नीर नैन बेजान,निष्प्राण,
ह्रदय प्राण का उद्वेलीत शव,
मन आँगन में स्नेह प्रेम का कलरव।
इस जहान में रहकर भी,
घुम आता है उस जहाँ के पार,
क्या यही है प्यार।
मै कवि कहलाने का अधिकारी हूँ या नहीं, मुझे नहीं पता..... पर कविता खुद ही छलक जाती है, तो क्या करूँ....
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