रोता हर पल बस मन।
कुछ प्यारे लम्हे,
कुछ खट्टी मिट्ठी यादें,
कभी लवों से,
मेरे कानों में गुँज जाते।
जब कभी भी कोई पल,
गुजरे जमाने के याद आते।
जीवन के करीब होकर आज,
मै हौले हौले जीवन के सफर से,
खुद को कटता पाता।
बेचारा मन बस पुरानी यादें दुहराता,
हँसता, रोता और खिलखिलाता।
कभी कभी पूँछता खुद से ही,
क्या मै कुछ पा रहा हूँ,
या सब कुछ खो चुका है।
कोई है क्या मेरे साथ,
या सब कुछ बस धोखा है।
इक दीप के प्रकाश सा जीवन उजियारा,
पर बाती तो हर क्षण गल कर,
खुद से ही हारा।
हवाएँ अपने झोंको से,
लौ को हिलाती डुलाती,
फिर भी प्रकाशीत, प्रकाशमान पुंज को,
वो तो बुझा नहीं पाती।
पर समय एक ऐसा क्षण लाता,
जब दीप का अस्तित्व भी मिट जाता।
कल तक जो अरुण था अंधियारी गलियों का,
वो हमेशा के लिए अस्त हो जाता।
कई अपने, सुहाने सपने,
कल थे जो मुझको रचने।
अधूरी कहानीयों की तरह,
किसी पुरानी, जर्जर सी,
पृष्ठों में सिमट जाते।
चाहते हम रोक ले क्षण,
पर खुद ही इक रोज मिट जाते।
कई बार आते, कई बार जाते,
हर बार बस यही तो सभी पाते,
बस कुछ क्षण खुशियों के,
और दुखों का सैलाब,
उमरता मन के किसी कोणे में,
दबी सी, अलसायी सी,
घुटती हुई कोई याद।
आँखों पे सारे मंजर चलचित्र की भाँति,
इक लम्बे अरसे को,
बस दो पल में दिखा देते,
और हम जीवन के बहुत करीब आके,
खुद को हर क्षण,
जीवन से कोशो दूर पाते।
6 comments:
कवि तो आप हैं बस अपनी कल्पनाओं को यूं ही शब्दों में ढालते रहें, देर-सवेर सराहना अवश्य मिलेगी ।
आप क्ष के लिये च्छ जो टाईप कर रहे हैं यदि Shift की के साथ 7 टाईप करेंगे तो क्ष बन जावेगा । शेष शुभकामनाएँ
पहली बार आपका ब्लॉग देखा, सुंदर है, मुझे लगता है कवि को इतना निराश नहीं होना चाहिए अतीत मृत हो चूका, भविष्य अभी आया नहीं , वर्तमान का हर क्षण इतना सुंदर है , उसे सराहना, और अहो भाव से भर जाना ही अर्थवान है !
bahut khub ......
pal beet jaate hain...
pal pal mein jeevan ko sadiyon ki tarah jee lene ki aastha amar hoti hai!
likhte rahen!
shubhkamnayen!
पिता की व्यथा व्यक्त करती कविता।
lajwaab likha hai dost
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