Saturday, November 27, 2010

तुम बिन

तुम बिन तो हम हरपल उदास है,
हर खुशी पास है, पर जाने किसकी आश है।

वो तो लगता है भूला देगी मुझे,
पर मै कैसे कहूँ, कि साँस तो चल रही है,
 लेकिन धडकन उनके पास है।

तुम बिन हर मोर पर तन्हाई है,
महफिल में भी जिंदगी से मिली रुसवाई है।

कमबख्त इश्क भी क्या चीज है,
बिन कहे किसी को दिल दे देता है,
और मिलती है जब प्यास राहों में,
तो दरिया के साथ समंदर भर लेता है।

हर दर्द को दिल में कैद कर,
गम का सैलाब जो बनता है,
आँखे बरसने लगती है,
तुम बिन तो वो कुछ ना करता है।

किनारे पे भी आके मौजे लौट जाती है,
मँजिल के करीब भी आके राही,
रास्ता भूल जाता है।

तुम बिन तूफान आता है, और जाता है,
सदिया आती है, और जाती है,
सब मौसम फलक पे छाती है,
पर दिल से तेरी सूरत कभी ना जाती है।

तुम बिन दिन को रात लिखते है,
अकेले में खुद से ही बात करते है,

पलकों में ख्वाबों का बसेरा होता है,
बस तुम बिन कभी भी ना,
जीवन में सवेरा होता है।

बस तुम बिन, इक तुम बिन, तुम बिन.........

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

संजय भास्‍कर said...

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।