Friday, July 29, 2011

ब्याह की बात

भाभी ने की जो माँ से,
है आज मेरे ब्याह की बात।
मन में मेरे लड्डू सा फूटा।
इक कुँवारे जवान दिल आशिक से,
वर्षो से उसका खुदा जैसे था रुठा।

तन्हाईयाँ डसने लगी थी,
सुंदरियों की खुबसूरत तस्वीरें,
नैनों में मेरे बसने लगी थी।

रोता था रातों को छुपकर,
और दिन में आहे भरता था।

कुँवारी जवानी का बोझ भारी,
दिल पे मै अपने सहता था।

रातों में सपने आती थी,
मुझको दगा दे जाती थी,
कुरेद कर मेरी हसरतों को,
सताती थी और खूब तड़पाती थी।

सदियों के बाद मानों आज,
आई थी वो प्यार की रात।

सुहाने सपनों की रात,
स्वप्न में सुंदरी का साथ।

भाभी ने की जो माँ से,
है आज मेरे ब्याह की बात।

जिंदगी में ना मेरे कोई काम था अब बाकी,
पीने वाला मै ही था,
मै ही मधुशाला और साकी।

लड़खड़ाते कदमों से लुढ़कता रहता रात भर,
परिवार वालों को मेरे कैसे भी पता चले ताकि।
कि पूरा परिवार नहीं है,
कोई काम अभी भी है बाकी,
मेरी दुल्हन है राह देखती,
करवा दो कोई मेरी शादी।

मेरा जीवन तो सूना है,
ये दर्द तो हर दर्द से कई गुणा है।

बिन माँगे ही मिल गयी मुझे तो,
आज कोई सौगात।

भाभी ने की जो माँ से,
है आज मेरे ब्याह की बात।

सेहरा सर पर सजेगा मेरे,
रसगुल्ले,मिठाईयाँ बटवाऊँगा।

कब से था भूखा शादी को,
शादी के रोज खूब खाऊँगा।

गीत सजेंगे होंठों पर,
हर बात तराना बन जायेगा,
अपनी बारात में घोड़ी पर बैठा,
कोई गीत जब मै गाऊँगा।

हाथों में होगा जब किसी का हाथ,
बन जायेगी मेरे किस्से की बात।
मिल जाएगा जो सुंदरी का साथ,
खुबसूरत होगी अब मेरी हर रात।

भाभी ने की जो माँ से,
है आज मेरे ब्याह की बात।

"शादी वो लड्डू है जो खाए वो भी पछताए और जो न खाए वो भी ... तो खा कर ही पछताया जाये :):)"


 हा हा हा हा.....:):)

Tuesday, July 26, 2011

मै साँवला क्यों हूँ?

माँ मुझे तू आज बता दे,
मै साँवला क्यों हूँ?
काले मेघ सा है रंग निखर,
हूँ कृष्ण सा ही मै मनहर,
नैनों की शोभा काजल सा,
मै बावला क्यों हूँ?

माँ मुझे तू आज बता दे,
मै साँवला क्यों हूँ?

पनघट पे मै भी जाता हूँ,
पर कृष्ण सा हर्ष ना पाता हूँ,
अपनी ये रंगत धो लूँगा,
नदियों में मै नहाता हूँ।

सारी ग्वालिने चिढ़ाती है,
गोपियाँ आईना दिखाती है,
सारे लोग मुझसे पूछते है,
मै साँवला क्यों हूँ?

माँ मुझे तू आज बता दे,
मै साँवला क्यों हूँ?

साँवला होना क्यों बुरा है,
ये बात समझ नहीं आती है,
ये साँवला सा रंग मेरा,
मुझे रंगभेद सिखाती है।

राम,कृष्ण भी तो साँवले थे,
पर सब को वो तो प्यारे थे,
फिर मुझको क्यों सब कहते,
मै साँवला क्यों हूँ?
माँ मुझे तू आज बता दे,
मै साँवला क्यों हूँ?

बगिया में अब ना जाऊँगा,
ना ही बंशी बजाऊँगा,
अपने आँचल में छुपा ले मुझे,
वरना मै जी ना पाऊँगा।

जमाने के लिए मै साँवला हूँ,
पर तेरा सलोना लाडला हूँ,
फिर मुझसे सब क्यों पूछते है,
मै साँवला क्यों हूँ?

माँ मुझे तू आज बता दे,
मै साँवला क्यों हूँ?

Wednesday, July 20, 2011

कसक है आज भी दिल में दबी

कसक है आज भी दिल में दबी,
उस रात की कोई।
तुम्हारे पास होकर भी, 
मै तुमको छू न पाया था।

मेरा दिल चाहता था खुद में यूँ भर लूँ मै तुमको आज,
मगर अफसोस मैने हर पल तुमको गवाँया था।

नशा वह रात में था,
या तुम्हारी बात में था,
जो मुझको खींच कर बेसुध बना,
तेरे पास लाया था।

कसक है आज भी दिल में दबी,
उस रात की कोई।

तुम्हारे पास होकर भी मै तुमको छू न पाया था।

बहुत अरमान थे जिनको था पाला,
लम्बे अरसे से,
वही कुछ बोल मेरी आँखों से,
उस रात बरसे थे।

कभी सोचूँ जो तुमको पाने का,
यह ख्वाब है या सच।

नहीं थी तुम कही भी,
बस अंधेरे में मेरा ही साया था।
कसक है आज भी दिल में दबी,
उस रात की कोई।

तुम्हारे पास होकर भी मै तुमको छू न पाया था।

अभी तो रात की सारी कहानी,
पूरी बाकी है।

फलक पर चाँद भी शायद,
अभी अभी ही आया है।

मोहब्बत की कहानी चाँद की थोड़ी पुरानी है,
यही सोचकर मैने नया किस्सा बनाया है।

अधूरा है तेरे बिन,
मेरा होना या ना होना।

तुम्हारे ना होने के एहसास ने,
फिर क्यों मुझको रुलाया था।

कसक है आज भी दिल में दबी,
उस रात की कोई।

तुम्हारे पास होकर भी मै तुमको छू न पाया था।

कहूँगा तो हँस दोगी,
कहोगी झूठे हो।

मगर हर रात यूँ ही जाग कर,
मै भोर करता था।
तुम्हारी यादों से लड़ कर जो,
मेरी हालत होती थी,
तन जिंदा होता था,
बेचारा मन बस मरता था।

सुनोगी तुम नहीं जिस गीत को,
मै जानता था पर।

वही इक गीत मैने हर रात,
क्यों तुमको सुनाया था।

कसक है आज भी दिल में दबी,
उस रात की कोई।

तुम्हारे पास होकर भी मै तुमको छू न पाया था।

Sunday, July 17, 2011

विरहणी सीता

स्वर्णपुरी लंका का वैभव,
जगमग जगमग हुआ आलोकित।
अशोकवाटिका के तरु की छावँ में बैठी,
माँ सीता गुमशुम शुभासित।

ह्रदय मर्म विरहणी बना डाला,
होनी ने क्या कर डाला?

उदास,अशांत प्रियतम से दूर,
माँ सीता को अधीर क्यों बना डाला?

स्वामी! तुम बिन ना जी पाऊँ,
व्याकुल मन को कैसे मनाऊँ?

तुम सूरज मै तुम्हारी किरण,
तुम दीप मै तेरी बाती,
हे प्राणेश्वर! तुम बिन तो हर क्षण,
नैन अश्रु पल क्षीण क्षीण।

वियोग तुमसे मेरे मन का,
अब ये ह्रदय ना सह पाये,
अवसान निकट है तन का,
अब प्राण तन में ना रह पाये।

आ जाओ मेरे परमेश्वर,
रावण की सेना का संहार करो,
अपनी वियोगी,विरहणी भार्या पर,
प्रभु कुछ तो उपकार करो।

अधीर सीता बिलख बिलख कर,
अपनी नीयति पे अश्रु बहा रही थी,
खग,मृग,सुमन और वृक्षों को,
दयनीय दशा सुना रही थी।

रामभक्त हनुमान तभी अशोकवाटिका में पधारे,
बाग की सुंदरता देख,
चकित रह गये अचरज के मारे।

इक वृक्ष के नीचे माँ सीता को,
व्याकुल हो रोते हुये देखा,
किस्मत ने लिखा था हाथों में,
विरह,वियोग का जो लेखा।

गए समक्ष आतुर हनुमान,
माँ की पीड़ा से हो आह्लादित,
परिचय अपना दे मुद्रिका दिखा,
माँ को कर दिया मुदित।

माँ ने पूछा हनुमान कहो,
कैसे तुम सब प्रभु से मिले,
प्रभु से कहना जल्द सेना तैयार कर,
लंका के विध्वंस को चले।

अपनी वियोग की पीड़ा,
कहते कहते रोने लगे नैन,
प्रभु भी आपको याद करते है माँ,
हर पल दिन और रैन।

आँसू पोंछो माँ धीर धरो,
प्रभु जल्द ही आयेंगे,
इन आततायी राक्षसों के चँगुल से,
तुमको जरुर छुड़ाएंगे।

माँ को संदेह हुआ ये सोच,
बानर,भालू की ये सेना कैसे लड़ेगी,
लंका की इस भारी सेना का,
मुकाबला कैसे करेगी?
भीमकाय रुप हनुमान ने,
माँ के समक्ष तब प्रकट किया,
माँ के विश्वास को दे आधार,
बल का इक स्वरुप दिया।

क्या सारे तुम से ही बलशाली,
वानर और भालू है,
हनुमान ने दिलाया माँ को दिलासा,
सब एक से एक जुझारु है।

अब तो तू माँ कुछ धीर धर,
कुछ दिन वियोग और सह ले,
महलों में रहने वाली सुकुमारी,
जंगल में और कुछ दिन रह ले।

जल्द ही हम सब प्रभु के संग,
आकर तुझे छुड़ाएंगे,
अहंकारी दानव का कर मर्दन,
रावण को सबक सिखायेंगे।

राम,लक्ष्मण दोनों सकुशल है,
बस तेरी चिंता सताती है,
बस इक तेरे खातिर ही तो,
दो सुकुमारों को योद्धा बनाती है।

माँ को आश्वासन दे,
चूडामणि ले माँ का चले,
प्रभु को दिखाकर चूडामणि,
माँ से मिलने की बात कहे। 

Friday, July 15, 2011

करो तुम खुद पे भरोसा इतना

करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना,
हिम्मत को कभी ना खोना,
हतोत्साहित जरा भी ना होना।
हर मुश्किल जो राहों में है,
हर डगर पर तेरी जाँच है,
इक सफल परीक्षार्थी के लिए,
परिश्रम ही तो सफलता का सव्यसाँच है।

जगाओ दिल में विश्वास इतना,
जागती आँखों से भी देख सको सपना।

करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना।

आत्मविश्वास का शीला इतना बढ़ जाये,
हर रुकावट राहों का तेरे सामने झुक जाये।

तूफान भी तुम्हें ना अब डिगा सके,
सोई बदकिस्मती को कोई ना जगा सके।

बढ़ता ही जा तू बस इसी एक चाह में,
है दूर मँजिल तो क्या हुआ?
मै तो हूँ शामिल मँजिल की राह में।

जब डगर का हर इक शूल सुख देने लगे,
समझ लेना मँजिल अब निकट है,
किस्मत खुद राहों को मँजिल का मोड़ देने लगे।

दिखा दो लक्ष्य के लिए जुनून इतना,
असफलता ना पड़े कभी राहों में चखना।

करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना।
बार बार गिर कर भी मकड़ी,
मँजिल की चाहत ना खोई थी,
इस तथ्य को ही जान कर,
गौरी ने पृथ्वी राज पर जीत बोई थी।

अगर वह थक कर हार जाता हतोत्साह में,
तो कहाँ मिल पाती जीत उसे जहाँ में।

इन बातों को ही दिल में रख जज्बा रखो,
अपने विश्वास को हर वक्त जवाँ रखो।

बता दो दुनिया को है जीतना,
अधूरा ना रहे जीवन का कोई सपना।

करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना।

हर रोज सूरज उगता है,
शाम को फिर डूबता है,
कहाँ वो कभी थकता है।

कभी जो बादल छा जाते है,
कुछ पल में सब चीर निकलता है।

सूरज से सीखो जीवन में,
कैसे गर्मी,बरसात झेलते है,
समय के साथ जीवन में,
कैसे डूब कर फिर से उभरते है।

तुम भी बन जाओ सूरज जैसे,
चमको फलक पे हरदम ऐसे।

करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना।

तेरा काफिला गुजरे जहाँ से,
उत्साह,उमंग का सागर बहे वहाँ से।

युवापीढ़ि इसमें गोता लगा के,
चले हरदम सफलता की डगर पे।
पर्वत को भी पार कर सके,
सागर भी बना दे राह,
विश्वास ऐसा हो दिल में,
कि पत्थर पर भी फूल खिला।

करो तुम कुछ ऐसा जतन,
कि पूरी दुनिया करे तुमको नमन।

करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना।

Tuesday, July 12, 2011

क्यों होता है?

कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।
दुनिया दो मुखौटो का खेल है,
जीवन ताउम्र एक जेल है।

हर सजा यहीं सब पाते है,
सुख दुख तो आते जाते है।

कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।

इंद्रधनुष में सात रंग क्यों होते है,
नैनों को अपने हम क्यों भिगोते है?

क्यों बादल नभ में छाते है,
बिन बरसे ही चिल्लाते है।

बगिया क्यों आँसू बहाती है,
हर सुबह क्यों भींग जाती है?

कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।

खुशियों में दिल क्यों झूमता है,
किस्मत की हथेली हर कोई क्यों चूमता है?

गुस्से में आँखें लाल क्यों होती है,
उदासी में मन क्यों बोलती है?

आसमां भी कभी कभी क्यों रोता है,
बरस कर वो किसको खोता है?
कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।

हर इंसान भगवान क्यों नहीं होता है,
आत्मा के बिना शरीर बेजान क्यों होता है?

पापी अपने पापो को गंगा में कैसे धोता है,
जानवरों में घोड़ा खड़ा खड़ा कैसे सोता है?

इक बाप अपने बच्चों में संस्कार कैसे बोता है,
इक डाल में ही एक काँटा और एक फूल कैसे होता है?

कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।

मन में विचार क्यों आते है,
प्यार में सबलोग दर्द क्यों पाते है?

देश के लिए सैनिक खून क्यों बहाते है,
इक धागे के वास्ते भाई बहन रिश्ता क्यों निभाते है?

जो होते है सबसे प्यारे,
वो हमें छोड़ इक रोज कहाँ चले जाते है?

आती है जब याद उनकी,
तो नैन अश्क क्यों बहाते है?

कभी तुमने ये सोचा है,
जो है वो सब एक धोखा है।

जो होता है वो क्यों होता है?
जो नहीं होता है वो क्यों नहीं होता है?

Saturday, July 9, 2011

यह रात फिर नहीं आयेगी

यह रात फिर नहीं आयेगी,
वो बात फिर नहीं आयेगी।
कितना भी अँधेरा हो जाये,
काजल से कालिमा चुन लाये,
काले घनघोर बादलों से,
बरसात फिर नहीं आयेगी।

यह रात फिर नहीं आयेगी।

यह रात नहीं है बात है प्रिय,
तेरे मेरे अंतरमन का,
तेरा,मेरे होने का क्षण,
मिलन है दोनों के तन का।

घुल कर यह निशा का गीत,
प्रणय के गीत फिर वही गायेगी।

यह रात फिर नहीं आयेगी।

गुमसुम सा अकेला मेरा मन,
तेरे मन से मिला अपनापन,
साथी की जरुरत थी मुझको,
पूरा हुआ मै,तेरा बन।

अब नहीं जरुरत मुझे किसी की,
जब तू,मेरे संग आयेगी।

यह रात फिर नहीं आयेगी।

कुछ ऐसी हलचल सी है जो,
लहराती है,बलखाती है,
हवाओं के संग यादें तेरी,
अब आती है और जाती है।

शंका है हवाओं को भी क्या,
इस बार तुम्हें छू पायेगी।
यह रात फिर नहीं आयेगी।

जैसे-जैसे ढ़लती ये रात,
मन के तरंग में झंकार उठे,
कही दिन की उलझन में खोकर,
मन से मन का ना तार टूटे।

एक बार पड़ गयी गाँठ तो क्या,
फिर प्रीत की डोर जुड़ पायेगी।

यह रात फिर नहीं आयेगी।

Wednesday, July 6, 2011

साई-संगम

शिवजी को श्री राम है प्यारे,
प्रभु राम के शिव है न्यारे,
दोनों के संगम ही तो है,
शिरडीवाले साई हमारे।
साई हमारे शिव-साई है,
साई हमारे साई-राम,
शिरडी की पावन भूमि है,
हमारे लिए साई धाम।

हर कष्टों का एक ही साथी,
साई नाम,साई राम....।

नानक की मुस्कान है मुख पर,
शाने मुहम्मद की शान है तुझ पर,
साई है गोकुल का कन्हैया,
ये ही तो है दुर्गा मईया।

इसके हाथ में है सब की चाभी,
पार करेगा हम सब की नईया।

हर नौका का एक खेवैया,
साई नाम,साई राम....।

कलियुग में बस साई हमारे,
दूर करेंगे हर अँधियारे,
जात-पात का भेद भुला के,
सब आते है इनके द्वारे।

ये तो है शिव से मतवाले,
भोले-भाले,जग को पाले।

करुणा के सागर है साई,
हम बच्चों की ममतामयी माई।

हर अँधियारा दूर करेंगे,
साई नाम,साई राम....।
साई तो है दीन-दयाल,
रखते है हम सब का ख्याल।

हाथ पकड़ कर पार कराते,
जीवन में नयी राह दिखाते,
हर कष्टों को दूर भगाते,
राहों में खुशियाँ बिखराते।

दीन,दुखियों को जिसने पाला,
हम सब का बस एक सहारा।
साई नाम,साई राम....।

साई की कृपा अनंत है भक्तों,
साई दया अनमोल,
सब कुछ पा लोगे तुम इस जग में,
बस अंदर की आँख को खोल।

साई साथ है हर पल इसका नहीं है मोल,
अब मन रट ले हर पल मुख से साई बोल।

हर पल ये कह डोल,
साई नाम,साई राम....।

साई सुधा की बूँद को प्यासा,
बाबा रखो तुम ध्यान जरा सा।

रोम-रोम बस साई बोले,
जीवन में साई रस घोले।
साई चरण में अब नेह लगा के,
जग से अपना नाता तोड़े,
बाबा की भक्ति में खो के,
साई राम से रिश्ता जोड़े।

हर पल बस ये मुख अब बोले,
साई नाम,साई राम....।

कष्टों में जब भी साई पुकारा,
साई ने पल में दुख से उबारा,
हर पल साई साथ हमारे,
ऐसा है विश्वास हमारा।

जब भी दुख से ये मन हारे,
साई ने पल में है सम्भाला,
पापी जगत के हम पापी सारे,
साई ने सब को है तारा।

साई भक्तों का है ये नारा,
साई नाम,साई राम....।

दिल भर जाता है अब मेरा,
आँखों में आँसू आ जाता,
इस जग में था कितना अकेला,
साई जो मेरे साथ न आता।

हर दम मै बस ये गाता,
साई कृपा की कथा सुनाता,
साई है जीवन का सवेरा,
अँधियारी जो दूर भगाता।
कष्टों में डुब जाता बेड़ा,
साई जो ना पार लगाता।

साई जग का साक्षात विधाता,
दया की बारिश मुझपे बरसाता,
मेरा तुझसे ये कैसा नाता,
हर दम मै बस ये ही गाता,
साई नाम,साई राम....।

Sunday, July 3, 2011

यह नहीं अभिमान मेरा

यह नहीं अभिमान मेरा,
कि तू बसता है मुझी में।
सत्य की तू प्रेरणा देता,
जीवंत होकर मेरी सुधी में।

मै भटकता राह जब हूँ,
राह में तू आ कर कहता,
जिन्दगी के इस सफर में,
तू तो मेरे साथ ही रहता।

ह्रदय में प्राण श्वासों सा,
हर क्षण है तेरा बसेरा।

यह नहीं अभिमान मेरा।

भय नहीं मुझको सताता,
सोचता हूँ साथ है तू,
क्या है मेरे पास अपना,
जो मै तुमको भेंट में दूँ।

कर स्वीकार आज मेरे,
नश्वर तन का दान मेरा।

यह नहीं अभिमान मेरा।

दौड़ता मै हूँ कभी ना,
पर समय पर पहुँच जाता,
खोकर अपना सर्वस्व हरदम,
सम्पूर्ण तुमको पा ही जाता।

सारी कृति है तुम्हारी,
है ये सारा ज्ञान तेरा।

यह नहीं अभिमान मेरा।

द्वंद से कारण जो उपजे,
इसका हल तुझमें छुपा है,
मिल रहा सान्निध्य तेरा,
ये भी तो तेरी ही कृपा है।
जब से जाना है तुम्हें मन,
मिल गया है नाम मेरा।

यह नहीं अभिमान मेरा।

साँस मेरी थम रही है,
पास अब कोई नहीं है।

ये जहाँ के ख्वाब सारे,
बस जहाँ में ही सही है।

है मुझे उसकी जरुरत,
जिसे ना अब तक देख पाया,
पर स्वयं के होने में भी,
थी छुपी उसकी ही काया।

हो रहा है अब नहीं दुख,
जाये चाहे प्राण मेरा।

यह नहीं अभिमान मेरा।