Sunday, May 1, 2011

आ गयी थी चिड़िया जो

झट से जाकर पँखे बुझाता,
सिटी बजाकर उसको भगाता!
डरता था जाए ना प्राण कही,
इस नन्ही प्यारी चिड़िया का!
उमरता था भावों से जिया,
उफनता था कही मन का समंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

कितनी तरकीबे मैने की,
सारी हुई अब बस व्यर्थ!
पर ना कटे कही चिड़िया का,
घर में ना हो कोई अनर्थ!

छज्जे पे जाके बैठी थी,
छिप गई थी प्लास्टिक के अंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

नन्ही सी नाजुक जान थी,
हैवानियत से अंजान थी!
ना था पता उड़ जाएँगे,
इक ही झटके में बस प्राण!

जो टकरा जाती पँखे से,
सुन ना पाता मै उसकी गान!

बडी़ भोर में खिड़की पे आ,
गाती वो गीत बडी़ सुंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
भाषा से मेरे अंजान थी,
नन्ही थी अभी नादान थी!
मै कहता था जाओ बाहर,
खिड़की को कर दूँ बंद!

ना खोलूँगा पूरी दिन,
तो फुदकती थी मंद-मंद!

कवि से प्यार जो कर बैठी थी,
भूली थी सारी हरियाली,
नीला-नीला वो अम्बर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

कितने युगों से था अकेला,
वो लगती थी कोई पूर्व-परिचित!
बस कुछ दिनों की दोस्ती में,
दिल को मेरे गई थी जीत!

घंटो बाते करता उससे,
तन्हा था मै जाने कब से!
नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,
बस गई थी अब दिल के अंदर!

आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!

15 comments:

Anupama Tripathi said...

ना खोलूँगा पूरी दिन,तो फुदकती थी मंद-मंद!
कवि से प्यार जो कर बैठी थी,भूली थी सारी हरियाली,नीला-नीला वो अम्बर!
आ गयी थी चिड़िया जो,फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!


आपकी ये कविता भा गयी मन को ...
दिल की लगी आपकी और ..
लगी कविता अति सुंदर ....!!

प्रवीण पाण्डेय said...

छोटी सी चिड़िया, प्यारी और क्रियाशील।

Dr Varsha Singh said...

उमरता था भावों से जिया,
उफनता था कही मन का समंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,
फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!....

नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,
बस गई थी अब दिल के अंदर!....

Er. सत्यम शिवम जी, वाह.... क्या खूब कहा है बहुत ही सुंदर कविता ! और बहुत ही गहरे भाव !
शुभकामनाएं !

Yashwant R. B. Mathur said...

Fantastic!!!!

prerna argal said...

नन्ही सी नाजुक जान थी,हैवानियत से अंजान थी!ना था पता उड़ जाएँगे,इक ही झटके में बस प्राण!
बहुत सुंदर अभिब्यक्ति .दिल मैं एक नन्ही सी चिडिया के लिए आपका अनुराग देखकर अच्छा लगा /बहुत-बहुत बधाई इतनी अच्छी रचनन के लिए/

Arti Raj... said...

lajabab,lajabab,lajabab....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर और संवेदनशील रचना

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर अभिब्यक्ति...धन्यवाद

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर..

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर शब्द रचना | धन्यवाद|

मनोज कुमार said...

छोटी सी चिड़ियां और उसकी हरकतें मन को भा गईं।

kshama said...

Kitnee pyaree rachana hai!

Shalini kaushik said...

कुछ दिनों की दोस्ती में,दिल को मेरे गई थी जीत!
घंटो बाते करता उससे,तन्हा था मै जाने कब से!नन्ही सी प्यारी मेरी सहेली,बस गई थी अब दिल के अंदर!
आ गयी थी चिड़िया जो,फिर खिड़की से मेरे घर के अंदर!
bahut pyari kavita likhi hai satyam ji aapne hamari to khug kee bhi yahi kahani hai chidiya hamare yahan to pankhe ka shikar hui thi jab ham bahut chhote the.

दिगम्बर नासवा said...

छोटी सी चिड़िया पे लिखी मनमोहक रचना ...