स्वर्णपुरी लंका का वैभव,
जगमग जगमग हुआ आलोकित।
अशोकवाटिका के तरु की छावँ में बैठी,
माँ सीता गुमशुम शुभासित।
ह्रदय मर्म विरहणी बना डाला,
होनी ने क्या कर डाला?
उदास,अशांत प्रियतम से दूर,
माँ सीता को अधीर क्यों बना डाला?
स्वामी! तुम बिन ना जी पाऊँ,
व्याकुल मन को कैसे मनाऊँ?
तुम सूरज मै तुम्हारी किरण,
तुम दीप मै तेरी बाती,
हे प्राणेश्वर! तुम बिन तो हर क्षण,
नैन अश्रु पल क्षीण क्षीण।
वियोग तुमसे मेरे मन का,
अब ये ह्रदय ना सह पाये,
अवसान निकट है तन का,
अब प्राण तन में ना रह पाये।
आ जाओ मेरे परमेश्वर,
रावण की सेना का संहार करो,
अपनी वियोगी,विरहणी भार्या पर,
प्रभु कुछ तो उपकार करो।
अधीर सीता बिलख बिलख कर,
अपनी नीयति पे अश्रु बहा रही थी,
खग,मृग,सुमन और वृक्षों को,
दयनीय दशा सुना रही थी।
रामभक्त हनुमान तभी अशोकवाटिका में पधारे,
बाग की सुंदरता देख,
चकित रह गये अचरज के मारे।
इक वृक्ष के नीचे माँ सीता को,
व्याकुल हो रोते हुये देखा,
किस्मत ने लिखा था हाथों में,
विरह,वियोग का जो लेखा।
गए समक्ष आतुर हनुमान,
माँ की पीड़ा से हो आह्लादित,
परिचय अपना दे मुद्रिका दिखा,
माँ को कर दिया मुदित।
माँ ने पूछा हनुमान कहो,
कैसे तुम सब प्रभु से मिले,
प्रभु से कहना जल्द सेना तैयार कर,
लंका के विध्वंस को चले।
अपनी वियोग की पीड़ा,
कहते कहते रोने लगे नैन,
प्रभु भी आपको याद करते है माँ,
हर पल दिन और रैन।
आँसू पोंछो माँ धीर धरो,
प्रभु जल्द ही आयेंगे,
इन आततायी राक्षसों के चँगुल से,
तुमको जरुर छुड़ाएंगे।
माँ को संदेह हुआ ये सोच,
बानर,भालू की ये सेना कैसे लड़ेगी,
लंका की इस भारी सेना का,
मुकाबला कैसे करेगी?
भीमकाय रुप हनुमान ने,
माँ के समक्ष तब प्रकट किया,
माँ के विश्वास को दे आधार,
बल का इक स्वरुप दिया।
क्या सारे तुम से ही बलशाली,
वानर और भालू है,
हनुमान ने दिलाया माँ को दिलासा,
सब एक से एक जुझारु है।
अब तो तू माँ कुछ धीर धर,
कुछ दिन वियोग और सह ले,
महलों में रहने वाली सुकुमारी,
जंगल में और कुछ दिन रह ले।
जल्द ही हम सब प्रभु के संग,
आकर तुझे छुड़ाएंगे,
अहंकारी दानव का कर मर्दन,
रावण को सबक सिखायेंगे।
राम,लक्ष्मण दोनों सकुशल है,
बस तेरी चिंता सताती है,
बस इक तेरे खातिर ही तो,
दो सुकुमारों को योद्धा बनाती है।
माँ को आश्वासन दे,
चूडामणि ले माँ का चले,
प्रभु को दिखाकर चूडामणि,
माँ से मिलने की बात कहे।
14 comments:
बहुत सुन्दर लिखा है, माँ सीता की विरह वेदना तथा हनुमान जी का संदेश, बहुत अच्छा लगा,तुम्हें आशिर्वाद।
बहुत ही सुन्दर पौराणिक वर्णन।
सुबह ने पूरा दिन
दिन क्या,
जीवन धन्य कर दिया ||
बधाई ||
मन में शांति का संचार करने वाली रचना....
बधाई तथा शुभकामनाएं !
सत्यम जी,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आध्यात्म की और आपका झुकाव हमें बहुत सार्थक व् भावपूर्ण काव्य उपलब्ध करा रहा है और इसके लिए हम आपके आभारी हैं
कृपया मेरी बात को अन्यथा न लें और अपनी इस कविता में निम्न शब्दों की त्रुटि को यूँ ठीक कर लें तो वर्तनी की अशुद्धि दूर हो जाएगी-
''निचे-नीचे'', नियती-नियति, ''अत्यायी-आततायी''
ये मात्र एक सुझाव है आप इसे अन्यथा न लेकर मात्र एक शुभचिंतक की सलाह के रूप में स्वीकार करें.
बहुत सुन्दर लिखा है हनुमान जी का संदेश.....शुभकामनाएं !
बहुत ही भावुकता से वर्णन की है आपने ,प्रसंग भी सुन्दर है
बहुत सुन्दर
बेहद सुंदर भक्तिमय प्रस्तुति है आपकी,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह ...बहुत ही सुन्दर शब्द रचना की है आपने इस प्रस्तुति के लिये बधाई ।
बहुत ही सुन्दर पौराणिक वर्णन।
बहुत सुन्दर सीता मैय्या की विरह वेदना एवं हनुमान जी का सन्देश ...मन भाव विभोर हो गया....शुभ कामनाएं !!
sunder rachna
dukh ----- yah sirf sita ka hi nhin har aurat ka durbhagy hai
बहुत सुंदर..!!!
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