मेरी आवाज में बैकग्राउंड ध्वनि के साथ यह कविता
कब से तुझे बचाता रहा ऐ जिंदगी मेरी,
क्या था पता इक दिन मुझे ही छोड़ देगी तू कही!
बरसात से,धूप-छाँव से,
नफरत के घिनौने भाव से!
हरदम तुम्हे दूर रखता था,
सुख के सिवा तू कुछ ना चखता था!
मुझको कहाँ था ये पता,
तू भी परायी बन जायेगी!
इक दिन मुझे छोड़ के जहाँ में,
जग से मुझे बिसरायेगी!
हर चोट तुझपे जो आती थी,
दिल दर्द से भर कर रोता था!
ये आँख बरस कर बूँदों में,
दिल के जज्बातों को खोता था!
क्या था पता इक दिन,
ये नूर,ये अंबक भी मेरा ना होगा!
कितने ख्वाब सजाये थे जिन पलकों पे,
वो इक पल में जुदा होगा!
होश में जब से मेरी आहटे थी,
तेरे लिये क्या-क्या ना किया!
ठंडक में जमने,
गर्मी में झुलसने से तुझे बचाता रहा!
बरसात में जो भींगता,
झट से तुझे सुखाता रहा!
हर वक्त तेरे साथ ही कटती थी मेरी जिंदगी,
क्या था पता इक रोज तू बन जायेगी मेरी बंदगी!
बडा़ स्वार्थी है तू क्या कहूँ,
मेरी इक पल ना याद आयी!
भूल गया बस इक झगड़े में,
अपने प्यार की सारी लड़ाई!
तुझसे ही तो रौशन था,
मेरी चाहतों का दीया,
क्यों कर दिया इक पल में सूना,
भावों से मेरा जिया!
क्या पता था तू निकलेगी स्वार्थी मेरी ज़िंदगी!
इक बात तो है तुझसे कहनी,
मेरे बिना ना है तेरी भी जिंदगानी!
मै भी ना कुछ हूँ,ना तू ही है कुछ,
बस साथ में ही बनता है,
हम-दोनों का अस्तित्व!
लौट के कभी जो आ जाना,
मुझे यूहीं खड़ा पाओगी,
क्या था पता तुम कभी लौट के ही ना आओगी!
कब से तुझे बचाता रहा ऐ जिंदगी मेरी,
क्या था पता इक दिन मुझे ही छोड़ देगी तू कही!
20 comments:
wah ! bahut khoob
padhkar maza aa gaya
जीवन पर बहुत अधिक उधार मत रखिये, चुकाना पड़ता है।
आपकी आवाज़ में यह कविता बहुत अच्छी लगी.
jindagi ka bharosa hi kahan hai kab chod jaye.bahut acchi abhivyakti sir
धूप छांव से बचाया , हर तरह का सुख दिया। क्या क्या सहन नहीं किया इस जिन्दगी की खातिर मगर बेवफा निकली। तुझे कहीं चोट लगी तो रोया , पलकों पर विठाया
मगर
तूने रंजो अलम के सिवा क्या दिया
आंख हमसे मिला बात कर जिन्दगी
अब एक निवेदन
अंतिम पद में मुझे यू हीं खडी पाओगे इसमें खडी की जगह खडा होना चाहिये हो सकता है मेरे समझने में ही त्रुटि हो
Haan...zindagee befawayee karhee jaatee hai...
कविता की खूबसूरती आवाज़ में चारगुना हो गयी ..बहुत बढ़िया ...
मुझको कहाँ था ये पता,
तू भी परायी बन जायेगी!
इक दिन मुझे छोड़ के जहाँ में,
जग से मुझे बिसरायेगी!
बहुत खूबसूरत रचना.....आपकी आवाज़ में बैकग्राउंड ध्वनि के साथ यह कविता बहुत अच्छी लगी.
बडा़ स्वार्थी है तू क्या कहूँ,
मेरी इक पल ना याद आयी!
भूल गया बस इक झगड़े में,
अपने प्यार की सारी लड़ाई
bahut sahi likha hai.
abhi aapki aawaz bhi suni bahut achchhi hai aur aap aisa lagta hai ki kafi nepathya me jakar hi bol rahe hain .bahut khoob.vah vah.
bahut hi bhavmai ,virah vedanaa main doobi anokhi rachanaa.dil ko choo gai aapki prastuti.badhaai aapko.
bahut sundar..kavita bhi aur aawaj bhi...
उम्दा ...मोहक ...सार्थक ...ज़िंदगी की कहानी
आपकी आवाज में सुनकर और अधिक आनन्द आया.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच
क्या था पता इक दिन,
ये नूर,ये अंबक भी मेरा ना होगा!
कितने ख्वाब सजाये थे जिन पलकों पे,
वो इक पल में जुदा होगा!
बहुत सुंदर
कविता की खूबसूरती स्वर से और दुगनी होगई...बहुत खूबसूरत रचना..
बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई....
बड़ी ही भावपूर्ण रचना
बहुत ही सुन्दर भाव एवं शब्दों का संयोजन ..साथ में आपकी आवाज ..अति सुन्दर कविता...
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