Tuesday, March 29, 2011

अदृश्य तुम मेरे सदृश

अदृश्य तुम मेरे सदृश,
अंतर-नैनों से दिखती जो छवि,
स्वर्ग के द्वार का कोई दृश्य,
समक्ष मेरे तुम हर क्षण,हर पल,
रहते हो क्यों ऐसे अदृश्य?
कई बार हुआ एहसास मुझे,
तुम रहते मेरे पास सदा,
कुछ कमी थी मेरे जीवन में,
थे जो तुम मुझसे जुदा-जुदा!

आवाज दिया अपने मन में,
कई बार बुलाया तुमको,
जो मुझमे मेरे सदृश्य छुपा,
कैसे मिल पाता उनको!

खुशियों के पल में आनंद तू,
दुख में भी हृदय तक जो ले छू,
एकांत में भी मेरे विचार बन,
भीड़ में भी तन्हा सा होता था मन!

सारे अपने, सारे सपने,
सँवरते रहे,टूटते रहे,
तेरे लिए हे प्राण सदृश,
मेरे तन ने क्या-क्या न सहे!
कई बसंत देखे,कई पतझड़ झेले,
बढ़ते रहे तेरी चाह में अकेले!
ढूँढा  तुझको हर जगह वहाँ,
लोगों से सुना था जहाँ-जहाँ!

मंदिर भटका, मस्जिद गया,
चर्च,गुरुद्वारा है तेरा घर क्या?
मिला ना मुझे तू कही,
अदृश्य तू है या है नहीं!
कस्तूरी मृग के सदृश,
मेरे हृदय में ही था तू अदृश्य!
मेरे समक्ष पर असहाय थे अक्ष,
दर्शन तेरे ना कर पाये,
गाते रहे,कहते रहे,
कोई चमत्कृत संजीवनी मानो पाये!
श्वासप्राण से जीवन-प्राण दाता,
अदृश्य तू ही है मेरा विधाता,
अब ना कुछ समय गवाना है,
बस कैसे भी तुझे पाना है!
मेरे सदृश तू  भाव बन,
आत्मा का तुमको शत-शत नमन!
मेरे मन की अब है लगन,
मैने किया अदृश्य का चयन!

12 comments:

LAXMI NARAYAN LAHARE said...

"अदृश्य तुम मेरे सदृश" bahut -sundar paribhashit,rachana apko bahut bahut badhai...
saadar
laxmi narayan lahare
kosir

केवल राम said...

आध्यात्मिक भावों से सराबोर आपकी कविता मन में ईश भक्ति का दृढ विशवास पैदा करती है..ईश्वर की सत्ता को पूरे जगत में स्वीकार करती है .. .आपकी कविताओं को पढने का एक अलग ही आनंद है ...आपका आभार

मनोज कुमार said...

आध्यात्मिक भाव लिए सुंदर रचना।

प्रवीण पाण्डेय said...

है अदृश्य का हाथ हमारे ऊपर।

Sushil Bakliwal said...

सदैव के समान सुन्दर काव्य प्रस्तुति ।

ZEAL said...

कई बार हुआ एहसास मुझे,
तुम रहते मेरे पास सदा,
कुछ कमी थी मेरे जीवन में,
थे जो तुम मुझसे जुदा-जुदा!...

Lovely lines !

.

Dr Varsha Singh said...

अदृश्य तुम मेरे सदृश,
अंतर-नैनों से दिखती जो छवि,
स्वर्ग के द्वार का कोई दृश्य,
समक्ष मेरे तुम हर क्षण,हर पल,
रहते हो क्यों ऐसे अदृश्य?
कई बार हुआ एहसास मुझे,
तुम रहते मेरे पास सदा,


संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...

Dr (Miss) Sharad Singh said...

खुशियों के पल में आनंद तू,
दुख में भी हृदय तक जो ले छू,
एकांत में भी मेरे विचार बन,
भीड़ में भी तन्हा सा होता था मन.....


सुन्दर कविता..
बेहद कोमल सुंदर रचना और सुंदर भाव !

Unknown said...

समक्ष मेरे तुम हर क्षण,हर पल,
रहते हो क्यों ऐसे अदृश्य?
कई बार हुआ एहसास मुझे,
तुम रहते मेरे पास सदा,

आध्यात्मिक भावों की कविताओं को पढने का एक अलग ही आनंद है,सुन्दर काव्य प्रस्तुति

रश्मि प्रभा... said...

खुशियों के पल में आनंद तू,
दुख में भी हृदय तक जो ले छू,
एकांत में भी मेरे विचार बन,
भीड़ में भी तन्हा सा होता था मन!
bahut hi badhiyaa

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यह अदृश्य की ही अनुकम्प्पा है जो एहसास होता है की कोई साथ है ...सुन्दर भाव

Anupama Tripathi said...

bahut sunder adyatmik abhivyakti ....!!