"आज प्रस्तुत है मेरी लम्बी आध्यात्मिक कविता "आत्मा की प्यास" का शुरुआती कुछ अंश....इस कविता में मृत्योपरांत यात्रा का वर्णन किया गया है और आत्मा का परमात्मा से मिलन को दर्शाया गया है...."
अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त,
अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त,
मन में उभरते विचारों ने बना दिया मुझको संदिग्ध।
ऊषा की पहली ओस के बूँदों को पीकर चल पड़ा,
किरणों की छतरी ओढ़ के असहाय ही बढ़ता रहा।
एकांत वन में व्याधों सा,
विमुख संयम का बाँध टुटा,
ना ही मै शिकारी था,
फिर भी पशुता को लाँघ चुका।
वन की खामोशि ही बया करती थी,
आने वाला है तूफान,
भय का ना कोई जुबा होता है,
दिखता नहीं है शैतान।
वृक्षों से पत्ते टुट कर सरवर में तैरना सीखते,
सरवर की बाहें खुल गयी,
पैदा हुआ बूँद सुरमयी,
टीप की आवाज भी कही,
कानों में आहट सी लगी।
मुड़ मुड़ कर सबको देखता,
जाग गया है शायद वन देवता।
विलुप्तता की आवाज थी,
या था मौन का व्रत कोई,
न जाने कहाँ जा छुपे थे,
जँगल के सारे पशु पक्षी।
ग्रीष्म की भीषण विध्वंस भी,
उड़ा रही थी लू की लपट,
पसीने की बूँदे चौंका देती थी,
कोई नरम छुवन का हो स्पर्श।
थक के यूँ चूर हो कर कही,
छावँ की डगर तलाशता,
सरवर से बुझती प्यास न थी,
दो आँखें एकटक मुझे ताकता।
बड़ी चैन सी मिल रही थी,
हर तरु तिलिस्म दिखा रही थी,
हवा के झोंको से रह रह कर,
टहनी आवाज लगा रही थी।
स्वागत मेरा ये हो रहा था,
या मौत का फंदा गले लगा था,
खामोश वन से क्या पूँछू,
पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।
10 comments:
आत्मा की एकमात्र प्यास तो उसी परमात्मा की है जिसका वह अंश है, सुंदर शब्दों का प्रयोग कर उसे ही तलाशती एक यात्रा की सी अनुभूति दिलाती है आपकी कविता...
आत्मा की प्यास तो परमात्मा ही बुझा सकता है…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त,
मन में उभरते विचारों ने बना दिया मुझको संदिग्ध
kitna sahi vishleshan kar lete hain aap swayam ka.bahut sundar prastuti.badhai.
अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहते भी है अतृप्त !
आपके शब्दो की पकड बहुत खुब है बधाई हो आपको !
सुंदर भाव ..... सुंदर अभिव्यक्ति
हवा के झोंको से रह रह कर,टहनी आवाज लगा रही थी।
स्वागत मेरा ये हो रहा था,या मौत का फंदा गले लगा था,खामोश वन से क्या पूँछू,पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।... soch kee seema aprimit hai
अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त
सुंदर अभिव्यक्ति
दर्शनयुक्त शब्द यात्रा।
स्वागत मेरा ये हो रहा था,या मौत का फंदा गले लगा था,खामोश वन से क्या पूँछू,पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।
gahan ..sunder abhivyakti.
हम भी इसे पढ कर अध्यात्म रस मे डूब गये। ये प्यास ही हमे उसके करीब ले जाती है। शुभकामनायें।
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