उर की व्यथा उर में रह गयी,
हर संताप तिमिर में घुल गयी।
श्वेत अश्व का धावक आया,
आत्मा,परमात्मा से मिल गयी।
अदृश्य लकीरें अनहोनी की,
तन के आद्यांग में फूटी,
तन हुआ जहान से वैरागी,
आत्मा जो तन से है रुठी।
सारे क्षण यूँ थम गये,
आँखों में आँसू जम गये।
हर ख्वाहिश रह गयी अब अधूरी,
जहान से बढ़ गयी मेरी दूरी।
तन की थी ये व्यापक मजबूरी,
मृत्यु है क्यों इतनी बुरी?
सहमें से सारे मंजर मेरे,
जुदाई का वियोग है मुझको घेरे।
अपने साथी अब छूट गये,
हर ख्वाब अधूरे टूट गये।
कविता भी मेरी थी अधूरी,
अँधेरी रातों में चमकती फुलझड़ी,
लगती थी दुनिया कितनी सिंदूरी,
हुई ना मेरी इक माँग भी पूरी।
चाहतों का दीया बूझ गया,
नभ से इक सितारा टूट गया।
श्वास का दीपक जो बुझा,
जिंदगी हो गई बस जुदा जुदा।
जीवन से जो मै रुठा,
पाया जग तो था झूठा।
जिसके लिये था मै सब कुछ,
मेरे बाद भी तो है वो खुश।
मेरी कहानी का हो गया अंत,
राही था अब मै उन राहों का,
मँजिल था जिनका बस अनंत।
बढ़ गया बेहिचक प्राण सा मै,
दुनिया से बिल्कुल अंजान सा मै।
ठोकर जो मिली तो ठहर गया,
सुख दुख का सारा पहर गया।
पीड़ा थी कितनी उर में भरी,
खत्म हुई जीवन की कड़ी।
पाया मैने वो सच्चा ज्ञान,
कब से था जिससे मै अंजान।
प्रकाश की नई परिभाषा,
आत्मा को मिली जो इक आशा।
तन को चुपके से सुला दिया,
मृत्यु पीड़ा को भूला दिया।
10 comments:
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
वाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
वाह बेह्द गहन और सार्थक प्रस्तुति।
बहुत खूबसूरत रचना जिसमे दर्द को प्रकट करने कि कोशिश में सफल :)
सुन्दर रचना |
जीवन के तथ्यों के साथ साथ दर्द को भी निभाने की भी कोशिश अच्छी लगी .....
bahut sunder mratyu ki peedaa aur usaki sachchaai ko bataati hui sunder prastuti.badhaai aapko.
सहमें से सारे मंजर मेरे,
जुदाई का वियोग है मुझको घेरे।
बहुत ह्रदय विदारक प्रस्तुति सत्यम जी.
उफ....पीड़ा की सहज अभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति।
behtareen bhaw
बेहतरीन प्रस्तुति ......
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