झट से जाकर पँखे बुझाता,
सिटी बजाकर उसको भगाता!
डरता था जाए ना प्राण कही,
इस नन्ही प्यारी चिड़िया का!
उमरता था भावों से जिया,
उफनता था कही मन का समंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
कितनी तरकीबे मैने की,
सारी हुई अब बस व्यर्थ!
पर ना कटे कही चिड़िया का,
घर में ना हो कोई अनर्थ!
छज्जे पे जाके बैठी थी,
छिप गई थी प्लास्टिक के अंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
नन्ही सी नाजुक जान थी,
हैवानियत से अंजान थी!
ना था पता उड़ जाएँगे,
इक ही झटके में बस प्राण!
जो टकरा जाती पँखे से,
सुन ना पाता मै उसकी गान!
बडी़ भोर में खिड़की पे आ,
गाती वो गीत बडी़ सुंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
भाषा से मेरे अंजान थी,
नन्ही थी अभी नादान थी!
मै कहता था जाओ बाहर,
खिड़की को कर दूँ बंद!
ना खोलूँगा पूरी दिन,
तो फुदकती थी मंद-मंद!
कवि से प्यार जो कर बैठी थी,
भूली थी सारी हरियाली,
नीला-नीला वो अम्बर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
कितने युगों से था अकेला,
वो लगती थी कोई पूर्व-परिचित!
बस कुछ दिनों की दोस्ती में,
दिल को मेरे गई थी जीत!
घंटो बाते करता उससे,
तन्हा था मै जाने कब से!
नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,
बस गई थी अब दिल के अंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
15 comments:
ना खोलूँगा पूरी दिन,तो फुदकती थी मंद-मंद!
कवि से प्यार जो कर बैठी थी,भूली थी सारी हरियाली,नीला-नीला वो अम्बर!
आ गयी थी चिड़िया जो,फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
आपकी ये कविता भा गयी मन को ...
दिल की लगी आपकी और ..
लगी कविता अति सुंदर ....!!
छोटी सी चिड़िया, प्यारी और क्रियाशील।
उमरता था भावों से जिया,
उफनता था कही मन का समंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!....
नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,
बस गई थी अब दिल के अंदर!....
Er. सत्यम शिवम जी, वाह.... क्या खूब कहा है बहुत ही सुंदर कविता ! और बहुत ही गहरे भाव !
शुभकामनाएं !
Fantastic!!!!
नन्ही सी नाजुक जान थी,हैवानियत से अंजान थी!ना था पता उड़ जाएँगे,इक ही झटके में बस प्राण!
बहुत सुंदर अभिब्यक्ति .दिल मैं एक नन्ही सी चिडिया के लिए आपका अनुराग देखकर अच्छा लगा /बहुत-बहुत बधाई इतनी अच्छी रचनन के लिए/
lajabab,lajabab,lajabab....
सुन्दर और संवेदनशील रचना
बहुत सुंदर अभिब्यक्ति...धन्यवाद
बहुत सुन्दर..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर शब्द रचना | धन्यवाद|
छोटी सी चिड़ियां और उसकी हरकतें मन को भा गईं।
Kitnee pyaree rachana hai!
कुछ दिनों की दोस्ती में,दिल को मेरे गई थी जीत!
घंटो बाते करता उससे,तन्हा था मै जाने कब से!नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,बस गई थी अब दिल के अंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
bahut pyari kavita likhi hai satyam ji aapne hamari to khug kee bhi yahi kahani hai chidiya hamare yahan to pankhe ka shikar hui thi jab ham bahut chhote the.
छोटी सी चिड़िया पे लिखी मनमोहक रचना ...
Post a Comment