Saturday, June 11, 2011

किससे कहता मै उर की पीड़ा

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!
इक क्षण में सब प्यार भूलाकर,
स्वर्ग से धरती पर लाकर,
जैसे तुमने यूँ कह दिया,
मेरे प्यार को हर बार पाकर!

बस मौन रहा मै,क्या कह पाता,
दिल को जो दुखाये अपने!

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

जगा इक दर्द निराला बड़ा,
दर्द में भी प्यार मुस्कुराया,
बस प्यार है वो चीज,
जो गम में भी हँसना सीखाया!

कहने को बढ़े कुछ तुमसे,
क्यों दिल को दुखाया तुमने?

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

मिलन तुमसे है मेरा हर बार अधूरा,
दिल में थी ऐसी उलझने,
इतने रह के हम पास तुम्हारे,
क्यों दो अंजान,अजनबी बने!

होंठो की बाते,दिल की सौगाते,
जो हर बार चाही थी तुमको कहनी,
सुनो आज है रुठ कर,
तुमसे है बहुत कुछ कह दी उनने!

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

15 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

ठेस हृदय में रह जाती है,
कहते कहते कह जाती है।

Shalini kaushik said...

होंठो की बाते,दिल की सौगाते,
जो हर बार चाही थी तुमको कहनी,
सुनो आज है रुठ कर,
तुमसे है बहुत कुछ कह दी उनने!
bahut sundar abhivyakti.badhai.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सच में मन की पीड़ा हर कहीं नहीं बांटी जा सकती.....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बस मौन रहा मै,
क्या कह पाता,

आंतरिक पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति...

पूनम श्रीवास्तव said...

satym ji
bahut hi ulahnao se bhari hai aapki kavita.
sach bhi hai jab dil me kahin gahre chot lagti hai to vah kisi se kahe bhi nahi banta aur dil hi dil mekchot si uthti rahti hai
bahut hi nichhal bhvonao ki sundar abhivyakti -------------
badhai--------poonam

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन की पीड़ा को शब्दों में ढाला है ..

Dr Varsha Singh said...

किससे कहता मै उर की पीड़ा,
जो ठेस लगाया तुमने!

शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी इस मार्मिक रचना में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।

Manav Mehta 'मन' said...

kisase kahen kisase kahen..mann ki tadap kisase kahen....

सु-मन (Suman Kapoor) said...

man ki peeda kisi se nahi kahi ja sakti..... bahut sundar

Anita said...

जो बिना कहे ही समझ ली जाये बात तो वही असर करती है...

Vivek Jain said...

बस मौन रहा मै,
क्या कह पाता,

वाह,क्या बात है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

PRIYANKA RATHORE said...

bahut khoob satyam ji...

स्वाति said...

मिलन तुमसे है मेरा हर बार अधूरा,
दिल में थी ऐसी उलझने,
इतने रह के हम पास तुम्हारे ,
क्यों दो अन्जान,अजनबी बने!

अन्तर्मन को भिगो गई ये पंकतिया| बहुत खूब|

***Punam*** said...

बस मौन रहा मैं,क्या कह पाता
दिल को जो दुखाये अपने

और इसका कोई इलाज़ भी नहीं
मौन रहना ही बेहतर है...!!

Mani Singh said...

dil ki jajbat ko bakhubi vyakat kia hai aapne