आया कहाँ से,जाना कहाँ है,
कितने पल का विश्राम यहाँ है!
खुद में ही उलझा,खुद से ही पूछूँ,
मुझको न पता अपने ठिकाने का,
नहीं मै इस जमाने का!
दबती है हर बार भलाई,
झुठलायी जाती है सच्चाई,
आता है हर रोज सवेरा,
दूर करता है रात का अँधेरा!
छीनने से कभी क्या हमदर्दी मिली,
तरीका है कैसा ये पाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
दुनिया की रौनक से हूँ अपरिचित,
कोई नहीं है यहाँ मेरा मीत,
जिसको भी चाहा,मिल न पाया,
सबने मुझे कितना रुलाया!
जब तोड़ना ही प्यार था,
मेरे प्यार से इंकार था!
क्या थी जरुरत फिर ऐसे ही,
रिश्तों के बोझ को यूँ निभाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
उद्वेलित उर की व्यथा का हल,
जाने कब मिले मुझे वो पल!
जहाँ बस हो खुशियों का तराना,
याद आएँ मुझे गुज़रा जमाना!
सुनने को तरसता रहा सदा,
वो तो हरपल था मुझसे जुदा!
विदा के क्षण जब थे निकट,
क्या था मतलब कुछ क्षण यूँहीं,
प्यार के दो गीत सुनाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
अजूबा हूँ मै अलबेला,
पराया है मुझसे इस जमाने का मेला!
कब से बैठा तुझको ढूंढूं,
कब आएगी वो मधुर बेला!
तेरे प्रीत की वो बूँदें,
बरसेंगी धरा पर अनवरत,
खोया हूँ जिसको ढूँढता,
मिल जाएगा मेरा वो जगत!
मेरे प्रश्न का अनोखा हल,
आज आ ही गया वो पल!
चुपचाप किसी को ना हो खबर,
इस जहान से मेरे जाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
30 comments:
Er. सत्यम शिवम जी
नमस्कार !
जब तोड़ना ही प्यार था,मेरे प्यार से इंकार था!क्या थी जरुरत फिर ऐसे ही,रिश्तों के बोझ को यूँ निभाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
.....मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!तारीफ़ के लिए
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
मेरे प्रश्न का अनोखा हल,
आज आ ही गया वो पल!
चुपचाप किसी को ना हो खबर,
इस जहान से मेरे जाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
बहुत ही मनभावन पंक्तियाँ हैं.
नहीं मै इस जमाने का!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
nice one!
छिनने से कभी क्या हमदर्दी मिली,तरीका है कैसा ये पाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
वाह सत्यम जी
हर पंक्ति प्रभावशाली ....लग रहा है एक लिखी तो दूसरी के साथ नाइन्साफ़ी हो जायेगी.......शुभकामनायें !
खुद में ही उलझा,खुद से ही पूँछू,
मुझको ना पता अपने ठिकाने का,
नहीं मै इस जमाने का!
दबती है हर बार भलाई,
झुठलायी जाती है सच्चाई,
आता है हर रोज सवेरा
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
हार्दिक बधाई !
बहुत सुंदर ओर भावपुर्ण रचना, धन्यवाद
चित्ताकर्षक लगी आपकी रचना ...कविता का दर्द और आपके शब्द एकाकार होकर एक ऐसा चित्र खींच रहा .....बहुत प्रभावी रचना ..आभार
संवेदनशील रचना....
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
प्यार बाटते चलो।
यहाँ मैं अजनबी हूँ.
उत्तम भावाभिव्यक्ति... आभार सहित.
बहुत खूब ...शुभकामनायें !!
bhav praver rachana bodh ko samipata pradan karti huyi .sunder .
अनूठी और उम्दा रचना के लिए बधाई!
बहुत भावपूर्ण ...सुंदर रचना ...!!
man me uthe prashnon ko shabdon me pirokar sunder abhivyakti sarahniye hai.
बेहद भावप्रवण ......
कबीर ने भी कहा है "रहना नहीं देस बिराना है", यहाँ हर कोई अजनबी है, सुंदर कविता !
यहाँ मै अजनबी हूँ…………बहुत सुन्दर्।
nhi main is jamane ka....hum sab issi jamane ke hai........bhut sundar kabita likhi hai aapne.....badhai ...
Hhm ... sach hai jab prem nahi to rishta kyon ho ... par ye sab apne bas meon nahi hota prem mein ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील, हृदयस्पर्शी, मन के भावों को बहुत गहराई से व्यक्त किया है..
नहीं मै इस जमाने का |
दबती है हर बार भलाई ,
झुठलायी जाती है सच्चाई ,
आता है हर रोज सवेरा ,
दूर करता है रात का अँधेरा |
भावपूर्ण खुबसूरत रचना |
बेहद सुंदर और भाव प्रधान रचना....
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
behad sundar rachna ...
मेरे प्रश्न का अनोखा हल,
आज आ ही गया वो पल!
चुपचाप किसी को ना हो खबर,
इस जहान से मेरे जाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित करती रचना बहुत मार्मिक अर्थ संप्रेषित करती है .,...आपका आभार
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