Thursday, January 13, 2011

तो क्या करुँ

मै कवि कहलाने का अधिकारी हूँ या नहीं,
मुझे नहीं पता।
पर कविता खुद ही छलक जाती है,
तो क्या करुँ?
नहीं पता दयालु मै हूँ या नहीं,
पर आँखों से अस्क बरस जाते है,
तो क्या करुँ?

शब्दों का आकाश मेरे जेहन में बसा,
विचारों के बादल उनपे उमर जाते है,कैसे?
मुझे नहीं पता।

दोनों के टकराने से कविता की बारिश हो जाती है,
तो क्या करुँ?

जज्बातों का रेत मेरी सूनी मरुभूमि की जान है,
ख्वाबों को पन्नों में सजाना ही मेरा काम है।

कवि की दृष्टि कही भी पहुँच जाती है,कैसे?
मुझे नहीं पता।

थोड़ी मोड़ी मेरी भावनाएँ भी रँगीन हो जाती है,
तो क्या करुँ?

डगर में खड़ा चुपचाप सोचने लगता हूँ,
भीड़ में भी खुद को अकेला कहता हूँ।

विचारों की आँधी में बह जाता हूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।

राहों में चलते हुएँ ही कविता बना लेता हूँ,
तो क्या करुँ?

आदमी सा मस्तिष्क आम है,
ये लेखनी मेरी जान है।

भाव की स्याही उमर पड़ते है इनमें,कैसे?
मुझे नहीं पता।

लेखनी कुछ भी लिखवा देती है,
तो क्या करुँ?

आमोद,हर्ष और विषाद का तांडव,
बिन भावों के ये जीवन है बस शव।

जीवन में इक सच्चा इंसान बनूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।

कविता मुझे भगवान बना देती है,
तो क्या करुँ?

इंद्रधनुष से रँगों को चुरा लेता हूँ,
चाँद की चाँदनी को छुपा देता हूँ।

जो चाहता हूँ करता रहता हूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।

लोग इन चंचलताओं को कविता नाम देते है,
तो क्या करुँ?

शब्दों की नदी पल में बहा देता हूँ,
भावों को अँजूरी में भरता हूँ।

शब्दों का कल्पनाकाश बनाता हूँ,
विचारों का महल सजाता हूँ,कैसे?
मुझे नहीं पता।

कविता खुद ही मेरी लेखनी से बरसने लगती है,
तो क्या करुँ?

25 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

शिवम भाई, चिंता क्‍यों करते हो, आप लिखते रहो, एक न एक दिन ये दुनिया आपको कवि मानने के लिए मजबूर हो ही जाएगी।
---------
बोलने वाले पत्‍थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है?

संजय भास्‍कर said...

शिवम भाई
नमस्कार !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

संजय भास्‍कर said...

किस बात का गुनाहगार हूँ मैं....संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद

Sushil Bakliwal said...

सरल ह्रदय और सच्चे व्यक्ति ही कवि ह्रदय के होते हैं और उस लिहाज से भी आप कवि ही हैं ।

babanpandey said...

सभी लक्षण तो संवेदनशीलता के है ...आप सही है

Sunil Kumar said...

आप अपना काम बखूबी से कर रहे है हम तो आपको कवि मान गए , शुभकामनायें

प्रवीण पाण्डेय said...

मानव मन है, क्या करें?

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

bahut sunderrrrrrrr


kavita pata nahi kyu ban jaati hai...........shayad bhaw abhivyakt hue bina khud ko nahi rok paate.........

Anonymous said...

बहुत ही उम्दा रचना!

Kunwar Kusumesh said...

लोहड़ी तथा मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें..

palash said...

बस आप लिखते रहिये ,

राज भाटिय़ा said...

हम तो मानते हे आप को कवि जी, बस लिखते रहे ,धन्यवाद

Chaitanyaa Sharma said...

सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें ....

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर..आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं है, बस ऐसे ही लिखते रहिये..

mridula pradhan said...

achcha to likhe hain.

amit kumar srivastava said...

आप पूरी तरह से कवि कहलाने के अधिकारी हैं,बधाई अच्छे लेखन के लिये ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर ....मनोभावों की प्रस्तुति...... अंतर्मन के सच्चे भाव...

महेन्‍द्र वर्मा said...

कवि हैं इसीलिए तो कविता लिख पा रहे हैं।

‘कविता मुझे भगवान बना देते हैं‘ की जगह ‘कविता मुझे भगवान बना देती हैं‘ कर लीजिए।

Er. सत्यम शिवम said...

धन्यवाद....आपसबों को यूँ ही मेरा उत्साह बढ़ाते रहे....

रचना दीक्षित said...

भईया ये कविता खुद छलकाने का फार्मूला मुझे भी बता दो बड़ी मेहरबानी होगी.और ऊपर से कमेन्ट भी खुद ब खुद पड़ जाए तो सोने पे सुहागा हा हा हा.....सराहनीय प्रस्तुति

k said...

जय साईं राम .
अक्सर एक सवाल मेरे मन मे सताए
कोई आये और इसका उत्तर सुझाये
क्या कागज कलम की दुनिया मे
मैं खो गया हूँ सो द question इस डेट
की क्या मे कवि हो गया हु?

अतीव सुन्दर रचना बधाई हो.
- अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"

amanagarwalmarwari.blogspot.com

marwarikavya.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

भावों का होना ही कवि मान है ... शिल्प आते आते आ ही जाता है ... तो भावों को आने दो ...

Creative Manch said...

आमोद,हर्ष और विषाद का तांडव,
बिन भावों के ये जीवन है बस शव।

बहुत सुन्दर रचना
सराहनीय पोस्ट
आभार
शुभ कामनाएं

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत अच्छी कविता

Er. सत्यम शिवम said...

आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।