Tuesday, December 27, 2011

दर्द की नायिका

तुम दर्द की नायिका,
और मै नायक उस अभिनय का,
जहाँ बस दर्द के ही रास्ते पे,
चलता रहा हूँ मै।
छुपा लिया है मैने,
दर्द की इक पुरानी,
नदी दिल में कही।

जो कभी कभी बूंदे बनकर,
बहती रहती है मेरी इन आँखों से।

कभी हर मंजर दिखा देती है,
सामने उस रात को,
जिनमें तुम्हारे साथ था मै।

मेरा यह अभिनय शायद,
उम्र भर का है,
और दर्द से यह वास्ता भी,
पुराना है।

तभी तो निभाता रहा हूँ,
पूरी ईमानदारी से अपना पक्ष हरदम,
ताकि अपने पात्र को सजीव कर सकूँ।

अचानक कोई तूफान सा आता है,
मेरा घर,मेरा रंगमंच,
मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है।

मेरी दर्द की नायिका अब सामने,
नहीं है मेरे,
पर यह दर्द मुझे एहसास कराता है,
तुम्हारे इस अभिनय में कभी होने का।

तुम्हें ढ़ूँढ़ता रहता है यह दर्द का नायक,
अपनी दर्द की नदी में,
भावनाओं की एक नाव पर बैठा।

बस चलता जाता है,
चलता जाता है।

अभी भी शायद इक लगन है,
दिल में कही,
कि डूबता वो हमसफर,
मिल जाये फिर।
हवायें बहती है,
साँसे चलती है,
और हौले हौले मन में इक,
भय समा जाता है।

क्या अब इस अभिनय में यह,
दर्द का नायक अपनी,
नायिका के बिना ही रहेगा।

समय बीतता है,
हर जख्म भरता जाता है,
और आदत हो जाती है उसे,
तुम्हारे बिन रहने की।

तुम्हारी स्मृतियाँ,तुम्हारा स्पर्श,
सब कुछ धीरे धीरे,
तुम्हारे साथ ही बह सा जाता है,
मेरी दर्द की नदी में।

कभी फिर तूफान आता है,
फिर हवायें तेज चलने लगती है,
और तुम्हारी आहट मेरे चित्रपट पर,
गूँजने सी लगती है।

दौड़ता हूँ कुछ दूर तक,
पीछे पीछे तुम्हारे,
पर अचानक ठहर जाता हूँ मै,
क्योंकि वहाँ आधार नहीं है,
एक गहरी खायी सी है अब,
मेरे और तुम्हारे बीच।

मै अब भी झूठे अभिनय में,
जी रहा हूँ,
अपने दर्द के साथ,
और तुम दर्द की नायिका,
दर्द से कोसों दूर जा चुकी हो।
फिर भी दर्द का रिश्ता मेरा,
और तुम्हारा खींच लाता है,
तुम्हें हमेशा,
पुरानी यादों के सहारे।

अक्सर अपने दर्द के नायक के पास।

Thursday, December 22, 2011

गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है

आखिरी पल का अकेला,
गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।
रुक न जाये श्वास वेला,
मीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

स्नेह का आकाश अब भी,
नेह का दो बूँद माँगे,
अश्रु का प्रवाह बह-बह,
नैनों की फिर बाँध लाँघे।

सिसकियाँ देती है मेरे,
सर्द रातों की गवाही,
तेरे पीछे-पीछे चलता,
बन गया मै प्रेम राही।

सुनहरी रातों का प्रणय रीत,
तुमको ढ़ूँढ़ता है।

आखिरी पल का अकेला,
गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

किस अधर ने किस घड़ी था,
कंठ से उसको सुनाया,
और वह था गीत कैसा,
जो मेरे अंतस में छाया।

गीत तो था मानो ऐसा,
मौन ने हो शब्द पाये,
चैन की दो बूँद मानो,
विरह के क्षण माँग लाये।

श्वास के बिन फिर बूझा,
संगीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

आखिरी पल का अकेला,
गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।
इससे पहले भी था आया,
राग का प्रवाह मुझमे,
और रातें भी बन आयी,
प्रेम का गवाह मुझमे।

ह्रदय तारों में अजब सी,
एक हलचल उठ रही थी,
प्रेम का हर राह मानो,
मुड़ गया तेरी गली में।

मौन पर फिर सिसकियों का,
जीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

आखिरी पल का अकेला,
गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

नींद में अब भी है जागी,
याद की सारी कहानी,
भूल कर तुमने किया है,
प्यार पर कोई मेहरबानी।

अब भी आँखें ढ़ूँढ़ती है,
दर-ब-दर बस तुमको ही क्यों,
लुट गयी जब जिन्दगी,
मस्ती मेरी,अल्हड़ जवानी।

कुछ नहीं पर जो बचा वो,
प्रीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

आखिरी पल का अकेला,
गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।
है प्रतीक्षारत नयन किस घड़ी,
प्रेयसी निकट आये,
कंठ के बिन स्वर सजाकर,
कैसे कोई गीत गाये।

चूभ रही है हर घड़ी,
दर्पण तुम्हारी इस नयन में,
स्नेह की अग्नि बिना,
है लौ कैसा इस हवन में।

कँपकँपाती होंठों पे वो ओस जैसा,
प्रलयंकारी शीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

आखिरी पल का अकेला,
गीत तुमको ढ़ूँढ़ता है।

Thursday, December 8, 2011

रुला के तुमको खुद रो दिया मै

मेरी सौवीं पोस्ट.......

रुला के तुमको खुद रो दिया मै,
गुनाह ये कैसा किया मैने।
बेवजह अश्रु के मोतियों को,
तेरे नैनों में भर दिया मैने।

दर्द देकर दर्द की ही,
इक नदी में बह गया मै।

रुला के तुमको खुद रो दिया मै।

क्यों नहीं मै जान पाया,
तुमको ना पहचान पाया,
प्यार को नफरत समझकर,
हर बार तेरा दिल दुखाया।

जानता था है गलत यह,
पर यह गलती क्यों किया मैने?

रुला के तुमको खुद रो दिया मै।

पास तेरे दर्द अपना कह ना पाया,
क्या कहूँ तुम बिन तो इक पल,
रह ना पाया।

तुम चली गयी तो लगा कि दूर मुझसे,
जा रहा है आज खुद मेरा ही साया।

साँस के बिन बस तड़प कर रात काटी,
और दिन के उजालों में भी तुम बिन जिया मै।

रुला के तुमको खुद रो दिया मै।

साथ मेरे अब नहीं है कोई साथी,
दूर है खुशियों की सज,धज और बाराती।

राहों में मँजिल से अपने खो गया हूँ,
क्या था मै और आज कैसा हो गया हूँ?

जानता हूँ सामने है प्याले में जहर,
रात है घनघोर अब ना होगा सहर।

पर न जाने प्यास है कैसी ये मेरी,
भर के प्याला जहर को हर बार पिया मैने।

रुला के तुमको खुद रो दिया मै।

चाहता हूँ पाना मै ना उपहार कोई,
गैर से भी ना करे ऐसा व्यवहार कोई।
मानता हूँ दिल दुखाया मैने तेरा,
पर नहीं था दर्द देना आवेग मेरा।

हूँ खड़ा बन कर मै तेरा गुनहगार,
हर सजा कबूल है तेरे वास्ते यार।

कह दे तू तो अंत अपना कर दूँ मै,
टूट कर शाखों से दामन भर दूँ मै।

टूटने,जुड़ने में खुद के जख्म को,
खुद ही मरहम भर कर हर बार सिया मैने।

रुला के तुमको खुद रो दिया मै।

Friday, December 2, 2011

मेरे जन्मदिन के दिन "काव्य संग्रह" का विमोचन........[आशीर्वाद दे]

सर्वप्रथम मै सत्यम शिवम अपने सभी साहित्य प्रेमीयों का अभिनंदन करता हूँ।आज मेरी जिंदगी के दो महत्वपूर्ण दिन है।एक तो आज मेरा "जन्मदिवस" है दूसरा आपसबों के आशीर्वाद से मेरे सम्पादन में प्रकाशित काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" का विमोचन।

सब आपसबों के आशीर्वाद और स्नेह से सम्भव हुआ है।हमेशा आप मेरी कविताओं और आलेखों पर अपने विचार रखकर उसे सही मार्गदर्शन देते है।यह मेरे लिये सौभाग्य की बात है।

आज आप सभी श्रेष्ठजनों से आशीर्वाद की इच्छा है।

"साहित्य प्रेमी संघ" के त्तत्वावधान में प्रकाशित काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान".....20 भावप्रधान कवियों की काव्य माधुरियों से सुशोभित.....एक अनोखा काव्य संग्रह...जिसमें आपको हर रस और रंग की 166 कवितायें एक साथ पढ़ने का मौका मिलेगा...और साथ ही इन कवियों से रुबरु होने का भी मौका मिलेगा....यह एक अनोखी उड़ान है साहित्याकाश में...."टूटते सितारों की उड़ान".......[यह काव्य संग्रह अब आपको प्राप्त हो सकती है.....इस काव्य संग्रह की अग्रिम बुकिंग कराने के लिये और अपनी प्रति सुनिश्चित कराने के लिए आज ही हमे मेल से सम्पर्क करे at contact@sahityapremisangh.com या इस नम्बर पर सूचित करे (9934405997)....."अग्रिम बुकिंग कराने पर पुस्तक रिबेटिंग कीमत पर प्राप्त हो सकेगी".........धन्यवाद]
ISBN 
(978-81-921666-4-3)

पुस्तक का प्रोमो विडियों आप देख सकते है यहाँ...

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