Tuesday, June 7, 2011

आत्मा की प्यास

"आज प्रस्तुत है मेरी लम्बी आध्यात्मिक कविता "आत्मा की प्यास" का शुरुआती कुछ अंश....इस कविता में मृत्योपरांत यात्रा का वर्णन किया गया है और आत्मा का परमात्मा से मिलन को दर्शाया गया है...."

अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त,
मन में उभरते विचारों ने बना दिया मुझको संदिग्ध।
ऊषा की पहली ओस के बूँदों को पीकर चल पड़ा,
किरणों की छतरी ओढ़ के असहाय ही बढ़ता रहा।

एकांत वन में व्याधों सा,
विमुख संयम का बाँध टुटा,
ना ही मै शिकारी था,
फिर भी पशुता को लाँघ चुका।

वन की खामोशि ही बया करती थी,
आने वाला है तूफान,
भय का ना कोई जुबा होता है,
दिखता नहीं है शैतान।

वृक्षों से पत्ते टुट कर सरवर में तैरना सीखते,
सरवर की बाहें खुल गयी,
पैदा हुआ बूँद सुरमयी,
टीप की आवाज भी कही,
कानों में आहट सी लगी।

मुड़ मुड़ कर सबको देखता,
जाग गया है शायद वन देवता।

विलुप्तता की आवाज थी,
या था मौन का व्रत कोई,
न जाने कहाँ जा छुपे थे,
जँगल के सारे पशु पक्षी।

ग्रीष्म की भीषण विध्वंस भी,
उड़ा रही थी लू की लपट,
पसीने की बूँदे चौंका देती थी,
कोई नरम छुवन का हो स्पर्श।

थक के यूँ चूर हो कर कही,
छावँ की डगर तलाशता,
सरवर से बुझती प्यास न थी,
दो आँखें एकटक मुझे ताकता।

बड़ी चैन सी मिल रही थी,
हर तरु तिलिस्म दिखा रही थी,
हवा के झोंको से रह रह कर,
टहनी आवाज लगा रही थी।

स्वागत मेरा ये हो रहा था,
या मौत का फंदा गले लगा था,
खामोश वन से क्या पूँछू,
पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।

10 comments:

Anita said...

आत्मा की एकमात्र प्यास तो उसी परमात्मा की है जिसका वह अंश है, सुंदर शब्दों का प्रयोग कर उसे ही तलाशती एक यात्रा की सी अनुभूति दिलाती है आपकी कविता...

vandana gupta said...

आत्मा की प्यास तो परमात्मा ही बुझा सकता है…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

Shalini kaushik said...

अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त,
मन में उभरते विचारों ने बना दिया मुझको संदिग्ध
kitna sahi vishleshan kar lete hain aap swayam ka.bahut sundar prastuti.badhai.

Mani Singh said...

अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहते भी है अतृप्त !
आपके शब्दो की पकड बहुत खुब है बधाई हो आपको !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर भाव ..... सुंदर अभिव्यक्ति

रश्मि प्रभा... said...

हवा के झोंको से रह रह कर,टहनी आवाज लगा रही थी।
स्वागत मेरा ये हो रहा था,या मौत का फंदा गले लगा था,खामोश वन से क्या पूँछू,पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।... soch kee seema aprimit hai

Unknown said...

अतृप्त व्यापक आत्मा की चाहतें भी है अतृप्त

सुंदर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय said...

दर्शनयुक्त शब्द यात्रा।

Anupama Tripathi said...

स्वागत मेरा ये हो रहा था,या मौत का फंदा गले लगा था,खामोश वन से क्या पूँछू,पहले ही मै जुबा से कितना ठगा था।
gahan ..sunder abhivyakti.

निर्मला कपिला said...

हम भी इसे पढ कर अध्यात्म रस मे डूब गये। ये प्यास ही हमे उसके करीब ले जाती है। शुभकामनायें।