सारी लड़ाई!
तुझसे ही तो रौशन था,
मेरी चाहतों का दीया,
क्यों कर दिया इक पल में सूना,
भावों से मेरा जिया!
क्या पता था तू निकलेगी स्वार्थी मेरी ज़िंदगी!

इक बात तो है तुझसे कहनी,
मेरे बिना ना है तेरी भी जिंदगानी!
मै भी ना कुछ हूँ,ना तू ही है कुछ,
बस साथ में ही बनता है,
हम-दोनों का अस्तित्व!

लौट के कभी जो आ जाना,
मुझे यूहीं खड़ा पाओगी,
क्या था पता तुम कभी लौट के ही ना आओगी!

कब से तुझे बचाता रहा ऐ जिंदगी मेरी,
क्या था पता इक दिन मुझे ही छोड़ देगी तू कही!

Wednesday, June 22, 2011

आत्मा सौंप रहा हूँ

आत्मा सौंप रहा हूँ तुमको,
चिर काल तक करना संरक्षित।
युगों युगों से  व्याकुल मन में,
मधु भावों को करना संचित।

तम में भी ना खोना स्थिरता,
प्रकाश की चकाचौंध में ना होना लोपित।

आत्मा सौंप रहा हूँ तुमको,
चिर काल तक करना संरक्षित।

दिगभ्रमित मनोदशा का करना त्याग,
संसार विमुख धर लेना वैराग,
कलुषित तन के अवसान से ना घबराना,
आत्मा ही है सर्वोपरि दुनिया को दिखलाना।

परमात्मा से आत्मा की मधुर मिलन में ही,
रहना हर क्षण तुम केंद्रित।

आत्मा सौंप रहा हूँ तुमको,
चिर काल तक करना संरक्षित।

नश्वर तो मानव काया है,
आत्मा है युगों से अमर सिंदूर,
भावनाओं के उमरते बादल घनघोर,
प्रपंचों से रहना तुम बिल्कुल दूर।

मन को कुंठित ना करना कभी,
सांसारिकता जो करे तुमको उपेक्षित।

आत्मा सौंप रहा हूँ तुमको,
चिर काल तक करना संरक्षित।

क्षीर सागर अथाह,अनंत है,
भगवान वही मिल जायेंगे,
मोक्षित होगी आत्मा की तस्वीर,
तो श्री चरणों को पायेंगे।

आत्मबल करो इतनी विकसित 
उर नैन को कर लो जागृत।

आत्मा सौंप रहा हूँ तुमको,
चिर काल तक करना संरक्षित।
दाता हूँ मै तुम्हें सौंपता,
स्व अस्तित्व की जगमग लौ,
प्रकाशित करना चिर काल तक,
तम के भावों से प्रज्जवलित भव।

संदेह ना ऐसा हो उत्पन्न,
मै कौन हूँ,तू कौन है?

बस आत्मा ही सत्य है,
तन का अवसान इक मौन है।

रक्त के अक्षरों से लिखना,
भावी जीवन के सुख दुख गीत।

आत्मा सौंप रहा हूँ तुमको,
चिर काल तक करना संरक्षित।

Friday, June 17, 2011

जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।
मिलन निशा का इक गीत अनोखा,
जो कंठों से फूट पड़े,
खुद पर ना हो जब प्राण का बस प्रिय,
तो प्रेम दिवाने क्या करे।

संगीत जिसका मौन हो,
जो नैनों से ही हो स्वरित।

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।

वीणा के तार पर फेर उँगली,
गूँजेगा जो इक मधुर धुन,
ह्रदय मेरे तू अधीर ना हो,
स्व स्पंदन के गीत को सुन।

व्याकुल ना हो इस रात फिर प्रिय,
करना अब तू न मन को कुंठित।

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।

ध्वनि का मिलन हो प्रतिध्वनि से,
मेरे गीत तू जा ह्रदय में समा,
गूँजेगा वो गीत अब यूँ नभ से,
गायेगा प्रणय गीत सारा जहाँ।

बना तू गीत ऐसा जो मन का,
हर ले सारा दुख और विषाद,
तू ना कर अब यूँ एकाकी,
इक क्षण भी जीवन का व्यतीत।

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।

Thursday, June 16, 2011

पर कर्ण ही साथ निभाया ना

सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।
कही दूर से आती वो ध्वनि,
जब कानों से मेरे टकराई,
जगत के बेसुरे ताल में,
जब मधुर गीत गई थी समाई।

बस शोर गुल ही सुन सका,
संगीत जीवन में समाया ना।

सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।

जो पिघले हर क्षण मोम सा,
दे जाता है जगमग जीवन,
जो घिस घिस कर चंदन सा,
दे जाता है सुगंध नूतन।

वैसा सुर,लय और ताल सा,
संगीत बना मै पाया ना।

सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।

प्रयत्न मेरे हर बार विफल,
कभी ना आया जीवन में कल,
टूटे बस आज के सपने न्यारे,
जो बीते जीवन के सारे पल।

निराश हुआ तब और अधिक,
जब कुछ सुन कर भी सुन पाया ना।

सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।

Tuesday, June 14, 2011

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात

मिला हर तन को शांत विश्राम,
थकन के बाद पाया सब ने आराम,
नैनों में सजाये ख्वाब अनूठे,
मिल गया जीवन का वो मुकाम।
नींद ही मुझसे रुठ गयी जब,
नैनों ने बुलाया तुमको हर रात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

बिखरे मेरे जो लट घुँघराले,
हुये सभी अब प्रेम मतवाले,

मुझको पागल ही कह डाला,
प्रेयसी ने पिलायी जो रुप की हाला।

छलक गये सुधा बूँद से न्यारे,
तेरे मधु अधरों से मुखरित हर बात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

जागी इक चाह जो मुझको तेरी,
कहने की है बस मेरी मजबूरी,
तेरे द्वार पर दौड़ा आऊँ,
मिटती हर बार है कुछ तो दूरी।

तेरी तरफ मेरे दो नैन,
देखा करते क्यों दिन रैन।

हुआ जो बेचैन तो जग ने समझा,
 कि मिली है मुझे प्यार में मात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

कोई फूल सुगंध लुटाता है,
तब भींगी भींगी खुशबू जग पाता है,
कोई शूल राह में चुभ जाता है,
फिर भी वो राह दिखाता है।

कभी फूल चुना,कभी शूल बना,
नियति ने दिखाया कठिन हालात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

पहर दो पहर देखा बस मैने,
सृष्टा और सृजन का अनोखा तालमेल।

सृष्टि की इक सदी जो बीती,
खत्म हुआ कुछ पल सृजन का खेल।
मैने जाना सृजन है मनोहर,
और प्रलय है इक भयावह रात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

ईश्वर निराकार ही सत्य है,
आकार में उसे न बाँध सका,
सगुण उपासना राह भक्ति की,
निराकार को कभी पा न सका।

मन की पीड़ा हर बार कही,
उस भक्ति के दिव्य ज्योति से,
पर मूर्ति के देवता ने कि ना,
कभी भी मुझसे कोई बात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

Saturday, June 11, 2011

किससे कहता मै उर की पीड़ा

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!
इक क्षण में सब प्यार भूलाकर,
स्वर्ग से धरती पर लाकर,
जैसे तुमने यूँ कह दिया,
मेरे प्यार को हर बार पाकर!

बस मौन रहा मै,क्या कह पाता,
दिल को जो दुखाये अपने!

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

जगा इक दर्द निराला बड़ा,
दर्द में भी प्यार मुस्कुराया,
बस प्यार है वो चीज,
जो गम में भी हँसना सीखाया!

कहने को बढ़े कुछ तुमसे,
क्यों दिल को दुखाया तुमने?

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

मिलन तुमसे है मेरा हर बार अधूरा,
दिल में थी ऐसी उलझने,
इतने रह के हम पास तुम्हारे,
क्यों दो अंजान,अजनबी बने!

होंठो की बाते,दिल की सौगाते,
जो हर बार चाही थी तुमको कहनी,
सुनो आज है रुठ कर,
तुमसे है बहुत कुछ कह दी उनने!

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

Wednesday, June 8, 2011

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।
कौन सी पहचान मेरी कौन हूँ मै?
तुम हो मेरे या मै तेरा हो गया हूँ।

ना रही अब सुध मुझे अपने डगर की,
राह,मँजिल,लक्ष्य को मैने भूलाया,
बूँद बन कर बह गया जब आँख से दिल,
तब कही जाकर है मैने तुमको पाया।

मै हूँ तुझमे या कि तेरे ही ह्रदय का,
मेरे ह्रदय में बन बसेरा हो गया हूँ।

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

मौन की मालाओं में जो शब्द तुमने,
प्रेम से अपने था स्नेहीत कर पिरोया,
राग से संगीत की वो गूँज जिसको,
मेरे मन की बाँसुरी से तुमने गाया।

ढ़ुँढ़ते है साज अब तो बस तुम्ही को,
साँस बन कर आज तेरी धड़कनों में,
प्राण की पहचान बनकर मै तुम्हारे,
रग में रक्त रक्त सा बन खो गया हूँ।

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

है प्रवेश मेरे ह्रदय का तेरे ह्रदय में,
आत्मा से है परमात्मा का मिलन,
मेरा,तेरा हो जाना है स्वप्न मिथ्या,
ये तो है "मै" का "तुम" को नमन।

भूल कर अब लौ सी अपनी जलन को,
मोम सा बन हर पल तुझमें गल गया हूँ। 

मै तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुम्ही में ढ़ल गया हूँ।

Tuesday, June 7, 2011

आत्मा की प्यास

"आज प्रस्तुत है मेरी लम्बी आध्यात्मिक कविता "आत्मा की प्यास" का शुरुआती कुछ अंश....इस कविता में मृत्योपरांत यात्रा का वर्णन किया गया है और आत्मा का परमात्मा से मिलन को दर्शाया गया है...."

अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त,
मन में उभरते विचारों ने बना दिया मुझको संदिग्ध।
ऊषा की पहली ओस के बूँदों को पीकर चल पड़ा,
किरणों की छतरी ओढ़ के असहाय ही बढ़ता रहा।

एकांत वन में व्याधों सा,
विमुख संयम का बाँध टुटा,
ना ही मै शिकारी था,
फिर भी पशुता को लाँघ चुका।

वन की खामोशि ही बया करती थी,
आने वाला है तूफान,
भय का ना कोई जुबा होता है,
दिखता नहीं है शैतान।

वृक्षों से पत्ते टुट कर सरवर में तैरना सीखते,
सरवर की बाहें खुल गयी,
पैदा हुआ बूँद सुरमयी,
टीप की आवाज भी कही,
कानों में आहट सी लगी।

मुड़ मुड़ कर सबको देखता,
जाग गया है शायद वन देवता।

विलुप्तता की आवाज थी,
या था मौन का व्रत कोई,
न जाने कहाँ जा छुपे थे,
जँगल के सारे पशु पक्षी।

ग्रीष्म की भीषण विध्वंस भी,
उड़ा रही थी लू की लपट,
पसीने की बूँदे चौंका देती थी,
कोई नरम छुवन का हो स्पर्श।

थक के यूँ चूर हो कर कही,
छावँ की डगर तलाशता,
सरवर से बुझती प्यास न थी,
दो आँखें एकटक मुझे ताकता।

बड़ी चैन सी मिल रही थी,
हर तरु तिलिस्म दिखा रही थी,
हवा के झोंको से रह रह कर,
टहनी आवाज लगा रही थी।

स्वागत मेरा ये हो रहा था,
या मौत का फंदा गले लगा था,
खामोश वन से क्या पूँछू,
पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।

Sunday, June 5, 2011

फिर नया आगाज कर ले

जिंदगी की इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।
दब गयी जो साँस मन में,
एक नया आवाज भर ले।

देख ले दुनिया को,
फिर हम खूबसुरत नया नया सा,
फिर किसी की चाहतों के वास्ते,
जी ले और मर ले।

जिंदगी की इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।

टुट कर बिखरोगे जो तुम,
क्या मिलेगा टुटने पर,
तुम ही होगे कल के सपने,
टुटते को जोड़ दो गर।

इसलिए हे पथिक! मत थक,
दूर तक तू हँस के चल ले।

जिंदगी की इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।

कल तू क्या था वो पुरानी बात हो चुकी है,
सर झुकाता था जहाँ तू,
वो सर आज तेरे सामने झुकी है।

वक्त का है खेल सारा,
जिसने है सब कुछ सीखाया,
दौड़ कर तू राह में,
फिर वक्त के पंजों को धड़ ले।

जिंदगी की इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।

Saturday, June 4, 2011

बस दर्द ही लिया है

कितना प्यार छलकता था तेरी आँखों से,
जिसको हर पल मैने महसूस किया है,
रो रहा था मन जब मेरा मुस्कुरा कर,
प्यार देकर भी तो मैने दर्द ही लिया है।
तेरे पहलू में छुपा कर आँख अपने,
आँसूओं की जब कभी बरसात होती,
भींग जाता था तुम्हारा भी तो दामन,
और मैने भी तो खुद को भींगो लिया है।

राह तेरे तकते जाने कब रात होती,
और रातों में चाँद से बात होती,
ढ़ुँढ़ते रह जाते थे तुमको वहाँ पर,
तुमने कहाँ से मुझको आवाज दिया है?

है खबर ना खूद की ना ही है जहाँ की,
मै तो अब बन गया हूँ तेरा दिवाना,
मर गया भी तो गम नहीं है मुझको,
रुह की भी है तमन्ना बस तुमको पाना।

क्या बताऊँ,कैसे दिखाऊँ आज तुमको,
आँसूओं को भी पानी समझ कर पी लिया है।

प्यार में है ऐसा लगता सब कुछ खोकर,
और भी कुछ रह गया है लुटाना,
पा लिया है जिंदगी में सब कुछ मैने,
पर तुम्हारे बिन है सब व्यर्थ पाना।

यूँ नहीं ये हाल दिल का हो रहा है,
तेरी यादों में ही हर पल तेरे संग जिया है।

Thursday, June 2, 2011

चुप ही रहूँ

चुप ही रहूँ तो क्या बुरा,
कह के भी मै क्या कर सका!
दब जाती है आवाजे मेरी,
खामोशिया देती है पनाह,
घुट-घुट कर ही रह जाता हूँ,
रोने की तो है अब मना!

आँसू भी तो ना है अब मेरा,
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!

कुछ दूर तक तन्हाई हो,
बीते पलों की याद आई हो,
सुनसान राहों का राही कोई,
मानो अपनी मँजील पा ली हो!

कोई जख्म दिल का ना भरा,
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!

जादूगर नहीं हूँ शब्दों का,
शब्दों का जाल कैसे बिछाऊँ,
अपनी बातों से दुनिया के,
छलावे को कैसे रिझाऊँ!

सुना है भावों से अब तो,
मेरे मन का धरा!
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!

भटका फिरा ताउम्र मै,
बस इक आनंद की खोज में,
जो मिल गया बिन माँगे ही,
मौन के भाषा की गोद में!

मन का दर्द है ये जाने कितना बडा़,
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!