बड़े दिनों बाद घर जाना हो रहा है...तो कुछ पंक्तियाँ इस बार के जाने पर आ रही है "बड़े वक्त के बाद फिर शहर में,हुआ है आना मेरा"...कहते है ना कवि किसी भी विषयवस्तु को कुछ अलग तरीके से सोच लेता है...तो देखिये मेरी इस सोच का नतीजा........ये पंक्तियाँ बयाँ हुई कुछ इस अंदाज में....
अरसों के बाद घोंसलों में,
पंछी ने डाला है बसेरा।
कैसे बताऊँ था कितना सूना,
तुझ बिन ये जीवन मेरा।
कुछ नहीं बदला यहाँ पर,
रेत भी है,चट्टान भी है,
और दीवारों के कान भी है।
वही कंकड़ है,सड़क है,
रास्ते है अभी भी सूने सूने,
उन रास्तों पे चलते हम तुम,
कई ख्वाबों को थे कभी बुने।
दो कदम बस और मुझको चलना है,
लगता है अब दूर नहीं घर मेरा।
अरसों के बाद घोंसलों में,
पंक्षी ने डाला है बसेरा।
वो नीड़ अब भी है उसी का,
वो जानता है।
मौसम की बेरुख अदाओं को,
पहचानता है।
है याद उसके कल के कही इन घोंसलों में,
बेफिक्र रात के बाद जहाँ होता सवेरा।
अरसों के बाद घोंसलों में,
पंछी ने डाला है बसेरा।
गुम हो गयी अतीत की सारी कहानी,
मिट गयी है इस पेड़ से मेरी निशानी।
कई बार उल्टा रुख हवा का,
उड़ गये परिंदे,
बारिश की बूँदों में समाये से दरिंदे।
तन भीग जाता,भीग जाता है मेरा मन,
आँखों से बरसे बूँद बन प्रवास मेरा।
अरसों के बाद घोंसलों में,
पंछी ने डाला है बसेरा।
29 comments:
बसेरों की खोज में घूमते पंछी।
खूबसूरत प्रस्तुति ||
bahut hi gahanabhi byakti /dil ko choo gai /bahut badhaai aapko/
आप ब्लोगर्स मीट वीकली (९) के मंच पर पर पधारें /और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हमेशा अच्छी अच्छी रचनाएँ लिखतें रहें यही कामना है /
आप ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर सादर आमंत्रित हैं /
पहले तो में आप से माफ़ी चाहता हु की में आप के ब्लॉग पे बहुत देरी से पंहुचा हु क्यूँ की कोई महताव्पूर्ण कार्य की वजह से आने में देरी हो गई
आप मेरे ब्लॉग पे आये जिसका मुझे हर वक़त इंतजार भी रहता है उस के लिए आपका में बहुत बहुत आभारी हु क्यूँ की आप भाई बंधुओ के वजह से मुझे भी असा लगता है की में भी कुछ लिख सकता हु
बात रही आपके पोस्ट की जिनके बारे में कहना ही मेरे बस की बात नहीं है क्यूँ की आप तो लेखन में मेरे से बहुत आगे है जिनका में शब्दों में बयां करना मेरे बस की बात नहीं है
बस आप से में असा करता हु की आप असे ही मेरे उत्साह करते रहेंगे
बहुत सुंदर शब्द और अहसास ! घर जाना सभी को अच्छा लगता है..
अपना घर तो अपना ही होता है।
बहुत ही खुबसूरत एहसास ......
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
जल्द आ जाओ हम लोग इन्तजार कर रहे है।
बेहतरीन....
संवेदनशील रचना
बहुत संवेदनशील चिंतन ... खूबसूरत प्रस्तुति .....
घर से बाहर रहने पर घर लौटते हुए सुन्दर भाव से सजी सुन्दर रचना
बहुत ही खुबसूरत एहसास ......सुन्दर प्रस्तुति..
बहुत अच्छे सत्यम जी ....भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार ...
bahut sunder likhe hain......
आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१०) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हमेशा ही इतनी मेहनत और लगन से अच्छा अच्छा लिखते रहें /और हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली (१०)के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
bahut sundar.....Best of jurney
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी बधाई हो आपको
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
bahut sumder bahv .umdap rastuti
कैसे बताऊँ था कितना सूना,
तुझ बिन ये जीवन मेरा।
bhut hi dard bhari abhivyakti.
कैसे बताऊँ था कितना सूना,
तुझ बिन ये जीवन मेरा।
bhut hi dard bhari abhivyakti.
behad khoobsurat......
वाह सर क्या बात है, बहोत ही उम्दा...मै तो ये सोंच रही हूँ ये ब्लॉग मैंने पहले क्यूँ नहीं ज्वाइन किया.
सर एक - एक शब्द का एक अलग ही भाव है.
आप की इन रचनाओ की जितनी भी तारीफ करूँ कम ही होगी....बधाई.
An Optimistic expression...! Keep it up....!!
An Optimistic expression...! Keep it up....!!
अरसों के बाद घोंसलों में,पंक्षी ने डाला है बसेरा।
वो नीड़ अब भी है उसी का,वो जानता है।
मौसम की बेरुख अदाओं को,पहचानता है।
आखिर पंछी घरौंदों में लौटेंगे ...:))
सत्यम जी नमस्कार, सुन्दर भावपूर्ण शब्द्।
बहुत ही सुन्दर भावनाएं...अभिव्यक्ति भी लाजवाब.बधाई.
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