हे माधव!नैन मेरे तुमको देख नहीं पाते,
किन नैनों से देखु तुमको,
जो तुम मुझको दिख जाते।
विराट स्वरुप श्रीकृष्ण धरे,
अर्जुन का मोह मिटाने को,
सब बांधव बंधु कोई ना अपना,
गुढ़ तथ्य को समझाने को।
हे माधव!तुम तो असंख्य हो,
तुम अविचल,विराट,अनंत हो,
इन तुच्छ नैनों की क्या औकात,
जो देख सके तेरा भव्य रुप विराट।
सब युद्ध में मेरे अपने है,
कैसे मै इनसे लड़ पाऊँ,
गुरु का शिष्य धर्म भूल,
कैसे गुरु पर ही अस्त्र चलाऊँ?
बस भौतिक राज्य और यश वैभव,
इस महायुद्ध का है उदघोष,
ना चाहिए कुछ भी अब मुझको,
ना कर पाऊँगा अपनों से रोष।
मै निर्धन ही रह लूँगा,
पर महायुद्ध ना करुँगा।
अर्जुन बिल्कुल असहाय हो,
श्रीकृष्ण से कहते रहे,
माधव तो सब कुछ जानते,
बातों पे अर्जुन के हँसते रहे।
हे तात!तुम्हारी पीड़ा का,
ना कभी अंत ही होगा,
जब तक ना लड़ोगे अधिकार को,
तब तक ना तुम्हारा यश अमर होगा।
जब पांचाली का चिरहरण,
भरी सभा में सब ने देखा था,
सारे तुम्हारे अपने ही तो थे,
फिर क्यों ना इस अधर्म को रोका था।
सभा में भीष्म पीतामह भी थे,
गुरु द्रोण और अस्वथामा भी थे।
अपनी ही इज्जत की निलामी,
क्यों ना किसी ने टोका था।
तुम तो सब की सोचते हो,
कोई और ना धर्म निभाया है,
मर्दन करो इस धर्मसंकट का,
जो अधर्म के मार्ग पे लाया है।
ग्यारह बरस अज्ञातवास,
कौरवों द्वारा पांडवों का नाश,
लाह के महल की वो अंतिम रात।
हे तात!क्या भूल जाओगे,
इन अधर्म की सारी नीतियों को।
अधिकार को लड़ना धर्म है,
अपने ही जब हो कुमार्गी,
तब दुष्टों से लड़ना कैसा अधर्म है?
तुम अस्त्र उठाओं संहार करो,
गांडिव का अचूक वार करो।
कोई जगत में ना अपना है,
सारा मोह,माया इक सपना है।
हे तात!जागो अब देखो,
सारे शत्रु है सामने,
तुम इक वार कर के देखो,
अस्त्र शस्त्र को तत्पर सब थामने।
श्रीकृष्ण का गीता उपदेश,
जगाया अर्जुन का अंतर्द्वेष,
धनुष का बाण कालदूत सा,
महायुद्ध को रणभूमि में दिया प्रवेश।
भगवान का उपदेश ऊबारा था,
अर्जुन को धर्मसंकट से,
धर्म अब विजय को उद्धत हुआ,
कुनिती और अधर्म पे।
माधव का विराट स्वरुप,
अब दृश्य हुआ अर्जुन को,
वो धर्म की बाते जान कर,
युद्ध को तत्पर हुआ।
तब अर्जुन के धर्मसंकट का,
महायुद्ध पर असर हुआ।
17 comments:
बहुत ही सुन्दर और सटीक चित्रण किया है अर्जुन की मन:स्थिति का।
अर्जुन के अन्तर्द्वन्द का प्रभावी चित्रण ।
Aprateem rachana!
Gantantr diwas bahut mubarak ho!
यह रचना आप ही लिख सकते हैं!
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा!
अति सुंदर रचना जी धन्यवाद
बेहतरीन प्रस्तुति...
बेहतरीन प्रस्तुति...
Bahut umda
वाह....बहुत बहुत सुन्दर....
अर्जुन के मोह और मनोदशा का प्रभावशाली चित्रण किया आपने..
प्रभावशाली प्रस्तुति ...
वाह ..बहुत खूब ..।
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना| धन्यवाद|
बहुत सशक्त भावपूर्ण प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर लिखा है... और आज आपने चर्चामंच पर भी बहुत सुन्दर धम्माकेदार शुरुआत की है ...बधाई... अच्छा लगता है जब हमरे साथी अच्छा अच्छा करे और उनसे हमें भी सीखने को मिले...
@नूतन जी,ये तो मेरा सौभाग्य है और आपका बरप्पन जो आपने मुझे इस काबिल समझा......बहुत बहुत धन्यवाद
गहन ,सुंदर वर्णन अर्जुन की भावनाओं का .
अर्जुन की भावनाओं को बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया है आपने.
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