अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े,
जब झुलस गयी सुंदर काया,
दर्पण को लुभाने चल पड़े।
अब बीत गया जो कल मेरा,
उसे याद दिलाने से क्या फायदा,
अब छा गया जीवन में अँधेरा,
तो दीप जलाने से क्या फायदा।
जानता हूँ अभी है कुछ पल बाकी,
तो क्यूँ ना ये पल भी जी लूँ,
होने वाली है जीवन की शाम,
तो क्यूँ ना आज मौत से भी हँस के मिलूँ।
घुट घुट कर अब हर घड़ियाँ,
यूँ ही बिताते चल पड़े।
अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।
मै मग्न हूँ जीवन के दो पल में,
भूल गया हूँ आज,
जी रहा हूँ कल में।
क्या होगा अब कल मेरा,
ये बात सोचने से क्या फायदा,
एक रात ही शेष है जीवन का,
सो कर ही गुजारुँ,
तो क्या है बुरा।
जानता हूँ मेरे सपने तो अभी,
छोटे छोटे बच्चों से है,
क्यूँ उनसे उनका बचपन छीन लूँ,
नींद के अपने इन साथियों से,
क्यों अपना नाता तोड़ लूँ?
जाग जाग कर अब यूँ ही,
रात बिताते रह गये।
अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।
मिट्टी से बना अपना काया,
मिट्टी में मिलाने चल पड़े,
कोई मीत बुलाया उस पार वहाँ,
हम मीत निभाने चल पड़े।
छोड़ कर जहाँ में सब को,
उस जहाँ से जोड़ना है वास्ता,
कल तक जो पता गुमनाम था,
मिल गया है मुझे अब वो रास्ता।
राहों में मुझे बस याद रही,
बीते जीवन की हर एक दास्ता।
अब आपबीति अपनी जग को बताने से क्या फायदा,
जो कुछ गुजरा है दिल पर,
वो तो बस जानता है ये दिल मेरा।
राहों में अब हम हर पल,
मस्ती लुटाते चल पड़े।
अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।
जीवन में तो हर पल पाया हूँ,
सुख दुख से रोज नहाया हूँ,
अब चख लूँ जरा नए स्वाद को,
क्यूँ मन में उन्माद जगाया हूँ।
नई खुशी,नई दुनिया में,
यादों की बारातों से क्या वास्ता,
सब छोड़ दिया हूँ तो फिर,
रातों में नीर बहाने से क्या फायदा।
अब ना मिलेगा फिर मुझे,
दोस्तों यारों के कहकहे,
जब भूल गया हूँ अपनों को,
तो फिर क्यूँ सब इंतजार में है खड़े।
मन की बगिया में फिर भी,
यादों के है फूल हरे भरे।
अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।
सारा जीवन यूँ ही बिताता रहा,
चार पल के खेल में हर पल गँवाता रहा।
समय ने जो करवट ली है आज,
तो मोहल्लत की गुहार से क्या फायदा,
रह गया है जब बस रात का सफर,
तो हमसफर से कैसा शिकवा गिला।
क्यूँ ना इस पल को ऐसे जिये,
कि पल भी ये पल याद करे,
मेरे बाद भी ये दुनिया मुझे,
अपने दिलों में याद रखे।
टुटे हुएँ ख्वाबों को भी,
सच करने की जिद ले चल पड़े।
अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।
जीवन तो सब जी लेते है,
हर जाम को पी लेते है,
पर जी रहा है कोई यूँ,
जो मौत अपना जानता,
उसको पता है कि उसे,
बस मौत ही पहचानता।
कल की सुबह तो दूर है,
वो रात में ही मर जायेगा,
है कफन पास रख सो रहा,
बस वो ही साथ निभायेगा,
जब वो फना हो जायेगा।
फिर भी वो जश्न में मग्न है,
और इस तरह है हँस रहा,
जैसे कोई दुल्हा,
दुल्हन बिहाने चल पड़े।
अवसान जो तन का निकट आया,
हम जश्न मनाने चल पड़े।
16 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
bahut khoob ... shabaas ...aagey yoo hee badte chalo.. :)
द्वन्दों से भरा जीवन।
क्यूँ ना इस पल को ऐसे जिये,
कि पल भी ये पल याद करे,
मेरे बाद भी ये दुनिया मुझे,
अपने दिलों में याद रखे।
शानदार प्रस्तुति...
दार्शनिक होने के लिए उम्र के किसी विशेष पड़ाव की जरुरत नहीं होती ...
अच्छा ख्याल !
तन का अवसान भी जश्न से कम नहीं ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
bahut sunder prastuti..
जब जीवन की शाम आई,तो हर बातें याद आईं.जैसे कि,जीवन-मृत्यु के मिलन की कोई घड़ी आई.प्रतीक्षा की हर पल समाप्त होती नजर आई .
---पूनम माथुर
आपकी कविता उत्कृष्ट है अच्छा सन्देश दिया है.
यशवंत का 'जो मेरा मन कहे'तथा मेरा 'क्रन्तिस्वर' कल के चर्चा-मंच पर लगाने हेतु धन्यवाद.
---विजय माथुर
जीते जी मौत को महसूस करना कोई दार्शनिक ही कर सकता है.
शुभ कामनाएं.
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता . बधाई .
बहुत गंभीर भाव मय सुन्दर रचना |बहुत बहुत बधाई |
आशा
बहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।
जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना के लिए बधाई।
satyam ji
aapki rachna ko padh kar aisa laga ki jivan ki saari sachchai nazaro ke samne tair si gai.
akdaum yatharthpurn sahi vivechan kiya hai aapne.
kyon kal ke baare me soch soch kar aaj jo bhi pal haath me aaya hai use gavan de.
aapki rachna ke har paira garae me sirf sach hi nazar aata hai
kisi ek ke baare me kya kahun sabhi ek se badh kar ek hain.
bahut bahut hi prerakdaai lagi aapki umda prastuti.
badhai-----
poonam
दार्शनिक विचारों से ओत - प्रोत रचना
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
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