Friday, June 17, 2011

जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।
मिलन निशा का इक गीत अनोखा,
जो कंठों से फूट पड़े,
खुद पर ना हो जब प्राण का बस प्रिय,
तो प्रेम दिवाने क्या करे।

संगीत जिसका मौन हो,
जो नैनों से ही हो स्वरित।

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।

वीणा के तार पर फेर उँगली,
गूँजेगा जो इक मधुर धुन,
ह्रदय मेरे तू अधीर ना हो,
स्व स्पंदन के गीत को सुन।

व्याकुल ना हो इस रात फिर प्रिय,
करना अब तू न मन को कुंठित।

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।

ध्वनि का मिलन हो प्रतिध्वनि से,
मेरे गीत तू जा ह्रदय में समा,
गूँजेगा वो गीत अब यूँ नभ से,
गायेगा प्रणय गीत सारा जहाँ।

बना तू गीत ऐसा जो मन का,
हर ले सारा दुख और विषाद,
तू ना कर अब यूँ एकाकी,
इक क्षण भी जीवन का व्यतीत।

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।

10 comments:

Roshi said...

sunder ,bahut sunder....

Shalini kaushik said...

करना कैसा बहाना प्रिय,
जो ह्रदय स्पंदन हो मुखरित।
bhavnaon ko shabdon me aapne satyam ji bahut hi khoobsoorti se piroya hai.

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी लेखनी ऐसी ही मुखरित रहे।

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।

Mani Singh said...

bahut sundar

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।

Vivek Jain said...

बहुत ही सुन्दर
आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut sundar....

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रिय शिवम,

बहुत ही सुन्दर कल्पना है और प्रेरणादायी भी जो हृदय में झंकृत स्पंदनों को सुनने की प्रेरणा दे रही है :-

वीणा के तार पर फेर उँगली,
गूँजेगा जो इक मधुर धुन,
ह्रदय मेरे तू अधीर ना हो,
स्व स्पंदन के गीत को सुन।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

पूनम श्रीवास्तव said...

satym ji
bahut hi sunadar ,aapki rachna ki bhavnayen bahut hi prabal lagin.
shabdo ka behatreen prayog uski sundarta ko aur hi badha deta hai.
bahut bahut badhai
poonam