रात को आभास है स्वर्णिम सुबह की।
तीमिर है काली,भयानक पास आती,
नयनों की ज्योति है जैसे दूर जाती।
थक गया है प्राण और निर्माण सारा,
बोझ से दब सी गयी है सब की छाती।
वह जो मुस्कुरा रहा है देख मुझको,
आँसू भी है मोती जैसे दिल के तह की।
रात को आभास है स्वर्णिम सुबह की।
मैने कितने किस्से लोगों से सुने थे,
जिंदगी का नाम जीना ही नहीं है।
मर गया गर कोई खुद के वास्ते तो,
मरना भी बस विष का पीना ही नहीं है।
जिंदगी में देखे है कई मौत मैने,
उसके तन से मेरे मन के रमणिक सुलह की।
रात को आभास है स्वर्णिम सुबह की।
वह किरण बन कर मेरे अँधियारी गलियों,
में यहाँ से रोज वहाँ तक आता जाता।
उसके पद्चापों की सुमधुर ध्वनि,
क्या पता क्यों दिल को मेरे आज भाता।
कई घड़ी ऐसा हुआ है,बिन कुछ सोचे,
दूर तक मै उसके पिछे पीछे जाऊँ।
पर अचानक चौंक जाये चौंधियाती आँखें,
चाह कर भी लक्ष्य से जब मिल ना पाऊँ।
काँटों पे चलता रहा हूँ जिंदगी भर,
कोई तो इक राह मिले कल्पित सुमन की।
रात को आभास है स्वर्णिम सुबह की।
गूँजती है दस दिशायें,हर तरु यह पूछता है,
मन अनुतरित है तो क्यों है,
क्यूँ नहीं कुछ सुझता है।
आते है मदमास,सावन,
फिर बसंत,फिर पतझड़ आता।
जख्मों पर कुछ नमक का कण,
देह को मेरे जलाता।
हार जाती मेरी चाहत और मेरी अभिलाषाएं,
जीत होगी नींद पर कब?
मेरे भावी,पलछिन सुपन की।
रात को आभास है स्वर्णिम सुबह की।
15 comments:
bahut khoobsurat rachna.
Aapkee rachana ka aashay to bahut badhiya hai,lekin wartanee me gadbadee hai. Jaise jahan pulling chahiye wahan streeling hai. Misal kee taurpe: .....abhas hai swarnim subahka' na ki 'subahki'!
Mere comment ka aapne bura to nahee mana?
रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "रात को आभास है स्वर्णिम सुबह की":
थक गया है प्राण और निर्माण सारा,
बोझ से दब सी गयी है सब की छाती।... बहुत बढ़िया
धन्यवाद क्षमा जी.....पर क्या करे...हम तो बस अपनी भावनाओं को शब्दों मे पिरो देते है और बन जाती है मेरी कविता.....और शायद कविता एक प्रकार की भावसरिता ही होती है....ना कि व्याकरण की विद्वता.....आप यदि कविता के भाव से संतुष्ट है तो यही मेरी सफलता है......क्योंकि व्याकरण का मुझे कुछ ज्यादा ज्ञान नहीं.....।
रात का आभास ही तो जीने की प्रेरणा है..
bhaawo kodusre ke dil tak pahuchana hi sachhi kavita hai jisme aap hamesha safal hote hain....atulniya rachna....
बेजोड़ लेखन...बधाई
नीरज
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
बहुत सुंदर मन के भाव ...
प्रभावित करती रचना ...
भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति.....
काव्य कल्पना "=आते हैं मधुमास ,सावन ,फिर बसंत ,फिर पतझड़ आत्ता |||एक सुंदर अभिव्यक्ति || मेरे द्वारा ६ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं |जिन का लेखक भी मैं स्वयम हूँ ,संयोग से मेरी प्रथम पुस्तक का टाइटल "पतझड़ भी मधुमास हो गया " है |मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है | http//kumar2291937.blogspot.com
काव्य कल्पना "=आते हैं मधुमास ,सावन ,फिर बसंत ,फिर पतझड़ आत्ता |||एक सुंदर अभिव्यक्ति || मेरे द्वारा ६ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं |जिन का लेखक भी मैं स्वयम हूँ ,संयोग से मेरी प्रथम पुस्तक का टाइटल "पतझड़ भी मधुमास हो गया " है |मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है | http//kumar2291937.blogspot.com
Bejod lekhan. Sundar Kavita.
बहुत सुन्दर .....सुबह का स्वर्णिम अहसास ...
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