मेरी सौवीं पोस्ट.......
रुला के तुमको खुद रो दिया मै,
गुनाह ये कैसा किया मैने।
गुनाह ये कैसा किया मैने।
बेवजह अश्रु के मोतियों को,
तेरे नैनों में भर दिया मैने।
दर्द देकर दर्द की ही,
इक नदी में बह गया मै।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
क्यों नहीं मै जान पाया,
तुमको ना पहचान पाया,
प्यार को नफरत समझकर,
हर बार तेरा दिल दुखाया।
जानता था है गलत यह,
पर यह गलती क्यों किया मैने?
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
पास तेरे दर्द अपना कह ना पाया,
क्या कहूँ तुम बिन तो इक पल,
रह ना पाया।
तुम चली गयी तो लगा कि दूर मुझसे,
जा रहा है आज खुद मेरा ही साया।
साँस के बिन बस तड़प कर रात काटी,
और दिन के उजालों में भी तुम बिन जिया मै।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
साथ मेरे अब नहीं है कोई साथी,
दूर है खुशियों की सज,धज और बाराती।
राहों में मँजिल से अपने खो गया हूँ,
क्या था मै और आज कैसा हो गया हूँ?
जानता हूँ सामने है प्याले में जहर,
रात है घनघोर अब ना होगा सहर।
पर न जाने प्यास है कैसी ये मेरी,
भर के प्याला जहर को हर बार पिया मैने।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
चाहता हूँ पाना मै ना उपहार कोई,
गैर से भी ना करे ऐसा व्यवहार कोई।
तेरे नैनों में भर दिया मैने।
दर्द देकर दर्द की ही,
इक नदी में बह गया मै।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
क्यों नहीं मै जान पाया,
तुमको ना पहचान पाया,
प्यार को नफरत समझकर,
हर बार तेरा दिल दुखाया।
जानता था है गलत यह,
पर यह गलती क्यों किया मैने?
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
पास तेरे दर्द अपना कह ना पाया,
क्या कहूँ तुम बिन तो इक पल,
रह ना पाया।
तुम चली गयी तो लगा कि दूर मुझसे,
जा रहा है आज खुद मेरा ही साया।
साँस के बिन बस तड़प कर रात काटी,
और दिन के उजालों में भी तुम बिन जिया मै।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
साथ मेरे अब नहीं है कोई साथी,
दूर है खुशियों की सज,धज और बाराती।
राहों में मँजिल से अपने खो गया हूँ,
क्या था मै और आज कैसा हो गया हूँ?
जानता हूँ सामने है प्याले में जहर,
रात है घनघोर अब ना होगा सहर।
पर न जाने प्यास है कैसी ये मेरी,
भर के प्याला जहर को हर बार पिया मैने।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
चाहता हूँ पाना मै ना उपहार कोई,
गैर से भी ना करे ऐसा व्यवहार कोई।
मानता हूँ दिल दुखाया मैने तेरा,
पर नहीं था दर्द देना आवेग मेरा।
हूँ खड़ा बन कर मै तेरा गुनहगार,
हर सजा कबूल है तेरे वास्ते यार।
कह दे तू तो अंत अपना कर दूँ मै,
टूट कर शाखों से दामन भर दूँ मै।
टूटने,जुड़ने में खुद के जख्म को,
खुद ही मरहम भर कर हर बार सिया मैने।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
पर नहीं था दर्द देना आवेग मेरा।
हूँ खड़ा बन कर मै तेरा गुनहगार,
हर सजा कबूल है तेरे वास्ते यार।
कह दे तू तो अंत अपना कर दूँ मै,
टूट कर शाखों से दामन भर दूँ मै।
टूटने,जुड़ने में खुद के जख्म को,
खुद ही मरहम भर कर हर बार सिया मैने।
रुला के तुमको खुद रो दिया मै।
15 comments:
बहुत भावपूर्ण रचना....
१००वी रचना की खास बधाई..
जल्द ये आंकड़ा १००० पहुंचे..
शुभकामनाएं.
च् च् च्
प्रेम बढ़ेगा,
भाव बहेगा,
दोनों में ही।
शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर है यह उत्तम प्रस्तुति ||
100 vi post kee bahut,bahut badhayee ho!
Badee bhavuk tatha sundar rachana hai ye!
सौंवी पोस्ट के लिये बधाई !
प्रेम भाव और
दर्द लिये ये रचना...सुन्दर लगा !
ओह बहुत ही भावप्रवण रचना दिल को छू गयी।100 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
बहुत सुंदर मन के भाव ...
प्रभावित करती रचना ...सौंवी पोस्ट के लिये बधाई !
congrates...!may god bless u with new thoughts.....rona rulana aur hasna hasaana ek sikke ke do pahlu hai.....m speechless....
भावपूर्ण रचना....
१००वी रचना की बधाई..
शुभकामनाएं...
१०० वि पोस्ट की बधाई ..........बहुत सुंदर भाव की रचना
वाह! बेहतरीन भावो से सजी इस 100 वीं रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!
बेहद उम्दा रचना. शानदार. बधाई.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
bahut hi bhavpurn rachna
waah
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