सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।
कही दूर से आती वो ध्वनि,
जब कानों से मेरे टकराई,
जगत के बेसुरे ताल में,
जब मधुर गीत गई थी समाई।
बस शोर गुल ही सुन सका,
संगीत जीवन में समाया ना।
सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।
जो पिघले हर क्षण मोम सा,
दे जाता है जगमग जीवन,
जो घिस घिस कर चंदन सा,
दे जाता है सुगंध नूतन।
वैसा सुर,लय और ताल सा,
संगीत बना मै पाया ना।
सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।
प्रयत्न मेरे हर बार विफल,
कभी ना आया जीवन में कल,
टूटे बस आज के सपने न्यारे,
जो बीते जीवन के सारे पल।
निराश हुआ तब और अधिक,
जब कुछ सुन कर भी सुन पाया ना।
सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।
11 comments:
सत्यम जी एक बेहतरीन प्रस्तुति के साथ उपस्थित हुए है आप कोटिश बधाई
कहीं और यदि मन भरमाये,
कैसे कोई साथ निभाये।
कर्ण ही साथ निभाया ना।... yahi saar hai paane ka
बहुत उम्दा रचना!
बहुत भाव भरा गीत !
bahut hi behatarin geet.bahut achche shabdon main likhi sunder prastuti.badhaai sweekaren.
Koyi na koyi ichha atrupt rah hee jaatee hai!
Bahut sundar rachana!
सुनना चाहा वो मधुर गीत,
पर कर्ण ही साथ निभाया ना।
कही दूर से आती वो ध्वनि,
जब कानों से मेरे टकराई,
जगत के बेसुरे ताल में,
जब मधुर गीत गई थी समाई।
बहुत सुन्दर शब्दों में भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति
प्रयत्न मेरे हर बार विफल,कभी ना आया जीवन में कल,टूटे बस आज के सपने न्यारे,जो बीते जीवन के सारे पल।
aap jaise safal kavi hriday se aisee vyakul abhivyakti vakai bahut khoob kahi hai satyam ji.
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