चुप ही रहूँ तो क्या बुरा,
कह के भी मै क्या कर सका!
दब जाती है आवाजे मेरी,
खामोशिया देती है पनाह,
घुट-घुट कर ही रह जाता हूँ,
रोने की तो है अब मना!
आँसू भी तो ना है अब मेरा,
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!
कुछ दूर तक तन्हाई हो,
बीते पलों की याद आई हो,
सुनसान राहों का राही कोई,
मानो अपनी मँजील पा ली हो!
कोई जख्म दिल का ना भरा,
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!
जादूगर नहीं हूँ शब्दों का,
शब्दों का जाल कैसे बिछाऊँ,
अपनी बातों से दुनिया के,
छलावे को कैसे रिझाऊँ!
सुना है भावों से अब तो,
मेरे मन का धरा!
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!
भटका फिरा ताउम्र मै,
बस इक आनंद की खोज में,
जो मिल गया बिन माँगे ही,
मौन के भाषा की गोद में!
मन का दर्द है ये जाने कितना बडा़,
चुप ही रहूँ तो क्या बुरा!
20 comments:
बहुत अच्छा लिखा है दोस्त!
bahut sunder rachanaa.badhaai aapko.
chup rahate hue bhi bahut kuch kah dia aapne
चुप रहकर भी कितना कुछ कह दिया आपने. मर्मस्पर्शी रचना.
आपके मन की पीड़ा न जाने कितनों की है।
sunder geet
अब चुप्पी तोड़ने की बारी है। सुन्दर।
खामोशियाँ राज दिल का बता रही है .....
मर्मस्पर्शी रचना| धन्यवाद|
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
कृपया मेरे ब्लॉग
http://ghazalyatra.blogspot.com
पर भी आपका स्वागत है !
जादूगर नहीं हूँ शब्दों का,शब्दों का जाल कैसे बिछाऊँ,अपनी बातों से दुनिया के,छलावे को कैसे रिझाऊँ!
ye to aapne khud hi sabit kar diya ki aap satyam hote hue bhi asatya bolte hain-ye uper likhi kavita kya shabdon kee zadoogri nahi hai?
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर प्रस्तुति जी धन्यवाद
बहुत भावपूर्ण.
Achha lilha hai satyam. Aise hi likhte chalo bachhe.
Blessings.
nahi chup mat rahiye...bolte rahiye....kahte hai ki chuppi insaan ko man hi man kachotti rahti hai...or bolne se man ke saare bikar mit jate hai....bahut sundar
bhawpoorn......bahut sunder.
बहुत सुन्दर भावमयी रचना..
बहुत सुन्दर ... पर दर्द् काफी...
bhut hi sundar dost.................
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