बस निकलते रह गए प्राण।
नियति ने जो समय दिखाया,
हर क्षण तो गिन-गिन के आया,
खुशियों के कुछ पल मैने पिरोये,
दुख के पल ने दिया मेरे मन को अवसान।
बस निकलते रह गए प्राण।
पहली किरण ने आशा जगायी,
इक नयी ताजगी मुझमे समायी,
आया जो रात फिर लौट कर,
चिंता की लौ मन ने जलायी।
बूझता रहा हर रात यूँही,
मेरे जीवन का वो मधुर मुस्कान।
बस निकलते रह गए प्राण।
इक वक्त था जब तुम साथ थी प्रिय,
धड़कन में धड़कती साँस थी प्रिय,
सोचा ना था आयेगा इक पल,
दूर हो जाओगी तुम मुझसे कल।
तुम जो गई तो फिर ऐसे गई,
तन से जुदा हो गई मेरी जान।
बस निकलते रह गए प्राण।
हर पग पे इक संघर्ष मिला,
अपनों ने दिया ये कैसा सिला,
बस फूल की ही चाहत थी,
पर दर्द ही शूल का क्यों खिला।
सींची थी बगिया बड़े जतन से जो,
हर फूल ने शूल सा किया अपमान।
बस निकलते रह गए प्राण।
इक गीत कब से उर में समाया,
गाता रहा सबको सुनाया,
स्वर और सुर का संगीत मेरा,
प्रकृति की हर दिशा में छाया।
भय का जो हुआ बस इक प्रलय-गान,
विच्छेदित हुआ मेरा प्रणय-गान।
बस निकलते रह गए प्राण।
समय की नाव पर बैठा निरंतर,
देखा तूने कितने मनवंतर,
परमात्मा तेरी शक्ति को,
महसूस किया मैने बारम्बार।
आयी जो आज वो रात मिलन की,
प्रियतम के मधु आलिंग्न,चुम्बन की,
क्यों छीन लिया बिना बताये,
इक पल में तन से मेरे प्राण।
बस निकलते रह गए प्राण।
11 comments:
बहुत ही अच्छे भाव,बहुत ही अच्छी रचना..
बहुत सुंदर लिखा आपने.....
नीयति ने जो समय दिखाया,
हर क्षण तो गिन-गिन के आया,
खुशियों के कुछ पल मैने पिरोये,
दुख के पल ने दिया मेरे मन को अवसान।
बस निकलते रह गए प्राण....
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ...
बेहद उम्दा और मर्मस्पर्शी रचना।
प्रेम की अभिव्यक्ति की तीक्ष्णता।
भावों का सम्प्रेषण बहुत सुन्दर है ...खूबसूरत रचना
sundar geet] sundar bhav.
खुबसूरत एहसासों को दर्शाती खुबसूरत रचना |
वाह जी बहुत खुबसुरत कविता, धन्यवाद
सुन्दर कविता,
हृदय स्पर्शी भावाभिव्यक्ति।
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
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