नैनों की दृग पर अश्रुवर्षा का प्रवाह,
स्वच्छंद मन की है यही उन्माद,
नैनों को नहीं आता है संवाद।
बेसुध,अशांत है दो नयन,
बरसो रे नभ पर बन जलद।
किंकर्तव्यविमुढ़ता बनी है धर्मसंकट,
इन नैनों की है आपबीति बड़ी विकट।
बेजान की भी नयन ही है भाषा,
बस प्रेम की तो ये नयन है परिभाषा।
सहनशीलता इसकी असहाय है,
व्याकुलता का तो ये एक पर्याय है।
नैनों की भाषा भक्ति है,
अश्रु तो एक विरक्ति है।
दो नयन दो पल बरसेंगे,
तब तक तो उर बस मिलन को ही तरसेंगे।
वाक्या नहीं ये वाद का,
ना ही किसी विवाद का।
दो नयन की तड़प कैसे समझाये,
उर दृग की झंझावत कैसे दिखलाये।
असोच है हर तर्क से परे है,
नैन अश्रु तो सागर से भी गहरे है।
सागर में तो मझदार का पता होता है,
नैनों में जो खोता है,वो कभी नहीं सोता है।
अविचल नयन वो सितार है,
नश्वर तन का उत्कृष्ट श्रृँगार है।
संगीत भी इसका शायद मौन है,
उर दर्द के गीत का गायक कौन है?
आसमां तो बरस कर रो लेते है,
कारवाँ मँजिल के निशा बो लेते है।
पर नैन कैसे दृग की पीड़ा बतलाये,
रोकर वो अश्रु से क्या समझाये।
नैनों की दृग पर अश्रुवर्षा का प्रवाह,
कोई खो गया इस तथ्य से अब है आगाह।
15 comments:
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
bahut hi sundar rachna... ekdam nainon kee tarah...
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
भावभीनी रचना...बहुत सुन्दर...
bhavon kee sundar abhivyakti. bahut sundar rachna.
वाह वाह - बहुत खूब
पहला चित्र बहुत खूबसूरत है.
कविता भी अच्छी.
jitna pyara chitr utni hi pyaari kavita.
बहुत ही खुबसूरत चित्र कविता
नैनों की दृग पर अश्रुवर्षा का प्रवाह,
कोई खो गया इस तथ्य से अब है आगाह। स्वच्छंद मन की है यही उन्माद,
नैनों को नहीं आता है संवाद।
बेसुध,अशांत है दो नयन,
बरसो रे नभ पर बन जलद।
मन को उद्वेलित करने वाली खूबसूरत कविता....
बहुत खूबसूरत भाव समेटे हैं ..अच्छी प्रस्तुति
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ।
पहला चित्र बहुत खूबसूरत है.
बहुत खूबसूरत भावपूर्ण
एक अति उम्दा रचना. धन्यवाद
आपकी पोस्ट ब्लोगर मीट वीकली (४) के मंच पर सोमवार १५/०८/११ को प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /सोमवार को ब्लोगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
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