Tuesday, June 14, 2011

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात

मिला हर तन को शांत विश्राम,
थकन के बाद पाया सब ने आराम,
नैनों में सजाये ख्वाब अनूठे,
मिल गया जीवन का वो मुकाम।
नींद ही मुझसे रुठ गयी जब,
नैनों ने बुलाया तुमको हर रात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

बिखरे मेरे जो लट घुँघराले,
हुये सभी अब प्रेम मतवाले,

मुझको पागल ही कह डाला,
प्रेयसी ने पिलायी जो रुप की हाला।

छलक गये सुधा बूँद से न्यारे,
तेरे मधु अधरों से मुखरित हर बात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

जागी इक चाह जो मुझको तेरी,
कहने की है बस मेरी मजबूरी,
तेरे द्वार पर दौड़ा आऊँ,
मिटती हर बार है कुछ तो दूरी।

तेरी तरफ मेरे दो नैन,
देखा करते क्यों दिन रैन।

हुआ जो बेचैन तो जग ने समझा,
 कि मिली है मुझे प्यार में मात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

कोई फूल सुगंध लुटाता है,
तब भींगी भींगी खुशबू जग पाता है,
कोई शूल राह में चुभ जाता है,
फिर भी वो राह दिखाता है।

कभी फूल चुना,कभी शूल बना,
नियति ने दिखाया कठिन हालात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

पहर दो पहर देखा बस मैने,
सृष्टा और सृजन का अनोखा तालमेल।

सृष्टि की इक सदी जो बीती,
खत्म हुआ कुछ पल सृजन का खेल।
मैने जाना सृजन है मनोहर,
और प्रलय है इक भयावह रात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

ईश्वर निराकार ही सत्य है,
आकार में उसे न बाँध सका,
सगुण उपासना राह भक्ति की,
निराकार को कभी पा न सका।

मन की पीड़ा हर बार कही,
उस भक्ति के दिव्य ज्योति से,
पर मूर्ति के देवता ने कि ना,
कभी भी मुझसे कोई बात।

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।

16 comments:

रश्मि प्रभा... said...

ईश्वर निराकर ही सत्य है,आकार में उसे न बाँध सका,सगुन उपासना राह भक्ति का,निराकार को कभी पा न सका।
मन की पीड़ा हर बार कहा,उस भक्ति के दिव्य ज्योति से,पर मूर्ति के देवता ने की ना,कभी भी मुझसे बात।

............

ऐसा कैसे लगा ? जो निशान तुम्हें अपने लगते हैं वे तो उसीके हैं ... कभी नहीं करता है वो पक्षपात

स्वाति said...

क्या कहूँ मैं?सिर्फ इतना कहूँगी मन भर आया| बधाई|

Dr Varsha Singh said...

गहरी वेदना है आपकी कविता में.आपकी लेखनी को नमन....

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

कविता पढ़कर मन भीग गया. बहुत वेदना . अत्यंत मार्मिक . शुभकामनाएँ मेरे भाई .


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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन कि पीड़ा को मार्मिक शब्द दिए हैं ...अच्छी प्रस्तुति

Dr (Miss) Sharad Singh said...

संवेदना से भरी मार्मिक रचना.....

Anita said...

सत्यम जी, आप ऐसे ही इतना अच्छा लिखते हैं, वर्तनी पर थोड़ा सा ध्यान देंगे तो सबसे अच्छा लिखेंगे...

Shalini kaushik said...

कोई फूल सुगंध लुटाता है,
तब भींगी भींगी खुशबु जग पाता है,
कोई शूल राह में चूभ जाता है,
फिर भी वो राह दिखाता है।
bahut sundar bhavon kee safal abhivyakti.badhai.

Shalini kaushik said...

satyam ji anita ji sahi kah ahi hain please don't mind-aap thoda sudhar len to bahut bahut sundar me aapki abhivyakti jud jayegi jaise-चूभ ''chubh''.कठीन ''kathin''aapka ho raha hai-''katheen''.नियती-''niyati ''kar len .maine thodi koshish kee hai aap please anyatha n len.

Er. सत्यम शिवम said...

@अनिता जी,शालीनि जी...बहुत बहुत धन्यवाद मेरा मार्गदर्शन करने हेतु..जल्द ही आपको वर्तनी की अशुद्धि कम दिखेगी मेरी कविता में...आभार।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अंतर्मन की संवेदना लिए रचना

Vivek Jain said...

अत्यंत मार्मिक है आपकी कविता,

बधाई- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Arti Raj... said...

मेरे साथ ही हुआ हर बार पक्षपात।....har bar ye laine bebas karti hai.............man bhar sa jata hai........bahut sundar

पूनम श्रीवास्तव said...

satyam ji
bahut hi sundar prastuti .
han! bhagwan sunte hain sabhi ki chahe der bhale ho jaaye
carcha munach par meri gazal ko prastut karne ke liye aapko dil se dhanyvaad-------
poonam

प्रवीण पाण्डेय said...

मन की उहापोह को बड़े ही सम्यक तरीके से प्रस्तुत किया आपने।

Shalini kaushik said...

satyam ji mere aagrah ko manne ke liye dhanyawad.